श्रीमती रश्मि रविजाजी की लिखी पुस्तक “बंद दरवाजों का शहर” पढ़कर समाप्त किया है। इस पुस्तक का प्रकाशन बहुत ही आकर्षक कवर में अनुज्ञा बुक्स ने मूल्य रुपये 225 रखकर किया है। 12 कहानियों की 180 पेज की पुस्तक है। मैं सर्वप्रथम इस पुस्तक हेतु रश्मि रविजाजी को बहुत बधाई और शुभकामनाएँ देता हूँ। रविजाजी की कहानियों में ज्यादा काल्पनिक बातें नहीं होतीं हैं। इनकी कहानियों के पात्र अपने घर, समाज के बीच के पात्र होते हैं।ज्यादा आडंबर नहीं रहता, वास्तविक चरित्र होते हैं और कहने का लहजा बिल्कुल ही परिवारिक होता है। इनकी कहानियाँ सभी वर्ग और उम्र के पाठकों को पसंद आयेंगी। इनका पिछला उपन्यास ‘काँच के शामियाने’ से यह पुस्तक बिल्कुल ही भिन्न है। अक्सर लेखक की एक पुस्तक पढ़कर दूसरी की कल्पना लोग करने लगते हैं। यहाँ आप चूक जायेंगे। इस पुस्तक में इन्होंने कथा को इस रूप में रखा है कि समस्या दिखती है लेकिन एक स्पष्ट मैसेज समाधान के साथ भी जाता है। अब कहानियों पर आऊँ।
पहली कहानी ‘चुभन टूटते सपनों के किरचों की’ में लेखिका ने एक सामान्य परिवार की दो बहनों की जीवनशैली और आज के भौतिक वातावरण में जीने की सोच पर लिखा है। बड़ी बहन एकदम सामान्य वस्त्र पहन, साधारण जीवन जीते माता पिता के द्वारा कराये गये विवाह में सामंजस्य बिठाकर जी रही है। उसी शहर में छोटी बहन अपना खुला जीवन जीते हुए एक सामान्य लड़के के प्रेम में पड़ जाती है। अब नहीं चाहते हुए भी छोटी बहन की खातिर बड़ी बहन उस लड़के से उसकी शादी के लिये प्रयास करती है। छोटी बहन को एक ज्यादा पैसा कमाने वाला लड़का का रिश्ता आता है और वो बड़ी बहन को ही समझाने लगती है कि जीवन में वो इस पैसे वाले लड़के के साथ ज्यादा खुश रहेगी। साधारण कमाकर देने वाला प्रेमी उसकी आवश्यकता पूरी नहीं कर पायेगा। भौतिक सुख, अपने अनुसार जीने की स्वतंत्रता के सामने सब बेकार। बड़ी बहन अवाक रह जाती है। पाठक मन बना रहा होता है कि आगे विवाह होगा, नहीं होगा और कथा तीसरी दिशा में जाती है। कहानी की गति और क्रम पाठक को पढ़ने के बीच बाथरूम तक जाने नहीं देता। शब्दों का संयोजन इस प्रकार का है कि पाठक पुस्तक को नहीं बल्कि कहानी पाठक को पकड़े रहती है।
दूसरी कहानी ‘अनकहा सच’ में साथ में पढ़ने वाली नायिका के प्रेम में नायक है लेकिन कभी इजहार नहीं कर पाया। नायिका भी उसे पसंद करती है लेकिन बता नहीं पायी। पिता को अचानक एक दिन अच्छा लड़का मिल गया और पिता के आदेश पर अपनी कथा को छोड़ दो बच्चों की माँ बन गयी। नायक भी जीवन में आगे बढ़ तो गया है लेकिन दोनों की आँखें हमेशा एक दूसरे को हर जगह ढूँढते रहतीं हैं कि कहीं दिख जाये।
लेखिका ने इस रचना में एक स्त्री मन का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया है। कुछ चीजें सिर्फ अनुभव की जा सकतीं हैं। अनुभवों को शब्दों में पिरोना मुश्किल होता है लेकिन लेखिका अपनी बात कहने में सफल हैं। प्रेम के अलग अलग भावों का चित्रण इस पुस्तक में है। अलग अलग किरदार की अलग अलग जीवनशैली है लेकिन प्रेम के विस्तृत आसमान को रिश्तों में बाँटकर, प्लॉटिंग कर, एक सम्बन्धों की कॉलोनी बसाना आसान ना था। लेखिका ने प्रत्येक चरित्र को स्थापित कर कॉलोनी बसा दी है।
‘पराग तुम भी’ कहानी में नायक से ज्यादा मेहनत नायिका करती है और सफलता भी नायिका को पहले मिलती है। दोनों के बीच के सम्बन्धों का वर्णन दिल को छूने वाला है। लेकिन पुरूष ही निर्णय लेगा, स्त्री को अपना कैरियर सब कुछ छोड़कर पुरूष के साथ जाना पड़ेगा, इस भाव को लेखिका ने जबरदस्त तरीके से कहा है। अलबत्ता नायिका अपनी मेहनत, अपना कैरियर सब छूट जाने के भय से ही किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाती है।
“दुष्चक्र” कहानी में एक परिवार पैसा कमाने विदेश जाता है और अपने एकलौते बेटे को एक संबंधी के पास छोड़ जाता है। बच्चा नशे का आदी होता है फिर माँ उसे वापस लाने का प्रयास करती है। इन कहानियों में एक सीधा मैसेज है। मेरा निजी मानना यह है कि अगर इस पुस्तक को पढ़कर एक बच्चे का भला हो जाये तो लेखिका की पूरी मेहनत सफल है। सुन्दर कथा है।
अगली कहानी ‘बन्द दरवाजों का शहर’ जो पुस्तक का नाम भी है में लेखिका ने बड़े शहरों के जीवन की व्यथा का वर्णन किया है। एक अपार्टमेंट में सैकड़ों लोग रहते हैं लेकिन सभी अपना दरवाजा बन्द रखते हैं। एक दूसरे से अन्जान। किसी को किसी से मतलब नहीं होता है। सिर्फ अपने में सिमटा हुआ। कहानी में एक छोटे से जगह की एक महिला जो एक बेटी की माँ है, महानगर पति के पास आती है। अपने पति की बेरुखी और समयाभाव के कारण धीरे धीरे सामने के एक अकेले रहनेवाले लड़के से दोस्ती बढ़ाती है और अपना जीवन जीना शुरू करती है। लेकिन कुछ गलत होने से पहले दोनों सजग होते हैं। लेखिका यह बताने में सफल हो जाती है कि कमीं कहाँ कहाँ है। यह जीवनशैली कहाँ कहाँ नुकसान कर रही है। स्त्री मन के भाव और उपजे विचार का सामंजस्य अनुपम है।
शेष अन्य कहानियाँ ‘कसमकस’, ‘बदलता वक़्त’ इत्यादि भी अच्छी रचनाएँ हैं।
कुल मिलाकर एक बढ़िया कथा संग्रह जिसे एक बार अवश्य पढ़ें। कथ्य और शिल्प दोनों दृष्टिकोण से उत्तम। मैं रविजाजी को भविष्य की शुभकामनाएँ देता हूँ।