“दोराहा पर सार्थक राह बताती लघुकथाओं का संग्रह है “परख”
सर्वप्रथम लघुकथा संग्रह “परख” हेतु रचनाकार श्री प्रदीप उपाध्यायजी को बहुत बधाई, शुभकामनाएँ. इस पुस्तक का प्रकाशन सुन्दर रंगीन आवरण में उत्कर्ष प्रकाशन, मेरठ ने मूल्य रुपये 150/- रखकर किया है. 96 पेजों में 75 रचनाओं की इस पुस्तक की प्रिंटिंग और कागज दोनों उत्तम है. पुस्तक के प्रारंभ में श्री बी एल आच्छाजी ने भूमिका में बहुत ही सार्थक टिप्पणी की है. वे लिखते हैं कि इस पुस्तक में भीतर-बाहर की दरारों को खंगालती लघुकथाएँ हैं. मैं भी इस विचार से पूर्णतः सहमत हूँ.
सृजन का संसार यथार्थ और कल्पना के बीच मन और मस्तिष्क में उपजे विचारों की अभिव्यक्ति होती है. हिन्दी कथा लेखन का प्रारंभ लघुकथा लेखन से ही प्रारंभ हुआ. किसी खास अवस्था, स्थिति या घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में शब्दों की कारीगरी से बनाये गये शब्द समूहों को एक माला में पिरोकर एक छोटी, तीव्र, तीक्ष्ण, मन और हृदय को छूने वाली रचना लघुकथा कहलाती है. लघुकथा का व्यापक व्याकरण है और समय-समय पर इसमें परिवर्तन भी होते रहा है. विद्वान और गुणी लेखक लघुकथाओं के माध्यम से समाज को नयी दिशा दिखाने में हमेशा प्रयत्नशील रहे हैं और समाज का बड़ा वर्ग इससे प्रभावित भी रहा है. रचनाकारों का यह कर्म रचनाधर्म से परिपूर्ण तब और हो जाता है जब समाज के किसी एक व्यक्ति पर भी किसी खास रचना का सीधा प्रभाव पड़ता है. इन रचनाओं को आत्मसात करना दिखने में आसान होता है लेकिन व्यवहार में बहुत मुश्किल, आवश्यकता सिर्फ और सिर्फ इच्छाशक्ति की होती है. लघुकथाएँ दोराहों पर खड़े राह दिखाने वाले अंजान व्यक्ति की तरह होती हैं. मन आम जीवन के निर्णय में जब दो विचारों के बीच उलझा रहता है कि किसे चुना जाये उस समय ये लघुकथाएँ सार्थक निर्णय लेने में सहायक होती हैं.
ऐसी ही सार्थक राह बताती लघुकथाओं का संग्रह है यह पुस्तक. लेखक श्री उपाध्याय जाने- माने, स्थापित व्यंग्य लेखक हैं. इनकी कथा संग्रह भी बहुत चर्चाओं में रही है. इनका विस्तृत पाठक वर्ग है. इनकी यह लघुकथा की पहली पुस्तक है. इनकी लघुकथाओं में दैनिक जीवन में आने वाली बातों की सामान्य चर्चा बिना किसी लाग लपेट के है जो सीधे दिलों को छूतीं हैं. ये समाज की अनेक विसंगतियों पर अपनी दो टूक राय रखते हुए गंभीर प्रहार करते हैं. इनकी लघुकथाएँ बहुत ही हृदयस्पर्शी और मर्मस्पर्शी हैं. सूक्ष्म कलेवर और बेहतरीन शिल्प से सुसज्जित लघुकथाएँ अपनी अभिव्यक्ति में सम्पूर्ण हैं.
इनकी रचना ‘दरखास्त’ कार्यालय के उस वातावरण का चित्रण करती है जिसमें निजी जीवन का कोई मूल्य नहीं रहता. अधिकारियों को सिर्फ अपने काम से मतलब है. ‘कसूरवार’ लघुकथा नशा करने वाले लोगों के लिए एक सार्थक सीख देती है. ‘श्राद्ध’ कथा में दो मृत आत्माएँ अपने पुत्रों के बारे में और पुत्रों के आपस में संपत्ति बँटवारे की चर्चा करते हैं. यह समाज में अक्सर दीख जाता है. लेखक बहुत गहरी चोट करते हैं. अनेक रचनाएँ जैसे ‘माँ’, ‘नौकरी’, ‘चरित्र’, ‘मुक्ति’, ‘कमाऊ पूत’, ‘सुहागिन’, ‘धरती माँ’, ‘स्थायी पता’, ‘बदलाव’, ‘मासूम सवाल’ पढ़ते वक़्त पाठक चिंतन को विवश होते हैं. इनकी प्रत्येक लघुकथा अपनी बात कहने और मनवाने में सक्षम है. ज्यादातर विषय आम जीवन के हैं अतः ज्यादा ग्राह्य हैं.
ये लघुकथाएँ प्रत्येक वर्ग और उम्र के पाठक के लिए उपयुक्त हैं. राह दिखाने वाली इन लघुकथाओं को आप सभी का आशीर्वाद मिले. मैं इनकी इस लघुकथा संग्रह “परख” की सफलता की कामना करता हूँ और भविष्य की शुभकामनाएँ देता हूँ.
–-विभूति भूषण झा,