सूखते कच्चे अचार की तरह है कविता संग्रह “धूप-छाँव”
सर्वप्रथम “धूप-छाँव” कविता संग्रह के लिए श्री उदय राज वर्मा उदयजी को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ. 111 पेजों की इस पुस्तक का प्रकाशन प्रिंसेप्स पब्लिशिंग, छत्तीसगढ़ ने सुंदर रंगीन आवरण में मूल्य ₹ 160 रखकर किया है. यहाँ बताना आवश्यक है कि इस पुस्तक का प्रकाशन इसके पूर्व किसी दूसरे प्रकाशन से हुआ था और मैंने ऑनलाइन भुगतान भी कर दिया था लेकिन प्रकाशक भाग गया. उसने ना तो पैसे लौटाए और ना ही पुस्तक भेजा या यूँ कहें कि मैं और रचनाकार दोनों ठगी के शिकार हो गये. खैर..
इस पुस्तक की प्रत्येक कविता को एक चौकोर बॉक्स में दी गयी है और ज्यादातर कविताओं में एक सन्दर्भ प्रेरित प्रतीकात्मक चित्र भी है जो पुस्तक की खूबसूरती को बढ़ाता है. शुरूआत में पाँच शुभकामना सन्देश हैं. 94 रचनाओं के इस संग्रह में कविताएँ, मुक्तक और कुछ हाइकू हैं. सभी कविताएँ अलग-अलग भावों और अलग-अलग शब्द विन्यासों से परिपूर्ण हैं. कहीं भ्रूण हत्या की चर्चा है तो कहीं कोरोनावायरस की चर्चा है. कहीं बाल कविता है, कहीं बेरोजगारी की चर्चा है, कहीं हिंदी साहित्य की चर्चा है, मंदिर- मस्जिद है, माँ है, प्रशासन से संवाद है तो कभी काजल, कभी मौत, कभी पिता, कभी कुर्सी तो कभी भगवान हैं. कवि की यह पहली पुस्तक है. कविता के शिशु ने अभी अपना पहला पग बढ़ाया है तो अब बड़े बुजुर्गों का दायित्व है कि बढ़ते हुए शिशु को गिरने न दें, उसे संभालते रहें. कवि धीरे-धीरे स्वतः दौड़ने लगेगा. ज्यादातर कविताएँ भिन्न आकारों, रूपों में कच्चे कटे आम के अचार की तरह हैं जिसे सूखने के लिए धूप में दिया गया है और अभी ये तैयार नहीं हुआ है. बहुत ज्यादा लिखने की आवश्यकता नहीं है लेकिन पहली पुस्तक है तो हौसला बढ़ाना ही है. कुछ पंक्तियाँ अच्छी हैं. कहीं साहित्य का दर्द भी दिख जाता है.
‘मेहरबानी’ कविता की इन पंक्तियों को देखें कि-
“देखकर बहुत दुःख होता है कि
साहित्यकार समाज और देश हित भूल गये
जाति, धर्म, वर्ग में बंट गये, बंध गये
तुच्छ स्वार्थवश सार्वदेशिक और सार्वकालिक की जगह
क्षणिक और जाति धर्म आधारित
साहित्य रचने में मस्त हो गये
सम्मानपत्र और मंच के लिए धन व
नवोदित कवियों कवियत्रियों से अश्लील
माँगें की जाने लगीं
धन के बल पर रचनाएँ और किताबें छपने लगीं
लेखकीय प्रति के लिए भी दाम चुकाए जाने लगे
आधुनिकता के नाम पर फूहड़ता परोसने लगे
पैसे देकर बेस्ट सेलर की श्रेणी में आने लगे….”
और भी अनेक जगहों पर अच्छे भाव उभरकर आये हैं लेकिन पढ़ने से नये रचनाकार की रचना समझ में आ जाती है.
इस पुस्तक का प्रकाशन प्रिंसेस पब्लिशिंग, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ ने किया है. आजकल अनेक पब्लिशिंग हाउस आ गए हैं जिनकी अपनी कोई जिम्मेवारी नहीं होती. वह हर बात लेखक/ रचनाकार पर थोप देता है. इस पुस्तक की सबसे बड़ी खामी यह है कि इस पुस्तक की प्रूफ रीडिंग नहीं की गयी है. वर्तनी की इतनी अशुद्धि है कि क्या कहने. पुस्तक का कवर भी रचनाकार ने नहीं देखा होगा. अगर देखता तो क्या अपना नाम उदयराज वर्मा के बदले उदयराम वर्मा स्वीकृत करता? इस प्रकार की त्रुटि की जिम्मेवारी कौन लेगा? और किसकी होनी चाहिए? मैंने प्रकाशक से संवाद किया. उनका जवाब सीधा सा कि हमलोग अपने मन से कुछ नहीं करते रचनाकार जो लिखकर देते हैं, हमलोग छाप देते हैं. मैंने कहा कि रचनाकार का नाम तो जानिये. पुस्तक का आवरण महत्वपूर्ण होता है उसपर कैसे गलत नाम आ गया? एक ही नाम ऊपर कुछ और भीतर कुछ? उनके पास इसका कोई जवाब नहीं है. अब एक पाठक का सोचिये कि पुस्तक खरीदने के बाद उसे कैसा लगेगा?
प्रकाशकों से अनुरोध कि जब आप पुस्तक छापने का खर्च लेते हैं तो अपने पास कुछ जाँच के लिए भी लोग रखिये. खर्च बढ़ेगा लेकिन गुणवत्ता और विश्वसनीयता भी बढ़ेगी. लम्बे समय तक तभी टिक पायेंगे.
अंत में मैं पुनः श्री उदय राज वर्माजी को इस पुस्तक हेतु बधाई और भविष्य की शुभकामनाएँ देता हूँ.
***