“इश्क मुबारक” उपन्यास के लिए रचयिता श्री कुलदीप राघव को बधाई, शुभकामनाएँ। इस 152 पेजों की पुस्तक का प्रकाशन रेडग्रैब बुक्स ने मूल्य 125 रुपये रखकर किया है। पुस्तक का कवर किसी सिनेमा के पोस्टर जैसा खूबसूरत है। आग की लपटों के बीच एक गिटार की तस्वीर है जो प्रेम संगीत का द्योतक है। कोई भी अपनी आलमारी में सजाकर रखेगा।
मैंने राघवजी का उपन्यास ‘आई लव यू’ पढ़कर बहुत तारीफ की थी। लिखा था कि वे लम्बी रेस का घोड़ा हैं, कोई आश्चर्य नहीं किसी दिन इनकी कहानी पर कोई फ़िल्म बन जाये और हमदोनों साथ देखें।
‘इश्क मुबारक’ प्री बुकिंग में ही अमेजन बेस्ट सेलर थी। दो बार कैंसिल होने के उपरान्त तीसरी बार बुकिंग करने पर मुझे पुस्तक मिली है। अब पुस्तक पर आऊँ।
सर्वप्रथम आई लव यू और इश्क मुबारक दोनों दिखने में एक जैसी लगती है लेकिन दोनों दो धूरियों की पुस्तकें हैं, बिल्कुल ही अलग। पहले कहानी पर आयें।
यह मेरठ के करीब एक छोटे से गाँव के रहने वाले और गरीबी में पले-बढ़े नायक की कहानी है। बचपन में पिता का निधन और फिर जवानी में माँ का साया उठ जाने के बाद, तमाम मुश्किलों से लड़ता नायक दिल्ली आता है। एक अमीर नेता की पुत्री के सहयोग और प्रेम से धीरे धीरे रॉक स्टार गायक बनता है। इस बीच उसका इस नायिका के साथ शारीरिक संबंध भी बन जाता है। नायक दिल्ली से मुम्बई की ओर वायुयान से प्रस्थान कर रहा होता है तो दो बेटी की माँ, एक मुस्लिम महिला बगल के सीट पर होती है जो उसकी गायकी का प्रशंसक होती है। यह महिला दिल्ली में ही कपड़े की दुकान चलाती है। निजी जीवन में खुश है। ससुराल में या पति से भी कोई शिकायत नहीं है। बाद में यह महिला नायक की गायकी से प्रभावित हो घर में झूठ बोल नायक के साथ दिल्ली से जयपुर घूमने जाती है और नायक इसके साथ भी संबंध बनाता है। जीवन आगे बढ़ता है। नायक की पूर्व प्रेमिका अपने घर लखनऊ जाती रहती है। बीच की बात बहुत खास नहीं है। इस बीच मुस्लिम शादीशुदा महिला प्रेगनेंट होती है। नायक ज़िद कर महिला को एक जगह बुलाता है और महिला के पूर्ण रूपेण नहीं चाहते हुए भी पुनः संबंध बनाता है। महिला घर आती है और उसका बच्चा इस शारीरिक संबंध की वजह से खराब हो जाता है। उधर कार से जाते नायक का एक्सीडेंट होता है, लखनऊ से प्रेमिका दौड़कर आती है जो इस वक्त अपने घर लखनऊ में थी। नायक अस्पताल में सभी बातें प्रेमिका को बताता है तो वो नायक को छोड़कर चली जाती है। नायक स्वतः दुःख में है। दो बेटी की माँ मुस्लिम महिला अपने बच्चे को खोकर दुःखी है। तीनों दुःखी हैं। कहानी दुखान्त पर समाप्त होती है।
कहानी में इश्क़ मुबारक नहीं रह जाता। इश्क़ में बार बार हवस प्रवेश कर जाता है और प्रेम की पराकाष्ठा पर से प्रेम नीचे लुढ़क जाता है। देश में ऐसे ही हिन्दू मुस्लिम बहुत है, ऐसे में मुस्लिम शादीशुदा दो बेटियों की माँ का इतनी आसानी से घर में झूठ बोलकर नायक के साथ जयपुर जाना और शारीरिक संबंध बनाना पचने वाली बात नहीं है जबकि महिला अपने ससुराल में खुश है। गर्भावस्था में संबंध बनाना जो दोनों, बच्चा और जच्चा के लिए खतरनाक है, किस प्रेम और इश्क़ को बताता है?
पूरी पुस्तक में इतनी आसानी से संबंध बन रहे कि लगता है कोई यूरोपीय देश की कथा हो। कमजोर कथ्य के साथ शिल्प भी सामान्य है। बहुत प्रभावशाली तरीके से कहानी नहीं बढ़ती। जिन लोगों ने ‘आई लव यू’ पढ़ी है उन्हें काफी निराशा होगी।
राघवजी के पास अनेक कहानियाँ हैं। कवर पर गिटार दिया ही था। सामान्य प्रेम पर कोई कहानी होती जिसमें सरसों के पीले फूलों के बीच नायक गिटार बजाता तो पुस्तक बेस्ट सेलर थी ही पढ़ने के बाद और हिट हो जाती। खैर।
मैं पढ़कर निराश नहीं हूँ। हाँ, अपेक्षा ज्यादा थी और इसकी कहानी मुझे पसंद नहीं आयी। समाज को कोई खास मैसेज नहीं गया और ना ही स्वस्थ प्रेम की बढ़ोत्तरी हुई। इस कहानी में भी हिन्दू मुस्लिम पात्र नहीं होता और इतनी आसानी से संबंध नहीं बनते तो शायद यही कहानी कुछ और बेहतर होती।
इनसे बहुत अपेक्षाएँ हैं इसलिए भविष्य की शुभकामनाएँ अवश्य दूँगा।