सर्वप्रथम “आँखिन भादो मास” भोजपुरी गजल संग्रह के लिए ‘ऐनुल बरौलवीजी’ को बधाई और शुभकामनाएँ. इस पुस्तक का प्रकाशन के.बी.एस प्रकाशन, दिल्ली ने आकर्षक रंगीन आवरण के साथ हार्ड बाइंडिंग मूल्य ₹ 200 रखकर किया है. इस पुस्तक में कुल 116 गजलें हैं. किसी भी स्थानीय भाषा में कोई साहित्यिक रचना लिखना चुनौतीपूर्ण कार्य होता है. अभी भोजपुरी भाषा का प्रचार प्रसार भारतीय लोगों के द्वारा विश्व के अनेक देशों में किया जा रहा है, बोलने वाले लोगों की संख्या में दिनों दिन वृद्धि हो रही है तथापि क्षेत्र विशेष की भाषा में लिखने का साहस बहुत कम लोगों में है.
इस पुस्तक की भूमिका में डॉ. जौहर शफियाबादी, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, पटना ने बहुत महत्वपूर्ण जानकारी दी है. उन्होंने बताया है कि गजल की गंगोत्री गोमुख देव भाषा संस्कृत के शेर को देखा जाये और इसमें इस प्रार्थना का उदाहरण दिया है.
“नमामि शमीशान निर्वाण रूपं, विभूं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं. निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेअहं, निराकार मोंकारमूलं तुरीयं, गिरा ज्ञान गोतीतमीशं गिरीशं, करालं महाकाल कालं कृपालं, गुणाकार संसार पारं नतोअहं.”
उन्होंने बताया है कि इस गजल में रदीफ़ का प्रयोग नहीं हुआ है लेकिन काफिया, वजन, बहर और भाव पक्ष का सारा लालित्य उपस्थित है. यह एक अद्भुत जानकारी उन्होंने दी है.

भोजपुरी भाषा में ग़ज़ल पढ़ने का मेरा यह पहला अनुभव है और मुझे पढ़ते हुए बेहद प्रसन्नता हो रही है. नयेपन का बोध ऐसे ही अलौकिक आनंद देता है.

बरौलवीजी की गजलों में सत्ता के प्रति रोष, व्यवस्था के प्रति आक्रोश और जन जीवन को मिलने वाली सुविधाओं की कमियों को उजागर करने का माद्दा है और साहित्यिक रूप से उंगली उठाती हुई रचनाएँ हैं. प्रेम या श्रृंगार की रचनाएँ कम हैं तथापि अच्छा अनुभव रहा.
इनके कुछ शेर देखें-
“पाइब ना प्यार इहाँ आइल आँखिन भादो मास,
सूना श्रृंगार इहाँ आइल आँखिन भादो मास,
झाँक के देखीं हमरो हिया में कइसन दशा भइल,
होता चितकार इहाँ आइल आँखिन भादो मास.”

दूसरी ग़ज़ल में लिखते हैं कि
“देख लीं सौगात ई आँखिन भादो मास,
रोजे बा बरसात ई आँखिन भादो मास,
छोड़ के गँउवा शहर जे अइले ‘ऐनुल’
दुख के बा बारात ई आँखिन भादो मास.”

इनकी रचनाओं में श्रमिक की बात दिल तक पहुँचती है. आम मजदूरों के दर्द को बयां करते इनके शेर देखें-
“कतना हमके नाच नचवलस ई रोटी,
कलकत्ता पंजाब घुमवलस ई रोटी,
दर-दर के ठोकर खइनी मजबूरी में,
कइसन- कइसन काम करवलस ई रोटी.”
पंक्तियाँ बेहद हृदयस्पर्शी हैं, चार पंक्तियों में शायर ने बहुत बड़ी बात कह दी है.

एक जगह लिखते हैं कि
“काहे सूरज में अब चमक नइखे,
फूल में अब मिलत महक नइखे,
कुछ तअ वातावरण बदलल बा,
आज पंछी में ऊ चमक नइखे.”

बिहार की बात हो और बाढ़ की चर्चा नहीं हो यह कैसे संभव है. इनकी गजलों में बिहार के बाढ़ की विभीषिका की चर्चा है कि
“बाढ़ के आगे बेबस बिहार,
आगे ना पीछे टसमस बिहार,
गाँव शहरन के हालत एके,
पानी-पानी भइल बस बिहार.”

इनके भाईचारा वाले कुछ शेर मंत्रमुग्ध कर देते हैं. पंक्तियों को देखें कि
“घर के मत बाजार करीं,
प्यार के मत व्यापार करीं,
राखीं घर के बात घरे,
कबहूँ मत अखबार करीं.
मिलजुल के अब रहीं सभे,
भाई-भाई प्यार करीं,
नफरत के तोरीं जंजीर,
घर में मत दीवार करीं.”

कुल मिलाकर भोजपुरी भाषा में लिखी हुई गजलों के इस संग्रह में आमजन की बात, समस्याएँ हैं, सत्ता के प्रति एक आम जन का विरोध, रोष दिखता है. हालाँकि राजनीतिक पार्टियों के नाम या खास व्यक्तियों के नाम को मैं शेर ओ शायरी में प्रयोग करने का विरोधी रहा हूँ कारण कि रचनाओं को मैं किसी कालखंड, किसी खास व्यक्ति या खास स्थान के साँचे में नहीं देखता. मेरा स्पष्ट मानना है कि रचनाएँ कालजयी होती हैं और इसे जब 20 साल, 30 साल बाद पढ़ी जायेगी तो लोगों को शायद वह नाम, वह स्थान व स्थिति विशेष याद ना रहे तो समय के हिसाब से यह शेर या यह रचना पुरानी हो जायेगी. मुख्यमंत्री के नाम वगैरह से बचना चाहिए था तथापि सम्पूर्णता में बढ़िया संग्रह है. भोजपुरी भाषा में पढ़ने को मिली यही अपने आप में बहुत है. अंत में मैं बरौलवीजी को पुनः बधाई और भविष्य हेतु शुभकामनाएँ देता हूँ.

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बचपन से साहित्य पढ़ने का शौक. अनेक भाषाओं की पुस्तकें पढ़कर अपना विचार देना. तत्पश्चात पुस्तकों की समीक्षा करना. फिर लिखना प्रारम्भ. अब तक “अवली”, “इन्नर” “बारहबाना” और “प्रभाती” का सफल सम्पादन.