दर्जन भर प्रश्न” में कवि/ गीतकार डॉ. विष्णु सक्सेना

व्यक्ति परिचय:-
नाम:- डॉ. विष्णु सक्सेना.
जन्म तिथि व स्थान– 12 जनवरी. सहादतपुर, सिकंदरा राऊ, हाथरस, उत्तर प्रदेश.
शिक्षाबी ए एम एस. (राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर)
पारिवारिक जानकारी:- पिता- स्व. नारायण प्रकाश सक्सेना, माता- स्व. सरला देवी
पत्नी/बच्चे:- श्रीमती वंदना सक्सेना, पुत्र- सारांश और चित्रांश, पुत्रवधू- श्रीमती प्रिया एवं श्रीमती स्वेच्छा.
विशेष कार्य (वर्तमान):- भागवत गीता के श्लोकों का मुक्तक के रूप में अनुवाद. “गीता कहती है” पुस्तक प्रकाशनाधीन.
उपलब्धियाँ:- इन्होंने अनेक देशों में कवि सम्मेलनों में भाग लिया है. हिंदी कवि सम्मेलनों में 38 वर्षों से सफल भागीदारी और बहुत लोकप्रिय गीतकार हैं.
पुरस्कार:- यश भारती सम्मान, लखनऊ से लेकर देश और विदेशों के अनेक सम्मानों से सम्मानित.
पुस्तक:- ‘मधुबन मिले ना मिले’, ‘खुशबू लुटाता हूँ मैं’, ‘स्वर अहसासों के’, ‘आस्था का शिखर’,  सम्पादन- ‘लोकप्रियता के शिखर गीत’.
संपर्क:- संस्कार, दयाल क्लीनिक, पुराना तहसील रोड, मतकोटा, सिकंदरा राऊ, हाथरस, उत्तर प्रदेश, पिन- 204215. मोबाईल- 9412277268. ईमेल- [email protected]

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“दर्जन भर प्रश्न”

डॉ. विष्णु सक्सेना से विभूति बी. झा के “दर्जन भर प्रश्न” और श्री सक्सेना के उत्तर:-

विभूति बी. झानमस्कार. सर्वप्रथम आपको अपने राज्य, देश का नाम ऊँचा करने हेतु बधाई, शुभकामनाएँ.

  1. पहला प्रश्न:- आप मंच, रेडियो, टी.वी. से होते हुए लाइव शो के चहेते बन गये हैं. आज “विष्णु सक्सेना” स्वतः एक ब्राण्ड नाम हैं?  आपकी पंक्ति-

        “रेत पर नाम लिखने से क्या फायदा,
         एक आई लहर कुछ बचेगा नहीं,
         तुमने पत्थर सा दिल हमको कह तो दिया,
         पत्थरों पर लिखोगे मिटेगा नहीं..” सुनकर लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं.
         “प्यास बुझ जाये तो शबनम खरीद सकता हूँ,
         जख्म मिल जाये तो मरहम खरीद सकता हूँ,
         ये मानता हूँ कि मैं दौलत नहीं कमा पाया,
         मगर तुम्हारा हरेक गम खरीद सकता हूँ.” सुनकर लोग भाव-विभोर हो जाते हैं.
         पूरी दुनियाँ में आपके गीतों के प्रशंसक हैं. दर्शकों/ श्रोताओं की इतनी अच्छी प्रतिक्रियाओं पर आपकी टिप्पणी?

श्री सक्सेना के उत्तर– मैं इसमें प्रभु कृपा अधिक मानता हूँ. क्योंकि बिना ऊपर वाले की मर्ज़ी के आप इतना सब कुछ नहीं कर सकते. उसने ही हमें ये कला दी है. बस उसकी दी हुई कला का ईमानदारी से प्रचार प्रसार कर रहा हूँ. ये तो सर्वथा सत्य है कि जब कोई आपकी तारीफ करेगा तो स्वाभाविक है अच्छा तो लगेगा ही. प्रशंसा हमारी पूँजी हैं. इस पूँजी को दिन प्रतिदिन बढ़ाना ही हमारा दायित्व है, यही हमारे ईश्वर के प्रति सच्ची आराधना है.

  1. प्रश्न:- चिकित्सा और साहित्य, दोनों दो विधा है. डॉ. विष्णु सक्सेना कवि/ गीतकार कैसे बने? इस साहित्यिक यात्रा की शुरूआत कहाँ से हुई और राह में कौन-कौन से पड़ाव आये?

उत्तर:- ये सवाल तो देखने में बहुत छोटा है लेकिन जवाब बहुत बड़ा देना पड़ेगा मुझे. ये सच है दोनों विधाएँ अलग-अलग हैं. मेरे पिता चाहते थे कि मैं डॉक्टर बनूँ, तो वो बनने चला गया. लेकिन जगत पिता चाहते थे कि मैं कवि बनूँ. दोनों पिताओं के आदेश का पालन करना मेरा दायित्व था, वो कर रहा हूँ. संगीत, कविता का शौक बचपन से था. वही धीरे-धीरे पनपता रहा, जैसे ही अनुकूल वातावरण मिला, शौक पुष्पित और पल्लवित हो गया. इसमें मेरे परिवार, आकाशवाणी, दूरदर्शन ने मेरा सकारात्मक बहुत सहयोग दिया. फिर ऋषभदेव के बागड़ी कवि उपेंद्र अनु ने कवि सम्मेलनों की दुनिया से ऐसा परिचित कराया कि फिर पीछे मुड़कर नही देखा. सब कैसे अपने आप होता चला गया, मुझे नहीं पता.

  1. प्रश्न:- आपके साहित्य के पसंदीदा रचनाकार कौन-कौन हैं? आपका नाम किन कवियों, साहित्यकारों के साथ लिया जाये? आपकी क्या इच्छा है?

उत्तर– मेरे पसंदीदा कवि श्री हरिवंश राय बच्चन, श्री गोपाल दास नीरज, श्री कुंवर बेचैन, भारत भूषणजी, श्री गोपाल सिंह नेपाली इत्यादि रहे. मेरा नाम किसके साथ लिया जाए ये तो मेरी इच्छा से कुछ नहीं होगा. ये तो आपका काम बतायेगा कि आप किस केटेगरी में रखने लायक हैं. मैं इन सबमें विश्वास नहीं रखता. अपना काम ईमानदारी से करते चलो, बस.

  1. प्रश्न:- आपके प्रेम गीत, मुक्तक श्रोताओं से सीधा संवाद करते हैं. आप जब कहते हैं कि
    “बरसात भी नहीं पर बदल गरज रहे हैं, सुलझी हुई है जुल्फें और हम उलझ रहे हैं, मदमस्त एक भंवरा क्या चाहता कली से, तुम भी समझ रहे हो, हम भी समझ रहे हैं” श्रोता झूमने लगते हैं. आपकी ज्यादातर रचनाएँ प्रेम केन्द्रित हैं. इस प्रेम/ श्रृंगार विषय को चुनने की मुख्य वजह? आपकी नजर में प्रेम क्या है?

उत्तर– मैं जिस वक्त मंच पर आया उस वक्त अधिकतर कवि या तो हास्य लिख रहे थे या फिर वीर रस. प्रेम पर लिखने वाले बहुत कम थे इसीलिए लोग गीत को सुनना ही भूलते जा रहे थे. मैंने रिस्क लिया और प्रेम पर लिखना शुरू कर दिया. ये तो प्रभु कृपा ही मानिए कि लोगों ने मेरे लेखन को इज़्ज़त देकर सुनना शुरू कर दिया. मेरी आसान शब्दावली लोगों से सीधे संवाद करती थी इसलिए सब लोग मेरी कविता के प्रति आकर्षित होते चले गये.
मेरी नज़र में प्रेम एक ऐसा फिनोमिना है जिसके वगैर हम जी नहीं सकते. जीवन का आधार ही प्रेम है.

  1. प्रश्न:- आपकी कविताओं/ गीतों में विरह, दर्द, धोखा, राजनीति और असंतोष के बदले प्रेम, मीरा, राधा, दैनिक जीवन, सामाजिक जीवन और व्यावहारिक जीवन को छूतीं पंक्तियाँ होती हैं. सामान्य जन को ज्यादा ग्राह्य भी यही होता है. पिछले वर्ष जनवरी में बिहार के एक गाँव की बस में बजता आपका गीत बहुत वायरल हुआ था. इन प्रेम गीतों को लिखने की प्रेरणा आपको कहाँ से मिलती है?

उत्तर:- हमारे बड़े कवि डा. कुंवर बेचैनजी ने एक जगह कहा है कि-
“जो वक्त की आँधी से खबरदार नहीं है,
कुछ और ही होंगे वो कलमकार नहीं है..
बस, वक्त की जो माँग थी उसी के मुताबिक लिखते रहे. अब कौन सी कविता वायरल होती है ये उसके भाग्य पर निर्भर है, मेरा इसमें कोई रोल नहीं है. रही बात प्रेरणा की तो यह स्वस्फूर्त प्रेरणा है.

  1. प्रश्न:- आजकल हिन्दी भाषी घर में भी बच्चों से हिन्दी में बात करना पसंद नहीं करते. क्या आप मानते हैं कि हिन्दी भाषा/ हिन्दी कविताओं का अस्तित्व संकट में है? मोबाईल युग आने से हिन्दी पर इसका क्या प्रभाव पड़ा है?

उत्तर:- देखिए हमारी हिंदी को, हिंदी कविता को और हमारी भारतीय संस्कृति को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाया है कान्वेंट कल्चर ने. या यूँ कहें इंग्लिश मीडियम के स्कूलों ने. इन स्कूलों में अगर कोई बच्चा हिंदी बोल देता है तो उस पर फाइन लगा दिया जाता है. कोई भी सरकार इस तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं देती. हमें हमारी जड़ों से मज़बूती से जो जोड़ती है, वो है हमारी भाषा. वो तुलसी दास, सूरदास, कबीर दास को नही जानेंगे तो हमारी संस्कृति को कैसे जानेंगे? जिस दिन हम अपनी संस्कृति को भूल गए समझ लीजिए हम खत्म. बची खुची कसर मोबाइल ने पूरी कर दी है. हमारे बच्चों का बचपन ही छीन लिया है इसने.

  1. प्रश्न:- नये कवियों/ रचनाकारों, ग्रामीण, छोटे स्थानों के कवियों/ रचनाकारों को जो अच्छा लिखते हैं परन्तु संसाधन नहीं होने के कारण प्रकाशक गंभीरता से नहीं लेते, मंच नहीं मिलता. खासकर नये कवि को प्रकाशक छापना नहीं चाहते, उनको आप क्या सलाह देंगे?

उत्तर:- ऐसा नहीं है कि नये लोगों को मंच नहीं मिल रहे, या नये लोगों को कोई छापना नहीं चाहता. दरअसल नये लोग बहुत जल्दी में हैं. खुद को परिपक्व बनाये, अपने लेखन को भी और अपनी सोच को भी. जिस दिन आपके लेखन में मैच्युरिटी आ जायेगी प्रकाशक आपके घर आयेंगे. मंच खुद आवाज़ देंगे. सफलता के लिए किसी शॉर्टकट को नहीं अपनाएँ.

  1. प्रश्न:- आजकल कवियों की बाढ़ आ गयी है, ज्यादातर अचानक से आकर छा जाने की इच्छा रखते हैं. साहित्य जीवन यापन का साधन भी नहीं रह गया है. साहित्य में अपना भविष्य तलाश रहे नयी पीढ़ी के रचनाकारों, नये कवियों को आप क्या सलाह देंगे?

उत्तर– ये बात मैंने अभी कही है. जल्दबाजी मत करिए. साहित्य भी कैरियर बन सकता है लेकिन पूरी तैयारी के साथ मैदान में आइये. आजकल तो अनेक प्लेटफार्म हैं अपना हुनर दिखाने के लिए. अकेला मंच ही थोड़े है.

  1. प्रश्न:- आप मानते हैं कि कवियों में, कवि सम्मेलनों में, साहित्य में भी गुटबाजी, किसी को नीचा या ऊपर कराने का, जुगाड़ का खेल होता है? दिया जाने वाला पुरस्कार भी इन बातों से प्रभावित होता है?

उत्तर:- कहाँ नहीं है गुटबाजी. और ये चीज कोई बुरी भी नहीं है. ग्रुप में काम करने से गुणवत्ता निखरती है. कोई भी गुटबाजी किसी को आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती. फूल की खुशबू को आज तक कोई बंद मुठ्ठी नहीं रोक पाई है. योग्यता हमेशा पूजी गयी है. देर हो सकती है अंधेर नहीं.

  1. प्रश्न:- आपकी नजर में आज के रचनाकारों में पाँच ऐसे नाम बताएँ जिनसे आपको साहित्य में उम्मीदें हैं?

उत्तर:- आज के मंचीय कवियों में मुझे जिनसे सबसे अधिक उम्मीद है वो पाँच नाम हैं- श्री बलराम श्रीवास्तव, चिराग जैन, राजीव राज, स्वयं श्रीवास्तव और पंकज पलाश.
और भी बहुत सारे लोग हैं जो उल्लेखनीय हैं लेकिन आपने 5 पूछे हैं इसलिए पाँच बता दिए.

  1. प्रश्न:- कविता के सन्दर्भ में आपकी क्या इच्छा है? और अपनी भावी योजना अगर बता सकें?

उत्तर– कविता तराशने की शिक्षा देने हेतु एक स्कूल होना चाहिए, अगर यह न हो सके तो कविता कैसे लिखें, उसका मर्म कैसे जानें तथा कविता का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है ये विषय बच्चों को पढ़ाये जाने चाहिए.
युवा कविता की तरफ अधिक से अधिक उन्मुख होने चाहिए, ये मेरी योजनाओं में है.

  1. प्रश्न:- आपकी लिखी सबसे प्रिय पंक्तियाँ कौन सी हैं और आज आप लोगों से क्या कहना चाहेंगे? कुछ पंक्तियाँ हो जाये.

उत्तर:- मेरी लिखी सभी पुस्तकों में जो अभी प्रकाशनाधीन है “गीता कहती है” वह मुझे बहुत अच्छी लगती है. इसमें मैंने गीता के सभी श्लोकों का मुक्तकों में अनुवाद किया है. संदेश के रूप में यही कहना चाहूँगा-
“आसमां छू लो अगर तुम तो फूल मत जाना,
ये हिंडोला गुरूर का है झूल मत जाना,
करो भला जो किसी का तो याद मत रखना,
करे तुम्हारा भला उसको भूल मत जाना.”

विभूति बी. झा:- निश्चित रूप से ‘गीता के सभी श्लोकों का मुक्तकों में अनुवाद’ अद्भुत रचना होगी. हम सभी प्रतीक्षारत हैं. बहुत-बहुत धन्यवाद. आपको भविष्य की अशेष शुभकामनाएँ.

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इनकी पुस्तकें:-

बचपन से साहित्य पढ़ने का शौक. अनेक भाषाओं की पुस्तकें पढ़कर अपना विचार देना. तत्पश्चात पुस्तकों की समीक्षा करना. फिर लिखना प्रारम्भ. अब तक “अवली”, “इन्नर” “बारहबाना” और “प्रभाती” का सफल सम्पादन.