आज ‘पाखी’ मई, 2020 अंक में छपी श्रीमती प्रियंका ओमजी की लिखी कहानी ‘पजल का हल’ (Puzzle) पढ़ी। कहानी पढ़ने पर याद आयी कि ये “वो अजीब लड़की” पुस्तक की लेखिका हैं, जिसे मैंने पढ़ी है। उनकी हिन्दी और एक टीवी पर उस पुस्तक की चर्चा से प्रभावित होकर ही ‘वो अजीब लड़की’ पुस्तक पढ़ी थी लेकिन मुझे उसकी कहानियाँ बिल्कुल ही पसंद नहीं आयी थी। कुछ वयस्क कहानियों जैसी पुस्तक लगी थी। कथ्य और शिल्प भी कमजोर लगा था। कुछेक कहानियों के बाद लगने लगता है कि रचनाकार का पसंदीदा विषय यही है।
रचनाओं की विविधता रचनाकार को महान बनने के रास्ते पर ले जाती है।
ये कहानी “पज़ल का हल” मुझे उनकी पूर्व की रचनाओं से अलग और बहुत अच्छी लगी इसलिए मैं अपने आप को ना रोककर इस कहानी पर अपने विचार लिख रहा हूँ।
कहानी इस प्रकार है।
भारत से एक परिवार तंजानिया गया है। परिवार में पति पत्नी और एक छोटा बच्चा है। बच्चे को स्कूल की क्लास में एक भारतीय बच्ची मिलती है जो उसे अपने घर के किस्से बताती है। वो अपने छोटे भाई के साथ समय बिताती है, खेलती है और बहुत खुश रहती है जबकि यह अकेला बच्चा घर में सिर्फ टीवी देखता है। भारत में था तो क्रिकेट खेलता था। धोनी की तरह क्रिकेटर बनना चाहता था लेकिन तंजानिया में लाचार होकर सॉकर खेलता है। उस बच्ची की बात सुनकर बच्चा घर आकर अपनी माँ से छोटा भाई लाने की जिद करता है। माँ डाँट देती है। वो माँ की बातचीत सुनता है कि उसके जन्म के समय ही बहुत समस्या हुई थी। अब अगर दूसरे संतान का प्रयास हुआ तो माँ की जान जा सकती है। बच्चा उदास और निराश रहने लगता है। फिर आगे वही बच्ची एक दिन इसे बताती है कि …..।
बच्चा घर आकर माँ से वही प्रश्न करता है और माँ को इस प्रश्न में ही बहुत सुन्दर हल दिखता है। यही इस कहानी का शीर्षक “पजल का हल” है।
बच्ची की बतायी बात मैंने इसलिए नहीं लिखी कि पाठक इस कहानी को पढ़ें और हल देखें। पाखी का ऑनलाइन संस्करण 25 रुपये में मिल रही।
इस कहानी में एकल परिवार की समस्या और बच्चों के मनोभावों का सुन्दर चित्रण है। दोनों के संवाद आपसी बोलचाल के हैं। बहुत बड़ी कहानी नहीं है लेकिन कोई कोई संवाद सोचने को विवश करता है। एक जगह लेखिका लिखती हैं कि बच्चों में रिश्तों को समझाने के लिए और रिश्तों का अस्तित्व बचाये रखने के लिए कम से कम दो बच्चे बेहद जरूरी हैं नहीं तो आने वाले समय में चाचा या बुआ जैसे रिश्ते लोप हो जायेंगे। कहानी में संयुक्त परिवार की महत्ता दिखती है। एक इशारा यह भी है कि शौक या आपसी प्रेम ना सही, आवश्यकता भी रिश्ते को जोड़कर रख सकती है। मैं मानता हूँ कि जिस कहानी में प्रश्न के साथ उसके हल का भी ईशारा हो, वो कहानी ज्यादा लोकप्रिय होगी। कुल मिलाकर यह एक अच्छी पारिवारिक कहानी है।
प्रियंका ओमजी को बधाई, शुभकामनाएँ।

बचपन से साहित्य पढ़ने का शौक. अनेक भाषाओं की पुस्तकें पढ़कर अपना विचार देना. तत्पश्चात पुस्तकों की समीक्षा करना. फिर लिखना प्रारम्भ. अब तक “अवली”, “इन्नर” “बारहबाना” और “प्रभाती” का सफल सम्पादन.