सर्वप्रथम “कामरेड” पुस्तक के लिए श्री अंकुर मिश्राजी को बधाई, शुभकामनाएँ. इस पुस्तक का प्रकाशन यश पब्लिकेशंस, दिल्ली ने आकर्षक रंगीन आवरण में मूल्य रुपये 199 रखकर किया है. 103 पेजों की यह पुस्तक 11 कहानियों से सुसज्जित है. अंकुर मिश्राजी की इससे पूर्व एक पुस्तक आई थी “द जिंदगी”. उनकी यह दूसरी पुस्तक है और इस पुस्तक में उन्होंने पूर्व की पुस्तक की तुलना में कथ्य और शिल्प की दृष्टि से अपने को बहुत परिमार्जित किया है. इस पुस्तक की कहानियों में भिन्नता है. किसी एक साँचें में सभी कहानियाँ नहीं बैठेंगीं. ‘द जिंदगी’ और ‘कॉमरेड’ के बीच का फासला लेखक ने बहुत कम समय में तय किया है. कथ्य और शिल्प की दृष्टि से ‘कॉमरेड’ पुस्तक ‘द जिंदगी’ से बहुत ऊपर है. इसमें लेखक की मेहनत दिखती है, प्रयास दिखता है और उपलब्धि भी दिखती है. लेखक ने अपने लेखन में उत्तरोत्तर विकास किया है. शराब और सिगरेट पीने का तरीका, उसका वर्णन बढ़िया है, अर्थात भविष्य में इनमें मुझे एक सस्पेंस थ्रिलर, मर्डर मिस्ट्री तरह की कहानियों का लेखक दीख रहा. आजकल नयी उम्र के लेखक जिस तरह निकलकर आ रहे, लगता है कि हिन्दी साहित्य का प्रकाश कभी मद्धम नहीं होगा.
अब कहानियों पर आऊँ.

‘कॉमरेड’ कहानी जो कि इस पुस्तक का नाम भी है, एक दुखांत कहानी है. एक व्यक्ति एक जगह काम करने वाले असंगठित मजदूरों का नेता बन जाता है. फिर आंदोलन की बात होती है और जब आंदोलन आगे बढ़ने लगता है तो सारे लोग जिनके लिए यह आन्दोलन है, विवश होकर धीरे-धीरे मालिक से मिल जाते हैं. व्यक्ति अकेला पड़ जाता है और अंत में उस व्यक्ति को पूरे परिवार के साथ सामूहिक आत्महत्या कर सबकुछ समाप्त करना पड़ता है. यही समाज की सत्यता है. एक कमजोर जब अन्य कमजोरों की आवाज़ बन आगे बढ़ता है तो तत्काल के लाभ को देखते सभी इसे छोड़ मालिक से मिल जाते हैं. लम्बी लड़ाई की आगाज़ तो होती है लेकिन पारिवारिक विवशता इस एकता को तोड़ देती है. अधिकार, कर्त्तव्य और परिवार चलाने की जिम्मेदारी जब आमने सामने हो तो आज कौन जीतेगा? एक नायक हिम्मत हार अपना सब समाप्त कर लेता है. लेखक ने दोनों पक्षों के संवादों को विस्तृत रूप से एक बहस की तरह रखा है. इसके संवाद बहुत सीधे और मर्मस्पर्शी हैं. कहानी में मन लगा रहता है.

“ऐसे जिये हम तुम” कहानी में एक प्रेमी प्रेमिका के बीच पत्रों का आदान प्रदान होने की कथा है. इसमें युवक और युवती के प्रेम में आने के बाद की मनःस्थिति का रोचक वर्णन है.

“और वो मर गये” बहुत ही दुखद अंत की कहानी है. इसमें एक व्यक्ति का पुत्र जो पढ़ने में बहुत अच्छा है उसपर एक विधायक का पुत्र नशे में गाड़ी चढ़ा देता है. उसके पुत्र की मृत्यु हो जाती है. वह व्यक्ति अपने तया विधायक पुत्र को सजा दिलाने का बहुत प्रयास करता है लेकिन व्यवस्था से हार जाता है. अंत में वह व्यक्ति विधायक पुत्र की हत्या कर पति पत्नी दोनों आत्महत्या कर लेते हैं. एक तरफ बदले की कहानी दिखती है दूसरी तरफ सामाजिक व्यवस्था पर, ताकतवर लोगों पर और न्याय तंत्र पर एक प्रश्न चिन्ह उठाता व्यक्ति है. लेखक कहना चाहता है कि प्रत्येक व्यवस्था पैसे वाले, रसूखवाले और ताकतवर लोगों के हाथों की कठपुतली है. बदला या हिंसा का समर्थन करना अच्छी बात नहीं है लेकिन इस कमजोर कथ्य की कहानी को आकर्षक शिल्प से संभालने का प्रयास लेखक ने किया है.

आधा-अधूरा”, “खाली”, “कसक” “उत्सवरत गली” कहानियाँ भी अच्छी बन पड़ी हैं. इनमें लेखक ने अलग-अलग विषयों को अलग अंदाज में उठाया है.

अंतिम कहानी “हम मरने वाले हैं” में पति-पत्नी के संबंधों में अविश्वास, धोखा और अनेक लोगों के साथ (पुरुष या महिला) शारीरिक संबंध बनाने का परिणाम है. बहुत दुखांत कहानी है. इसमें पति को अनेक स्त्रियों से शारीरिक संबंध रखने की वजह से लाइलाज बीमारी हो जाती है. पति संकोच में है कि हाल के वर्षों में हुए अपने बच्चों में भी शायद यह बीमारी पहुँच गयी हो और पत्नी के प्रति हमेशा अपने को अपराध बोध भाव में रखता है. अंत में जिस समय वह पत्नी को बताना चाहता है कि वह इस खास बीमारी से ग्रसित है और उसकी जिंदगी के दिन कम है तो पति के बताने से पहले पत्नी ही आकर माफी माँगते हुए बताती है कि वह इस लाइलाज बीमारी से ग्रसित है और उसके किसी अन्य पुरुष के साथ सम्बन्ध थे. पति अपनी बात मन में ही रख लेता है. उसे पत्नी की बेवफाई दिखती है और पति के अन्य महिलाओं के साथ संबंध है यह बात खुलकर सामने नहीं आती. पत्नी अपने को दोषी मानती है कि उसी की वजह से यह बीमारी इस घर में आयी है. कथा में नाटकीयता है लेकिन लिखने का तरीका रोचक है.

कुल मिलाकर अंकुर मिश्राजी की यह पुस्तक कथ्य और शिल्प की दृष्टि से ठीक है. पिछली पुस्तक से इसकी गुणवत्ता बढ़ी है. लेखक बैंकर हैं और साहित्य के क्षेत्र में प्रयास कर रहे तो समर्थन आवश्यक है. भविष्य की शुभकामनाएँ.

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बचपन से साहित्य पढ़ने का शौक. अनेक भाषाओं की पुस्तकें पढ़कर अपना विचार देना. तत्पश्चात पुस्तकों की समीक्षा करना. फिर लिखना प्रारम्भ. अब तक “अवली”, “इन्नर” “बारहबाना” और “प्रभाती” का सफल सम्पादन.