सर्वप्रथम श्री सुनील पंवारजी को “एक कप चाय और तुम” पुस्तक हेतु बहुत-बहुत बधाई, शुभकामनाएँ. इस पुस्तक का प्रकाशन ‘सृष्टि प्रकाशन’ ने आकर्षक रंगीन कवर में मूल्य रुपये 150 रखकर किया है. 109 पेजों की इस पुस्तक में 18 पेजों में कुछेक रचनाकारों, साहित्यप्रेमियों के विचार और विवरणी हैं, 91 पेजों में कहानियाँ हैं. सुनील पंवारजी ने इस पुस्तक को अपने स्वर्गीय भाई सुखदेव पंवार ‘सुखिया’ को समर्पित किया है. लेखक का बचपन बहुत गरीबी में बीता और बहुत मुश्किल से रद्दी वाले से पत्र-पत्रिकाएँ लेकर पढ़ते थे. साहित्य के प्रति उनकी रूचि बचपन से थी और अपनी मेहनत से आज वे अध्यापक हैं.

इस पुस्तक में 20 छोटी-छोटी कहानियाँ हैं. कोई भी बड़ी कहानी नहीं है और कोई भी लघुकथा नहीं है. ये कहानियाँ लघुकथा के व्याकरण पर नहीं आयेंगीं इसलिए इसे लघुकथा कहना उचित नहीं होगा. प्रत्येक कहानी की शुरुआत में उस कहानी के अनुरूप प्रभावशाली एक चित्र है जो कहानी के शीर्षक के अनुरूप है, सुन्दर लगता भी है. छोटी कहानियों को जब पाठक पढ़ना प्रारंभ करता है और कथा उठान पर होती ही है कि समाप्त हो जाती है. प्रत्येक कहानी हवा का एक झोंका है. यह झोंका क्षणभर में एक बार छूकर निकल जाता है. लेखक ने छोटी-छोटी भावनात्मक बातों को, प्रेम में पड़े व्यक्ति की मनोदशा, जातिगत, सामाजिक मुद्दों को और राजनैतिक सच्चाई को छोटे प्रभावशाली तरीकों से बताने का बढ़िया प्रयास किया है. लेखक की यह पहली पुस्तक है, बहुत ज्यादा शिल्प की अपेक्षा रखना न्यायसंगत नहीं है तथापि उन्होंने कोशिश की है. इनका लेखकीय कर्म उम्मीद जगाने में सक्षम है.

‘एक कप चाय और तुम’ कहानी में प्रेम का इजहार करने के लिए प्रेमिका को चाय के लिए घर में बुलाना, बताना और फिर चाय पीकर प्रेमिका की स्वीकारोक्ति है. बहुत छोटी सी कहानी है लेकिन लिखने का अंदाज निराला है. आम प्रेम कहानियों जैसी भाषा नहीं है. यह पुस्तक अलग-अलग सन्दर्भों की कहानियों का संगम है.

पुस्तक में बीच-बीच में जातिप्रथा पर आधारित चार कहानियाँ हैं. जाति विशेष को मंदिर में प्रवेश से वंचित रखना या स्कूल में उसके साथ भेदभाव होने की चर्चा है. हालाँकि यह बहुत हद तक मिटा है तथापि समाज की एक सच्चाई को ही इन कहानियों में लेखक ने रखा है. ये कहानियाँ समाज पर, इस भेदभाव पर गंभीर चोट करतीं हैं. इन कहानियों में एक दर्द छुपा है. बाल सुलभ प्रश्नों के उत्तर मुश्किल हैं. ये बातें आज भी मुँह बाये खड़ीं हैं. विचारनीय तो हैं ही.

‘बिन पते की चिट्ठियाँ’, ‘आखरी कॉल’, ‘चौकीदार’, ‘वो रात’ और ‘रत्ती भर धूप’ कुछ कहानियाँ हैं जो मन को छूतीं हैं. पाठक को और की अपेक्षा रहती है. छोटी कहानी की खासियत भी यही है, हलकी सी थपकी दे निकल जाना. लेखक बड़ी कहानी भी लिखें तो शायद और प्रभावशाली बने.

मैं इन छोटी कहानियों की पुस्तक को एक नया प्रयोग ही कहूँगा क्योंकि लघुकथा के व्याकरण ने लेखक को उलझा दिया है. पाठक अब हमेशा उपदेश पसंद नहीं करते. छोटी कहानियों के माध्यम से अपनी बातों को कहने का एक नया और अच्छा प्रयोग है. अन्य कहानियाँ समीचीन हैं. पुस्तक ठीक ठाक है.

कमियों की बात करें तो पुस्तक में कहानियों के पात्रों के नामों की कमी खली. जब एक पुस्तक में एक ही नाम की नायिका अनेक कहानियों में होती है तो पाठक को कहानी याद रखने में असुविधा होती है. शायद कोई ख़ास नाम लेखक को प्रिय हो फिर भी भिन्न नामों की कहानी चिरस्थायी होती है. पुस्तक का मूल्य अगर 100 रुपये के आस-पास होता तो पुस्तक ज्यादा बिकती. मैं हमेशा कहता हूँ कि पुस्तक का मूल्य एक रुपए प्रति पेज से ज्यादा ना रखी जाये तो ज्यादा बिकेंगी. पुस्तक की प्रूफ्र रीडिंग शायद नहीं हुई है क्योंकि अनुस्वार वाली अनेक गलतियाँ हैं जो बीच में बहुत तंग करतीं हैं. पुस्तक के आवरण पर चित्रांकन सुंदर है. सुन्दर होना और उपयुक्त होना, दो बातें हैं. एक हाथ में एक कप है और उस कप के ऊपर कुर्सी टेबल पर एक युवक और एक युवती को बैठकर चाय पीते दर्शाया गया है, लेकिन लाल रंग में होने की वजह से यह एक सस्पेंस थ्रिलर, किसी मर्डर मिस्ट्री या प्रेम प्रसंग में हत्या जैसी कहानियों का संग्रह लगता है जबकि कहानियों में ऐसा कुछ भी नहीं है. आकर्षण, प्रेम में भावनात्मक और सामाजिक बातों को एक साफ़ सुथरे तरीके से, छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से कही गयीं हैं. प्रेम और शांति की बातें हैं.

कुल मिलाकर छोटी-छोटी 20 कहानियों से सुसज्जित इस पुस्तक को एक बार पढ़कर लेखक का उत्साहवर्धन करें. लेखक को भविष्य की शुभकामनाएँ.

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बचपन से साहित्य पढ़ने का शौक. अनेक भाषाओं की पुस्तकें पढ़कर अपना विचार देना. तत्पश्चात पुस्तकों की समीक्षा करना. फिर लिखना प्रारम्भ. अब तक “अवली”, “इन्नर” “बारहबाना” और “प्रभाती” का सफल सम्पादन.