“दर्जन भर प्रश्न” में हास्य कवि श्री शम्भू शिखर
व्यक्ति परिचय-
नाम– शम्भू शिखर
जन्म तिथि– 10/01/1984. मधुबनी, बिहार.
शिक्षा–
प्राथमिक/माध्यमिक/स्नातक- दिल्ली में ही शिक्षा.
स्नातकोत्तर- एम. ए. दिल्ली विश्वविद्यालय.
कार्यक्षेत्र-वर्त्तमान– हास्य कवि, अनेक शो और अनेक देशों के हिन्दी कवि सम्मेलनों में प्रस्तुति.
संपर्क– www.shambhushikhar.com
ईमेल- [email protected]
मोबाईल- 9999428213.
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दर्जन भर प्रश्न
श्री शम्भू शिखर से विभूति बी. झा के “दर्जन भर प्रश्न” और श्री शिखर के उत्तर:-
विभूति बी. झा– नमस्कार. सर्वप्रथम आपको अपने राज्य, देश का नाम ऊँचा करने हेतु बधाई, शुभकामनाएँ.
- पहला प्रश्न:– आप मंच, रेडियो, टी.वी. से होते हुए लाइव शो के चहेते बन गये हैं. आज“ शम्भू शिखर” स्वतः एक ब्राण्ड नाम है? आपकी पंक्ति ‘चीनी को जमा करके फिर से गन्ना बना दूँ”’सुनकर लोग हँसते हँसते लोटपोट हो जाते हैं. पूरी दुनियाँ में आपके प्रशंसक हैं. दर्शकों/ श्रोताओं की इतनी अच्छी प्रतिक्रियाओं पर आपकी टिप्पणी?
श्री शिखर के उत्तर– मैं अपना काम करता हूँ और काम के बदले में लोगों से जो प्यार मिलता है वही मेरी धरोहर है. मैं जब भी कभी कुछ लिखने के लिए बैठता हूँ तो यह ध्यान रखता हूँ कि मैं किस विधा का कवि हूँ. मेरा मूल स्वभाव क्या है कविता में? मंच पर मैं हास्य कवि के रूप में हूँ. हास्य ईश्वर की आराधना है. एक परिपक्व बुद्धि का व्यक्ति ही हास्य को समझ सकता है. जिनका मुझे प्यार मिलता है मैं उन सबों का बहुत आभारी हूँ. जितने भी माध्यम हो सकते हैं मैं उन सभी माध्यमों से लोगों से जुड़ने का प्रयास करता हूँ. मेरा मानना है कि बदलती हुई टेक्नोलॉजी के दौर में हमें उसे स्वीकार करना चाहिए ताकि हम आगे बढ़ सकें.
- प्रश्न:-बिहार की पृष्ठभूमि का व्यक्ति तो दिल्ली संघ लोक सेवा आयोग की इच्छा से आता है. आप हास्य कवि कैसे बने?
उत्तर:– मैं बहुत छोटी उम्र में दिल्ली आ गया था. मेरे पिताजी और बड़े भाई मुझे पढ़ाने के उद्येश्य से दिल्ली लाये थे. मेरे परिवार के सभी लोग नौकरी में अच्छे पदों पर थे. मेरे परिवार के सभी लोग सुबह उठकर मिल जुल कर नाश्ता वगैरह बनाकर तैयार हो कार्यालय जाते. मेरी भाभी भी पुलिस सेवा में थीं. सभी लोगों को सिर्फ रविवार को छुट्टी मिलती थी. उस दिन वो अपना जीवन जीने का प्रयास करते थे लेकिन जी नहीं पाते थे. मैं अपना मुक्त जीवन जीना चाहता था इसलिए मैं नौकरी नहीं करना चाहता था. मैं कोई ऐसा काम, कोई कला, कोई विधा चाहता था जिसके अंदर ऐसा कुछ प्रस्तुत करूँ जो शौकिया ना हो, जिसमें कोई बंधन नहीं हो और उससे जीवन यापन भी हो जाये. ईश्वर ने बड़ी कृपा की. मैं पहले गज़लें लिखता था और वही मेरी पहचान थी. गज़ल की एक पुस्तक प्रकाशित भी हो चुकी है और एक पुस्तक प्रकाशनाधीन है. धीरे-धीरे मैं कवि बना और हास्य कवि तो मैं बहुत बाद में बना.
- प्रश्न:- आपके साहित्य के पसंदीदा रचनाकार कौन-कौन हैं? आपका नाम किन हास्य कवियों, साहित्यकारों के साथ लिया जाये? आपकी क्या इच्छा है?
उत्तर– मेरा जो मूल स्वभाव है, मैं हास्य में हूँ, कवितायें लिख रहा हूँ मंचों पर हास्य कवि के रूप में जाना जाता हूँ लेकिन सच्चाई यह है कि मैं स्वभावतः एक आध्यात्मिक व्यक्ति हूँ. मेरी यह इच्छा कभी भी नहीं रही कि मुझे जाना भी जाये. मैं एक यात्रा पर हूँ और इस यात्रा में आप और बहुत सारे मित्र सहभागी हैं. हमलोग मिलकर यात्रा कर रहे हैं. यात्रा खत्म किस्सा खत्म. जब तक हैं तब तक सक्रिय यात्री के रूप में यात्रा चले, इसके अलावा हम कुछ भी नहीं चाहते हैं. पसंदीदा रचनाकार में बहुत बड़े बड़े नाम हैं. मेरे पसंदीदा कवियों में खासकर हास्य की बात करूँ तो सुरेन्द्र शर्माजी मुझे बहुत प्रिय हैं. उनका कवित्व तो अच्छा है ही लेकिन उनका व्यक्तित्व बहुत बड़ा है. काका हाथरसी मुझे हास्य के रूप में बहुत पसंद आये, प्रदीप चौबे मुझे बहुत पसंद आये. पसंदीदा साहित्यकारों में बताऊँ कि मैं जब भी कभी फुर्सत में होता हूँ तो मैं दिनकरजी की रश्मिरथी पढ़ना शुरू कर देता हूँ. इस पुस्तक की एक-एक लाइन जीवन का दर्शन है क्योंकि मेरा मानना यह है कि आध्यात्मिक व्यक्ति वही है जो जीवन के तमाम संघर्षों में रहते हुए वह यात्रा को संपूर्ण करता है, भागता नहीं है. इसलिए जब मैं दिनकरजी को पढ़ता हूँ तो बहुत प्रभावित होता हूँ और मेरे लिए सुकून का पल होता है, मुझे बहुत ऊर्जा मिलती है. अमृतलाल नागर और आचार्य चतुरसेन मेरे प्रिय लेखक हैं. नागरजी का ‘खंजन नयन’ जो सूरदास की जीवनी पर आधारित है और ‘नाचो बहुत गोपाल’ मुझे बहुत पसंद है. आचार्य चतुरसेन की कृति ‘वैशाली की नगरवधू’ भी बहुत पसंद है. यह सब मैं कई-कई बार पढ़ चुका हूँ. धर्मवीर भारती की रचनाएँ भी मुझे पसंद हैं. मुझे कविता में दिनकरजी और गद्य में आचार्य चतुरसेन सबसे ज्यादा प्रभावित करते हैं.
- प्रश्न:- आपकी कविताएँ श्रोताओं से सीधा संवाद करती हैं. आप जब कहते हैं कि ‘बिहार में शराब बंदी होने की वजह से आप दिल्ली में रहते हैं.’ या दिल्ली के लोग कीर्तन करते हैं“ “राधे-राधे जपो चले आयेंगे बिहारी, तो इस युग में वो बिहारी तो आयेंगे नहीं. हम बिहारियों को ट्रेनों में ठूँस-ठूँस कर आना पड़ता है”” तो बात सीधे दिलों को छूतीं हैं. अपने ऊपर का व्यंग्य सबसे उत्तम माना जाता है. ये व्यंग्य स्वतः आपके मन में आते हैं या सामने के श्रोताओं की माँग के अनुसार रचनाओं को ढ़ालते हैं.
उत्तर– जब आप मंच पर होते हैं तो मंच का एक ही अर्थ है वह अर्थ है मंचन. आप मंच पर अपनी कविता का मंचन करते हैं. जब हम किसी चीज का मंचन करते हैं तो उसके अंदर संवाद, उसके अंदर भाव भंगिमाएँ, उसके अंदर आपका पहनावा यानी सबकुछ आपके उस मंचन को सपोर्ट करना चाहिए. आपने कहा कि अपने ऊपर किया गया हास्य सबसे उत्तम होता है, वाकई उत्तम होता है. मेरा मानना है कि मेरे पास जो होगा वही हम लोगों को डिलीवर करेंगे. अगर हमारे पास पीड़ा है तो हम हास्य नहीं दे सकते. यह सारी चीजें लगभग मेरे भीतर से आती हैं, क्योंकि मैं मंच पर हूँ तो निश्चित तौर पर श्रोताओं की नब्ज को पकड़ना एक मँजे हुए कवि की, अच्छे प्रस्तुतिकर्ता की निशानी है कि जिसने श्रोताओं की नब्ज को पकड़ लिया. कोई भी कलाकार कभी किसी भी विधा का हो अगर उसने श्रोताओं की नब्ज को पकड़ लिया तो वह निश्चित तौर से सफल है. मैं अपनी कविताओं की ही बात नहीं करूँगा बल्कि वैसे गीतकार, संगीतकार और लेखक बहुत प्रसिद्ध हुए जिन्होंने श्रोताओं की और पाठक की नब्जों को पकड़ लिया. क्योंकि हम कवि हैं, मैं कविताओं के माध्यम से जुड़ता हूँ, कविताओं में सबकी लोकप्रियता नहीं होती है. बहुत बार थोड़े समय के लिए हो सकती है लेकिन टिकाऊ नहीं होती. यही एक चीज है जिसे आप और हम अपने परिवार के साथ बैठकर सुनना पसंद करते हैं.
- प्रश्न:-जब प्रतिभाशाली ‘बिहारी’ शब्द को अनेक जगह हेय दृष्टि से देखा जाता है ऐसे में आप ‘मैं धरतीपुत्र बिहारी हूँ’ जैसे लोकप्रिय गीत गाते हैं. आपने अनेक देशों के कवि सम्मेलनों में भाग लिया है. आप बिहार का परचम लेकर आगे बढ़ते हैं. क्या आपको कभी, कहीं लगा कि आपको बिहारी मानकर आपके साथ कमतर व्यवहार हुआ?
उत्तर– देखिए मेरे साथ तो कमतर व्यवहार नहीं हुआ. मेरे साथ इसलिए नहीं हुआ कि मैं विश्वविद्यालय के स्तर तक एक आइडियल स्टूडेंट के रूप में जाना जाता था और दिल्ली विश्वविद्यालय से दो विषयों ‘विदेश नीति’ और ‘पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन’ में मैं गोल्ड मेडलिस्ट रहा हूँ. बिहारी शब्द पीछे कहते होंगे तो मुझे नहीं पता लेकिन मेरे साथ नहीं हुआ लेकिन मैंने यह देखा कि मान लीजिये कोई पंजाबी है और वह कोई ऐसी छोटी मोटी भूल कर दे तो उसको भी लोग कहने लगते हैं कि क्या बिहारियों जैसी हरकत करते हो. मैं बहुत ही मॉडर्न तरीके से जीने वाला व्यक्ति हूँ और लग्जरी में मेरा बहुत विश्वास है. हर व्यक्ति को अपना जीवन लग्जरियस तरीके से जीना चाहिए. लग्जरी का अर्थ यह नहीं है आप बड़ी गाड़ी ले लें, आपके भीतर एक लग्जरी हो.
मुझे 2017 में देश का सबसे बड़ा कवि सम्मेलन जो लाल किला, दिल्ली में होता है, में जाने का पहली बार मौका मिला. मैंने उसमें अपने गाँव, अपने क्षेत्र का पारंपरिक परिधान पहन कर जाने का निर्णय लिया. धोती-कुर्ता और उसके ऊपर एक गमछा पहनकर मैं जा रहा था तो मेरे एक करीबी मित्र ने तंज कसा कि तुम तो बिल्कुल जोकर लग रहे हो. मैंने जवाब दिया कि जोकर का काम ही होता है हँसाना और मैं वही काम कर रहा हूँ. मेरा यह परिधान मेरे पूर्वजों का परिधान है, मेरी संस्कृति की पहचान है, मेरी ऊर्जा का श्रोत भी है. मैं इसे पहनकर ऐसी प्रस्तुति दूँगा कि लोगों को मेरे कपड़ों के प्रति भी लगाव पैदा हो जाये. मैं ऐसी कविता पढ़ूँगा कि लोग सोचने को विवश हो जाएँ कि मैं क्या पहनता हूँ. उस कवि सम्मेलन में मेरी बारी रात के डेढ़ बजे आयी. कवि सम्मेलन दस बजे रात में शुरू ही होता है, चार बजे सुबह तक चलता है. मेरा परिचय कराया गया और मैं माइक पर खड़ा हुआ. लोगों ने कपड़ों पर भी कुछ-कुछ बातें कहीं. मैंने अपने हास्य की प्रस्तुति दी तो पहली ही चार लाइनों के बाद इतनी तालियाँ बजीं, जिसे मैं जीवन भर नहीं भूल सकता. मैं दुबई गया फिर वहाँ भी मेरा ऐसा ही परिधान था, हालाँकि वो थोड़ा फैन्सी था. मैं तीन बार बहरीन गया, तीनों बार धोती-कुर्ते में गया. लागोस गया, वहाँ भी यही पहना. मैंने हांगकांग में जब धोती-कुर्ता पहना तो बहुत सारे लोग जो भारतीय नहीं थे वे मेरे साथ फोटो खिंचाने आये. लेकिन जब मैंने देखा कि बिहार को कमतर आँका जाता है तो मैं अपनी पीड़ा आपको बता नहीं सकता. एक बात बताऊँ, मैं एक कार्यक्रम में बिहार के सासाराम गया. तब तक मैंने यह ‘बिहार-गीत’ नहीं लिखा था. वहाँ राजस्थान के एक बड़े कवि ने महाराणा प्रताप पर गौरवान्वित करने वाली कविता सुनायी. लोगों ने खूब तालियाँ बजाईं. बहुत अच्छी बात है. मैं मंच पर बैठकर सोचने लगा कि मैं हास्य का कवि हूँ तो लोग मुझसे वैसी ही रचनाओं की कल्पना करेंगे लेकिन मैंने सोचा कि मेरा बिहार तो बहुत वैभवशाली है. यहाँ भी एक से एक वीरता की बात है. वही ऊर्जा मैंने अपने भीतर इकट्ठी कर डेढ़ साल के समय में बिहार पर ‘बिहार-गीत’ में मैंने कुछ भी नहीं छोड़ा जो मेरी पकड़ में था. खान-पान से लेकर के कुछ ऐसी चीजें जो हमारे युवाओं को नहीं पता जैसे ‘कान्सैप्ट ऑफ फिजीक्स’ के लेखक दरभंगा के प्रोफेसर एस सी वर्मा बिहार के ही हैं. मानस बिहारी वर्मा के निर्देशन में ‘तेजस’ का निर्माण हुआ. तेजस भारत का अपना लड़ाकू विमान है. बिहार का वैभव और बिहार की बात ही कुछ और है.
तीन धर्मों के हम प्रणेता रहे. आदि शंकराचार्य को पूरे भारत का एक मात्र व्यक्ति मंडन मिश्र ने शास्त्रार्थ की चुनौती दी और अद्वैत के सिद्धांत पर बहुत लंबी चर्चा के बाद उनकी पत्नी भारती से जब शंकराचार्य का शास्त्रार्थ हुआ तो शंकराचार्य निरुत्तर हो गये. वो पुनः दूसरे के शरीर में प्रवेश कर उनके प्रश्नों का उत्तर लेकर दुबारा आये तो दुनियाँ को ‘निर्लिपत्ता का सिद्धांत’ मिला, कि मैं लिप्त हूँ लेकिन मैं निर्लिप्त हूँ. जिस समय में मैं किसी चीज को भोग रहा हूँ उसी समय उस चीज के प्रति वैराग्य भी मेरे मन में पैदा हो रहा है. बिहार की धरती बहुत अद्भुत धरती है. देश के अन्य भागों के सैनिक शहीद होते हैं तो खबरें बनतीं हैं लेकिन अपने सर्वोच्च बलिदान के बाद भी बिहार की ज्यादा चर्चा नहीं होती. बिहार बटालियन ने ही सर्जिकल स्ट्राइक किया था. अगर भारत के इतिहास से बिहार का इतिहास निकाल दिया जाये तो भारत का इतिहास आधा भी नहीं बचेगा. आज तो बिहार कटा फटा है, झारखंड अलग हो गया, बहुत चीजें अलग हो गयीं फिर भी मुझे पूरी उम्मीद है कि एक ऐसा दिन आयेगा जिस दिन बिहार पूरी दुनिया का नेतृत्व करेगा. इसके पीछे का कारण यह है कि एक समय था जब बलपूर्वक शासन किया जाता था. धन के बल पर शासन किया जाता है. अब आने वाला समय बुद्धि का शासन वाला होगा और बुद्धि के शासन में बिहारियों का कोई मुकाबला नहीं है.
- प्रश्न:– आपकी कविताओं में प्रकृति, विरह, दर्द, धोखा और असंतोष के बदले सामाजिक जीवन, व्यावहारिक जीवन और सामान्य राजनीति को छूतीं पंक्तियाँ होती हैं. सामान्य जन को ज्यादा ग्राह्य भी यही होता है. कहा जाता है कि बहुत हँसाने वाला स्वतः पीड़ा में होता है. सच क्या है?
उत्तर:-. सच तो यह है कि मैं मिथिला का हूँ. जब भगवान राम धनुष तोड़ने के बाद बारात लेकर शादी के लिए पहुँचे तो हमारी माताओं बहनों ने एक-एक देवी देवताओं को चुन-चुन कर गालियाँ गाकर दी थीं. मैं देश की राजनीति को गालियाँ तो नहीं लेकिन उलाहना तो अवश्य देता रहता हूँ और गाकर, कविताओं के माध्यम से आईना दिखाने की कोशिश करता हूँ. असली कलाकार, मँजा कलाकार वही है जिसके भीतर की पीड़ा का अनुमान आपको ना हो और वह लोगों को हँसाये. चार्ली चैपलिन ने एक बात कही थी कि जो व्यक्ति मुझे बरसात में भींगते हुए भी मेरे आँसू पहचान ले वही मेरा सबसे प्रिय है. हास्य के देवता शिव हैं. आनंद में रहता हूँ, मौज में रहता हूँ. कवि सम्मेलनों से होने वाला धन मेरे आध्यात्मिक यात्रा को फलीभूत करता है इसलिए पीड़ा मुझे महसूस नहीं होती. मेरे से पहले भी लाखों पीढ़ियाँ आकर चलीं गईं, मैं कौन सा बड़ा काम कर रहा हूँ? यह सब चीजें दुनियावी है. मैं जहाज में बैठता हूँ, जहाज ऊपर जाता है और मैं नीचे झाँककर देखता हूँ तो पूरा शहर एक छोटा सा कटोरा नजर आता है. बहुत बड़ा सा शहर बहुत छोटा दिखता है. जब मैं नीचे आता हूँ तो ट्रैफिक का शोर, दुख-तकलीफ, अन्य चीजें दिखाई देती हैं. मतलब हम जहाँ पर हैं जैसे ही ऊपर उठते हैं ये सारी चीजें छोटी होती जाती हैं.
- प्रश्न:- नये कवियों/रचनाकारों, ग्रामीण, छोटे स्थानों के कवियों/रचनाकारों को जो अच्छा लिखते हैं परन्तु संसाधन नहीं होने के कारण प्रकाशक गंभीरता से नहीं लेते, मंच नहीं मिलता. खासकर नये कवि को प्रकाशक छापना नहीं चाहते, उनको आप क्या सलाह देंगे?
उत्तर:- मैं दुनिया के सामने शायद यह बात नहीं कर पाऊँ लेकिन आपको बता दूँ कि मैं मंच पर 17 सालों से हूँ और मुझे पहचान मिली है पिछले 5 वर्षों में. इसका एक अर्थ यह निकलता है कि किसी भी काम को करने के बदले में अगर आपको अपनी पहचान चाहिए तो आपको लंबे समय तक बने रहना होगा, अपना काम करते रहना होगा, स्थान बनाना होगा. अवसर के चेहरे पर बाल होते है और पीछे से गंजा होता है. अगर आपने अवसर को पहचान लिया तो आप आगे से पकड़ लेंगे लेकिन अगर नहीं पकड़ पाये तो पीछे से नहीं पकड़ पायेँगे क्योंकि अवसर पीछे से गंजा है. जिन लोगों को प्रकाशक नहीं छापते हैं वे निराश ना हों. साहित्य में दो-चार साल कोई अवधि नहीं होती. प्रयास करते रहें. आज का समय फेसबुक, यूट्यूब, सोशल मीडिया का है. ना जाने कौन सी पंक्ति आपको रातों रात स्टार बना दे, आपको प्रसिद्धि दिला दे, आप सोच भी नहीं सकते. जो कहता है कि मेरे पास अवसर नहीं है, मैं उन्हें पूछता हूँ कि आपके पास अवसर नहीं है लेकिन आपके पास मोबाइल है? वही आपका अवसर है. आप अपने मोबाइल में सोशल मीडिया पर अपनी रचनाओं को डालिये. आने वाला समय वीडियो वाला समय होगा. वीडियो डालिये. कभी-कभी छोटा सा टीवी चैनल भी अचानक प्रसिद्ध हो जाता है. आज के समय में मोबाइल एक पुस्तकालय है. आपके पास एक मोबाइल है तो यह आपके ऊपर है कि आप इस पुस्तकालय/ मोबाइल को कैसे प्रयोग में लाते हैं.
- प्रश्न:- आजकल हिन्दी भाषी भी हिन्दी में बात करना पसंद नहीं करते. क्या आप मानते हैं कि हिन्दी भाषा/ हास्य हिन्दी कविताओं का अस्तित्व संकट में है? मोबाईल युग आने से हिन्दी पर इसका क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:– बिलकुल नहीं. जिस समय गूगल आया तो उसने हिंदी की-बोर्ड लेने से मना कर दिया. गूगल से आप हिंदी में टाइप नहीं कर सकते थे लेकिन यह हिंदी की शक्ति है कि आज की तारीख में गूगल में सैकड़ों एप्लीकेशन ऐसे हैं जो हिंदी में केवल टाइप ही नहीं बल्कि ट्रांसलेट भी करते हैं. फेसबुक भी वही कर रहा है. आज की तारीख में आपके पास गूगल से जो मिलता है, या ईमेल आता है तो उसमें ऑप्शन होता है कि क्या आप इसे हिंदी में पढ़ना चाहते हैं? हिंदी ने अपना बहुत बड़ा बाज़ार बना लिया है. आज की तारीख में अगर किसी को हिन्दी में टंकण या टाइपिंग आती है तो उसके लिए अंग्रेजी से ज्यादा कार्य करने का अवसर मिलता है. इसलिए निश्चित रूप से हिंदी किसी भी तरह से कमजोर नहीं हुई है बल्कि मजबूत हुई है. मैं इसका समर्थन करता हूँ. दुनिया में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं में हिन्दी तीसरे नंबर पर है.
- प्रश्न:- आप मानते हैं कि कवियों में, साहित्य में भी गुटबाजी, किसी को नीचा या ऊपर कराने का, जुगाड़ का खेल होता है? दिया जाने वाला पुरस्कार भी इन बातों से प्रभावित होता है?
उत्तर:- अधिकतर पुरस्कार सरकार की तरफ से दिये जाते हैं और इसी का ज्यादा महत्व है. निश्चित रूप से जो कार्य सरकार करेगी उसमें कुछ ना कुछ ऊपर नीचे तो होगा ही और होता भी होगा. मैं इसलिए शिकायत नहीं कर सकता कि मुझे कभी लगा ही नहीं कि मैंने ऐसा कुछ लिखा हो जिसके लिए मुझे कोई पुरस्कार मिले.
जहाँ तक गुटबाजी की बात है तो ऊपर-ऊपर देखेंगे तो आपको लगेगा कि हाँ ऐसा है लेकिन जब आप इसके भीतर घुसकर देखेंगे तो लगेगा कि ऐसा नहीं है. मैं मंचों की केवल बात करूँगा क्योंकि मैं मंचों से ही जुड़ा हुआ हूँ और उसी से जाना जाता हूँ. कुल मिलाकर मंच की स्थिति यह है कि अगर आप अच्छा लिखते हैं तो आपका कोई भी गुट नहीं है. कोई भी गुट नहीं का मैं खुद बहुत बड़ा उदाहरण हूँ. मैं सारे लोगों के साथ निरंतर कार्यक्रम करता हूँ. किनके साथ यात्रा करने में आप सहज हैं, वह होता है. मैं किसी गुट का नाम नहीं लूँगा लेकिन होता यह है कि सुविधानुसार सहयोगियों के साथ कार्यक्रम तय होते हैं, यात्राएँ लंबी होतीं हैं. अब होता यह है कि अगर आयोजक कहता है कि गुवाहाटी में एक कार्यक्रम कीजिये, अब उसी के साथ एक दिन का कार्यक्रम जोरहाट में भी कर दीजिये, एक कोलकाता में भी कर दीजिये तो फिर उसी टीम को गुवाहाटी से जोरहाट लिए चलते हैं, फिर वही टीम कोलकाता चलती है. यात्रा की सुविधा से वही ग्रुप पहुँच जाता है तो लोग इसे गुट की नजर से देखते हैं जबकि इस तरह की कोई बात नहीं रहती है.
- प्रश्न:– आजकल कवियों की बाढ़ आ गयी है, हालाँकि हास्य के गिने चुने ही हैं. साहित्य जीवन यापन का साधन नहीं रह गया है. साहित्य में अपना भविष्य तलाश रहे नयी पीढ़ी के रचनाकारों, नये कवियों को आप क्या सलाह देंगे?
उत्तर– पहली बात तो यह है कि साहित्य कभी भी जीविकोपार्जन का माध्यम नहीं था, कभी भी नहीं. अब अगर कोई संपादक की नौकरी ही करता हो तो अलग बात है. उसे वेतन भी उसी कार्य के लिए मिलेगा लेकिन कोई लेखक का काम कर रहा हो तो फिर इससे जीविकोपार्जन होना मुश्किल है. इससे मिलने वाली रॉयल्टी या इससे अब इतनी कमाई नहीं होती कि आपका जीवन चल सके. साथ में कुछ और करना पड़ेगा. कुछेक गिने चुने लोग दस भी नहीं होंगे जो इसपर आश्रित होंगे. वास्तविकता यह है कि साहित्य में जीवन जीना बहुत कठिन है. साहित्य से जीवन किसी तरह जी सकते हैं लेकिन लग्जरी जीवन नहीं जी सकते. अभी नये लोग जो आ रहे हैं उनमें अधिकतर लोग बिना अध्ययन किये आ रहे. बिना अध्ययन के आप मंच पर ज्यादा दिन नहीं चल सकते, अध्ययन बहुत जरूरी है.
एक महत्वपूर्ण बात मैं बताता हूँ. मैं नौ वर्ष पूर्व मुंबई में था और मुझे सौभाग्य प्राप्त हुआ कि मैं लताजी से मिलूँ, उनके घर पर चाय पीने का सौभाग्य मिला. उनसे बातचीत में पता चला कि उन्होंने अब गाना छोड़ दिया है लेकिन अभी भी वह दो घंटे रियाज करतीं हैं. कितनी बड़ी बात है.
आज क्रिकेटर जो एक दिन के लिए भी वनडे क्रिकेट खेलने जाता है वह प्रतिदिन सुबह छः बजे उठता है और अनेक घंटों तक अभ्यास करता है. क्या मंच के साहित्यकार इस प्रकार का अभ्यास कर रहे हैं? कोई व्यक्ति दुकान भी शुरू करता है तो कहते हैं कि दुकान जमने में भी पाँच साल लगती है. हमें प्रथम से स्नातक तक पढ़ने में पन्द्रह वर्ष लग जाते हैं. साहित्य में क्यों जल्दबाजी है भाई? जो भी आना चाहते हैं वह पूरा समय दें, अपने आप को बहुत अच्छे से रगड़ें, अध्ययन करें और फिर इसमें आयेँ. निश्चित सफल होंगे.
- प्रश्न:-‘शिखरजी’ रेडियो पर आये, मंचों पर दिखे, टीवी में दिखे, आजकल सामाजिक कार्यों में भी बहुत दिख रहे. क्या भविष्य में राजनीति में भी दिखेंगे क्या?
उत्तर:- एक चीज मैं आपको बताऊँ, मैं लड़कर कहीं भी आपको राजनीति में नहीं दिखूँगा. चुनाव लड़कर राजनीति में मैं आपको कभी नहीं दिखूँगा और बाकी कुछ हो जाये तो उसके बारे में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता.
प्रश्न:– आपकी लिखी आपकी सबसे प्रिय पंक्तियाँ कौन सी हैं और आज आप लोगों से क्या कहना चाहेंगे. कुछ पंक्तियाँ हो जाये.
उत्तर– मेरी लिखी हुई जो मेरी सबसे ज्यादा प्रिय पंक्तियाँ हैं उसमें मैं एक लाइन ही कहूँगा कि ‘हम जीत मनाते हैं मगर हार पहन कर’. हम जब जीत की खुशी मनाते हैं तो हमें हार चाहिए होता है इसका अर्थ यही है कि आप को वरण करना पड़ेगा. दुनिया में सबसे ज्यादा निर्भय व्यक्ति कौन है? सबसे ज्यादा निर्भय व्यक्ति वह है जिससे किसी को डर ना लगे. ऐसा नहीं है कि जिसको किसी से डर ना लगे, नहीं, उससे किसी को डर ना लगे वह दुनिया का सबसे निर्भय व्यक्ति है. आज मैं लोगों से इतना भर कहना चाहता हूँ कि जीवन से हमें यह सीखना चाहिए कि जीवन कभी भी उलट-पुलट, कुछ भी हो सकता है. पूरे ब्रह्मांड में मानव को एक छोटा सा वायरस जो दिखता नहीं है वह भी तबाह कर सकता है इसलिए जब तक जीवित हैं, जब तक हाथों में ताकत है, अपने आप को जिंदा रखें, आनंद में रहें और कोई भी ऐसा कार्य न करें जिससे किसी और को पीड़ा महसूस हो.
विभूति बी. झा– बहुत-बहुत धन्यवाद. आपको भविष्य की शुभकामनाएँ.
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