सर्वप्रथम “ऐसी-वैसी औरत” पुस्तक हेतु श्रीमती अंकिता जैनजी को बधाई, शुभकामनाएँ. 119 पेजों की इस पुस्तक को आकर्षक कवर में हिन्द युग्म ने मूल्य 115 रुपये रखकर प्रकाशित किया है. पुस्तक के ऊपर ही ‘दैनिक जागरण नीलसन बेस्टसेलर’ प्रकाशित होने से बहुत कहने की आवश्यकता नहीं है.
इस पुस्तक में दस कहानियाँ हैं. नारी शोषण, महिला विमर्श, छल, धोखा, यौन शोषण की पुस्तकों के बीच यह एक ऐसी पुस्तक है जिसमें भाषा के स्तर पर कहीं भी अश्लील गालियों का प्रयोग नहीं है. कहानियों को पढ़ते वक्त आगे क्या होगा की स्थिति बनी रहती है. बहुत लाग लपेट या बहुत विस्मयकारी अंत भी नहीं है. कहानियों का अंत एकदम घटित होने लायक या यों कहें कि सच्ची घटनाओं जैसी वास्तविक लगतीं हैं. पुस्तक घर में रखने लायक है, कोई भी पढ़ सकता है. मैं जब तथाकथित बड़े रचनाकारों की रचनाओं में हू-ब-हू अश्लील गालियों को देखता हूँ तो मुझे वास्तविक दृश्य नहीं दिखता बल्कि शब्दों की दरिद्रता समझ में आती है. मुझे लगने लगता है कि यह रचनाकार का सबसे आसान तरीका था. लोगों को पता है कि कुछ चरित्र बिना गालियों के नहीं जी सकते, आप इशारों में अपनी बात कहें लोग समझ जायेंगे. आप किसी भी शोषण या दुत्कार को सलीके से कह सकते हैं. इस पुस्तक की तारीफ इन अर्थों में बनती है. कथ्य सामान्य, बिना आडंबर के हैं तो आसपास की घटनाएँ लगती हैं. शिल्प तो नयी वाली हिन्दी है. लेखिका ने रोचक बनाने का प्रयास किया है. अनेक  जगहों पर साहित्यिक भाव देने का प्रयास भी किया है. धीरे-धीरे लेखन में गहराई भी आने लगेगी. पढ़ने से आशाएँ तो जग ही गयीं हैं.
मैं अक्सर कहता हूँ कि जिस कहानी में समस्या के साथ समाधान का इशारा हो, वह ज्यादा प्रभावशाली कहानी होगी. इनकी कहानियों में कुछ हद तक समाधान की बात है इसलिए ज्यादा ग्राह्य हैं.
अब कहानियों पर आऊँ. शुरुआत की कहानियाँ ज्यादा सुदृढ़ लगीं.
विधवा ‘मालिन भौजी’ एक दिन अचानक अपने एकाकीपन को दूरकर अपने जमीन का केस लड़ने वाले वकील से विवाह कर लेती है. एक मुश्किल प्रश्न के साथ समाधान सुझाया है.
‘छोड़ी हुई औरत’ में एक विवाहित बहन पति के छोड़ दिये जाने के कारण मायके आ जाती है. हमेशा काम में जुटी रहती है. उसके एक भाई के विवाह की बारात में अन्य महिलाओं के साथ उसे भी जाने का उत्साह है लेकिन परित्यक्ता होने की वजह से एक भाई ही तैयार बहन को जाने से मना करता है और वो रोकर रह जाती है. समाज की सच्चाई को आसान भाषा में बेहतरीन ढलान के साथ लेखिका रखती है.
‘प्लेटफॉर्म नम्बर दो’ में रेल स्टेशन पर भीख माँगने वाली या जिन लड़कियों के घर नहीं हैं, कोई गार्जियन नहीं है उनकी कथा है. प्लेटफार्म माफिया और अन्य के द्वारा शोषण और वहाँ के जीवन का वर्णन है. सुन्दर प्रस्तुति कहूँगा. हालाँकि कहानी के अंत से मैं सहमत नहीं, कुछ और अंत ढूँढना था. मुझे किसी भी कहानी में शोषित के द्वारा जीवन का अंत का विकल्प चुनना सार्थक नहीं लगता. मुश्किल समय में भी जीने की राह बताना रचनाकर्म धर्म है.
अन्य कहानियाँ ‘रूम नम्बर फिफ्टी’, ‘गुनाहगार कौन’, ‘सत्तरवें साल की उड़ान’, ‘एक रात की बात’ और ‘उसकी वापसी का दिन’ रोचक और अंत तक बाँधे रखतीं हैं.
“भंवर” कहानी में एक मित्र जो सबके सामने भाई बनता है लेकिन शारीरिक शोषण करता रहता है, की कहानी है. पाठक अंत की अनेक कल्पनाएँ कर रहा होता है और कथा जीवन के साथ अलग बह जाती है.
कुल मिलाकर छल, महिला का शोषण, अंधे रिश्तों की आड़ में शारीरिक शोषण, मदद के नाम पर लड़कियों का शोषण, सामाजिक मान्यताओं के नाम पर अपने सगों के द्वारा दुर्व्यवहार और बहुत कुछ इनकी कहानियों में है. पुस्तक का शीर्षक भले “ऐसी वैसी औरत” है लेकिन कथा की सारी महिलाएँ नमन करने योग्य हैं. पुस्तक हमारे किये जा रहे व्यवहार को दिखाने का आईना है. लेखिका जो कहना चाहती हैं उसमें सफल हैं. पुस्तक पढ़ने योग्य है. इनसे भविष्य में बहुत आशाएँ हैं. पुनः शुभकामनाएँ देता हूँ.

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बचपन से साहित्य पढ़ने का शौक. अनेक भाषाओं की पुस्तकें पढ़कर अपना विचार देना. तत्पश्चात पुस्तकों की समीक्षा करना. फिर लिखना प्रारम्भ. अब तक “अवली”, “इन्नर” “बारहबाना” और “प्रभाती” का सफल सम्पादन.