सर्वप्रथम मैं भगवंत अनमोलजी को पुस्तक ‘बाली उमर’ की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूँ. यह उपन्यास वाकई बाली उमर है.
पाँच अनमोल किरदार जिनका उपनाम पुस्तक में पोस्टमैन, खबरीलाल, गदहा, आशिक और ‘पागल है’ हैं. पूरी पुस्तक इन्हीं बच्चों की सोच, बचपन की शरारतें, बचपन का अल्हड़पन, बचपन में लगाये जाने वाले अनुमान, प्रेम, टोटका और बहुत कुछ जानने की उत्सुकता पर आधारित है. जो अपने आसपास, बोली भाषा का नहीं है उसे हम आसानी से ‘पागल है’ कह देते हैं और उससे वैसा ही व्यवहार करने लगते हैं. पुस्तक में चार बच्चे कैसे अपना सामान्य घरेलू जीवन जीते हुए एक अनजान, अपरिचित, बोली भाषा नहीं समझने वाले बच्चे को अपने में समाहितकर, ढ़ालकर, सिखाकर, अपने से दूर करते हुए भी, उसकी खुशी के लिए उसके गन्तव्य तक भेजते हैं, की कहानी है. लेखक ने इतने बेहतरीन अंदाज, बिना किसी भारी-भरकम शब्द-जाल, लाग-लपेट या कहेँ कि इतने आसान शब्दों में लिखा है कि आप मोहित हो जायेंगे. जिन लोगों ने अपना बचपन आज से 25- 30 साल पहले गाँव में बिताया है उन्हें यह कहानी अपनी जैसी लगेगी. मैं अक्सर कहता हूँ कि किसी भी कहानी, रचना को जब हम प्रकाशित कर समाज में उतारते हैं तो उसमें एक मैसेज होना ही चाहिए अन्यथा रचना कुछ दूरी पर दम तोड़ देगी. इस पुस्तक में अनेक मैसेज हैं जो सीधे दिल से जुड़तीं हैं. बचपन की छोटी-छोटी बातों को उसी रूप में कागज पर लेखक ने उतारा है. गाँव में प्रेम का स्वरूप उस समय जैसा था वैसा ही वर्णन है. हाँ, बात बात में माँ कसम या विद्या कसम भी होनी चाहिए थी, कागज की नाव होती तो और मजा आता. खैर. पूरी पुस्तक के बाद इस बात का भय होता है कि कहीँ दक्षिण भाषी इसे अन्यथा ना लें कि देखिए हमारे लोगों के साथ अन्य भाषी क्या करते हैं. हालाँकि ये कहानी की माँग थी. किसी अन्य प्रान्त का पात्र फिट भी नहीं बैठता. मैं आपको कहानी में उलझाऊँगा नहीं. पुस्तक की खासियत यह है कि पुस्तक 95% मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ यात्रा करवाती है और बेहतरीन अंत आपको झकझोर देगा. सस्पेंस मैं समाप्त नहीं करना चाहता. इसके लिए आप खुद पढ़ें. शुरू से पढ़ते आने की वजह से पाठक ऐसा अन्त का अनुमान लगा ही नहीं सकता. अनेक बातें ऐसी हैं जो आपके मन में बस जायेंगी.
इस पुस्तक की कुछेक पंक्तियाँ जो मुझे अच्छी लगीं.
‘ज्ञान कागज से ही मिलता है भले ही वह पुस्तकों के माध्यम से प्राप्त हो या लव लेटर के माध्यम से.’
‘गाँव में होने वाली शादी की रात सिर्फ दो लोगों का मिलन नहीं कराती बल्कि नए लोगों के प्रेम प्रसंगों की शुरुआत की भी रात होती है.’
‘गाँव के लोग कपड़े खरीदने के मामले में बहुत दूरदर्शी होते हैं. कपड़े इतने बड़े लिये जाते हैं कि छोटे न पड़ जायें और होता यह है कि कपड़े फिट होने से पहले ही फट जाते हैं.’
‘बफे’ सिस्टम के बारे में लेकर एक पात्र कहता है ‘बफे सिस्टम क्या है, यह कुकुर भोज है.’
‘चुनाव में हार और प्यार में पड़ी मार बहुत सीख दे जाती है.’
लेखक पाठक को बहुत ही हल्के, आसान और हास्य की भाषा में एक ऐसी ऊँचाई पर ले जाता है जिसमें पाठक ऊपर चढ़ते हुए भी हाँफता नहीं बल्कि मुस्कुराते हुए बढ़ता है.
लेखक ने बाल मन की बातें, टोटका, कुछ कर्मकांड का बढ़िया चित्रण किया है. एक जगह एक पात्र कहता है कि पीपल के टूटे पत्ते को जमीन पर गिरने से पहले पकड़ कर अगर किसी लड़की को दे दे और वह पत्ते को अपनी किताब के अंदर रख ले तो विद्या माता की बहुत कृपा होती है. उस लड़की को उसके प्रति प्रेम भी जग जाता है. एक जगह लेखक बहुत बड़ी बात आसानी से कहता है कि सिर्फ जानवर ही है जो रंगभेद और भाषा की वजह से भेदभाव नहीं करता. कुल मिलाकर कम पेजों में बहुत बढ़िया उपन्यास है. भविष्य में इसपर कोई फ़िल्म बन जाये तो कोई आश्चर्य नहीं. ‘बाली उमर’ पुस्तक को राजपाल एंड संस प्रकाशन ने सुन्दर आवरण देकर प्रकाशित किया है. मूल्य रुपये 175 है जो मेरे ख्याल से कुछ ज्यादा है. 127 पेजों की पुस्तक की कीमत रुपये 120 तक होती तो ज्यादा ग्राह्य होता तथापि पाठक को पढ़ने में बहुत मन लगेगा इसलिए इसकी अनदेखी की जा सकती है. पढ़ने के बाद आवरण देखकर बात खटकती है कि जब 5 मित्र थे तो चार मित्रों को ही क्यों लड़कियों की साइकिल पर दिखाया है, पाँचवाँ भी होता तो सस्पेंस बना रहता.
मैं कहूँगा कि ‘बाली उमर’ उपन्यास को एक बार अवश्य पढ़ें और नये उभरते हुए, उभरे हुए, कम उम्र के लेखक श्री भगवंत अनमोलजी को अपना आशीर्वाद दें. मैं इन्हें आगामी भविष्य की शुभकामनाएँ देता हूँ.