सर्वप्रथम काव्य संग्रह “रे मन .. चल सपनों के गाँव” के लिए श्रीमती ममता शर्मा ‘अंचल’जी को बधाई, शुभकामनाएँ।
पुस्तक का प्रकाशन गुंजन प्रकाशन ने हार्ड कवर में मूल्य 200 रुपये रखकर किया है। पुस्तक में 42 गीत, अनेक मुक्तक और दोहे हैं। इस पुस्तक के गीत दिल को छूने वाले और ज्यादातर प्रेम पर हैं। राजस्थान की चर्चा और नारी के मन की बात मन मोहती है। शब्दों का संयोजन बढ़िया है। हिंदी के अनेक नये शब्द देखने को मिले। कुछ पंक्तियाँ जो मुझे अच्छी लगीं, आप भी देखें-
“आँचल हो या सूखे पत्ते मिले छाँव तो छाँव है, जिसमें केवल हम तुम रहते, वह सपनों का गाँव है।”
“मैं क्या जानूँ सावन क्या है, प्रिय तुमसे मनभावन क्या है।”
“जिसका कोई पैमाना हो, उसको प्यार नहीं कहते, जो शर्तों के वश में हो, उसको इकरार नहीं कहते।”
“आपके लब पर हमारा नाम आया, लो अचानक इक नया पैगाम आया।”
“अहसासों में पलक चूमकर सोया प्यार जगा जाओ, संकेतों में हाँ कह दो प्रिय, दिल में आन समा जाओ।”
“सोचा है अपने गीतों में अपना राजस्थान लिखूँ, जिसके कारण जग ने गायी गाथा वो पहचान लिखूँ।”
मुक्तक भाग में कुछ मुक्तक सुन्दर हैं। देखें-
“मैं तब तक जब तक तुम मुझमें,
कहो आज कब तक तुम मुझमें
मैं खुश हूँ लिखती गाती हूँ
कारण हो अब तक तुम मुझमें।”
“ओ आज़ाद हवा बहती जा, सर्दी गर्मी सब सहती जा। यदि प्रिय से मिलकर आई है, उनका संदेशा कहती जा।”
दोहा भाग में भी कुछ दोहे मन को छूते हैं।
“जग घूमे, हमको मिला अंधकार चहुँओर, मन के नयनों ने कहा जित प्रियतम उत भोर।”
“इस कजरारी पलक का काजल तेरे नाम,
जैसे राधा के नयन बसे हुए घनश्याम।”
“कहा ना कुछ हमने सुना नैनों ने की बात,
संकेतों में प्रेम की खूब हुई बरसात।”
कुल मिलाजुलाकर पुस्तक गीत, मुक्तक और दोहों से परिपूर्ण एक पैसा वसूल पुस्तक है। एक बार अवश्य पढ़ें।
पुस्तक के कवर पर एक खड़ी महिला का पीछे से लिया गया वास्तविक फोटो है।
अच्छी रचनाएँ हैं तो उस हिसाब से भी कवर और बेहतर हो सकता था तथापि कवयित्री श्रीमती ममता शर्मा ‘अंचल’जी को पुनः बधाई।

बचपन से साहित्य पढ़ने का शौक. अनेक भाषाओं की पुस्तकें पढ़कर अपना विचार देना. तत्पश्चात पुस्तकों की समीक्षा करना. फिर लिखना प्रारम्भ. अब तक “अवली”, “इन्नर” “बारहबाना” और “प्रभाती” का सफल सम्पादन.