“दर्जन भर प्रश्न” में साहित्यकार श्री देवांशु

व्यक्ति परिचय:-

नामश्री देवांशु.

जन्म तिथि व स्थान– 14 फरवरी, 1973. देवघर, झारखण्ड.

शिक्षा

प्राथमिक

गाँव का स्कूल- गोसाईं गाँव, माध्यमिक- उच्च विद्यालय, नवगछिया, भागलपुर.

महाविद्यालय- पटना महाविद्यालय. दिल्ली से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की.

कार्यक्षेत्र

बीस साल तक विभिन्न चैनलों में कार्य करने का अनुभव. हिन्दी समाचार चैनल ‘आजतक’ में अनेक वर्षों तक कार्य करने का अनुभव. अभी स्वतंत्र लेखन.

लेखन साहित्य से पुराना अनुराग, विविध विषयों पर लेखन जैसे धर्म, दर्शन, कला, फिल्म, संगीत आदि. कथा साहित्य, संस्मरण आदि लेखन.

प्रकाशित पुस्तकें:-

काव्य संग्रह ‘समय वाचाल है’– वर्ष 2018.

निबंध संकलन- ‘आवारा बादल’ – वर्ष 2019.

काव्य संग्रह- ‘पग बढ़ा रही धरती’ – वर्ष 2019.

सम्पर्क:- ईमेल[email protected]

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“दर्जन भर प्रश्न”

श्री देवांशु से विभूति बी. झा के “दर्जन भर प्रश्न” और श्री देवांशु के उत्तर-

विभूति बी झा– नमस्कार. सर्वप्रथम आपको आपकी पुस्तकें ‘आवारा बादल’, ‘पग बढ़ा रही धरती’ और ‘समय वाचाल है’ के लिए बधाई, शुभकामनाएँ. ‘आवारा बादल’ निबंध संकलन अपने बेहतरीन आलेखों की वजह से बहुत चर्चा में रही और है. आपने जिन व्यक्तित्व या विषय को चुना है, उनकी बारीकियों से परिचय कराया है. फिल्म ‘सदमा’ की चर्चा हो या सत्यजित राय हों, अमिताभ बच्चन, गायक मुकेश, येसुदास, हरिद्वार की चर्चा और पंडित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर के बारे में जो जानकारी आपने दी है, काबिले तारीफ है. आप जब कोई कहानी लिखते हैं तो वह भी चर्चित हो जाती है. उदाहरण के तौर पर पुस्तक #इन्नर में आपकी लिखी कहानी ‘शराबी’ और पुस्तक #अवली में प्रकाशित आपकी कहानी ‘नियति’ बहुत पसंद की गयी. आपकी लेखनी आज वाली ‘नयी हिन्दी’ नहीं बल्कि पुरानी वाली हिन्दी, पुराने ख्याति प्राप्त लेखकों की याद दिला देती है.

  1. पहला प्रश्न:- पाठकों की इतनी सराहना पर आपकी प्रतिक्रिया? साथ ही साथ आपके साहित्य के पसंदीदा रचनाकार कौन-कौन हैं? आपका नाम किन साहित्यकारों के साथ लिया जाये? आपकी क्या इच्छा है?

श्री देवांशु के उत्तर– पाठकों की सराहना तो महत्त्वपूर्ण होती ही है. अंततः वही जिनके लिए आप लिखते हैं. लेखक लिखते हुए स्वयं पाठक भी होता है. किन्तु हमारा कथित बौद्धिक समाज अभी बहुत सिमटा हुआ है. वह कुछ चुनिंदा लोगों और समान विचारधारा के लेखकों से इतर लोगों को नज़रंदाज़ करता है. मेरे पसंदीदा लेखकों की सूची लंबी है, अल्बेयर कामू, दास्तयवस्की, प्रेमचंद, निराला, प्रसाद, निर्मल वर्मा, अज्ञेय, के शिवराम कारंत, तकषी शिवशंकर पिल्लै आदि. मुझे लोग पढ़ें. ईमानदारी से आकलन करें. बस इतना ही. किसी स्थान की कोई आकांक्षा नहीं.

  1. प्रश्न:- आपकी दोनों पुस्तकें बिलकुल ही दो अलग-अलग पृष्ठभूमि की हैं. आप एक सफल कहानीकार, कवि और निबंध लेखक हैं. तीनों पुस्तकें एक रचनाकार की नहीं लगतीं, ये बड़ी उपलब्धि है. लेखन में इतनी विविधता कैसे रख पाये?

उत्तर– मैंने अपने लेखन को मुक्त रखा है. जब जो विषय आकर्षित करता है, लिखता हूँ. इसलिए धर्म, दर्शन, कला, संगीत, फिल्म, खेल आदि पर लिखता रहा. इनके अलावा जीवन के दैनंदिन में बहुत कुछ दिखाई देता है. वही लेखन का मुख्य स्रोत है.

  1. प्रश्न:- आपकी नजर में बेस्ट सेलर पुस्तक और उत्तम कृति, दोनों में कोई अन्तर है क्या? दोनों के प्रति आपके क्या विचार हैं? उत्तम कृति बेस्ट सेलर क्यों नहीं बन पाती, कमी कहाँ रहती है?

उत्तर– हिन्दी समेत कई भाषाओं की यह समस्या है. उत्तम कृति जीवन का गहनतर अन्वेषण करती है. उसका वितान बड़ा होता है. उसके लिए पाठक में भी एक उच्चतर ग्राह्यता की दरकार है. इसलिए आम जनसाधारण में वह उतना सफल नहीं हो पाती. जबकि बेस्ट सेलर कई बार अच्छा लेखन का उदाहरण होकर भी अधिकांश मौकों पर व्यावसायिक फिल्मों जैसी मसालेदार होते हैं. आम आदमी आसानी से उनसे कनेक्ट करता है.

  1. प्रश्न:- पुराने रचनाकारों या आपकी रचनाओं वाली हिन्दी और नये रचनाकारों की ‘नयी वाली हिन्दी’ में लिखी कृति में आपको क्या अंतर लगता है? इन दोनों के बीच पाठक कहाँ है?

उत्तर:- नये रचनाकारों में से बहुत कम को पढ़ता हूँ. कुछ लोग तो बहुत अच्छा लिखते हैं. सोशल मीडिया पर सक्रिय भी हैं. परंतु उनकी हिन्दी कथित रूप से नयी हिन्दी नहीं है. हिन्दी का पाठक बड़ा हो रहा है किन्तु वह कितना पक रहा है, कहना मुश्किल है. कविता के क्षेत्र में तो स्थिति यही लगती है.

  1. प्रश्न:- आपको लगता है कि दिल्ली जैसे बड़े शहर में रहना या बड़े मीडिया हाउस में काम करने का लाभ आपको लेखन में मिला? या किसी को मिलता है. ग्रामीण या छोटे स्थानों के रचनाकारों के लिए आपका संदेश क्या है?

उत्तर– मुझे तो मीडिया हाउस में रहने का कोई लाभ नहीं मिला. जहाँ तक लेखन का संबंध है, उल्टा मीडिया के ही अनेक मित्र मुझे छोड़ गये जबसे लिखना शुरू किया. हाँ, इसका असर पड़ता होगा लेकिन आज के युग में फोन ही पुस्तिका है और दूरियाँ मिट गयी हैं इसलिए देहात में रहने का वैसा संकट नहीं है. सबकुछ सूचना के आदान-प्रदान पर निर्भर है. कोई भी व्यक्ति कहीं रहकर क्षण भर में किसी प्रकाशक से संपर्क कर सकता है. मठाधीशी करने वालों के लिए सभी एक समान वर्जित हैं, फिर चाहे वह दिल्ली वाला हो या देहात वाला.

  1. प्रश्न:- नये रचनाकारों, ग्रामीण, छोटे स्थानों के रचनाकारों को जो अच्छा लिखते परन्तु संसाधन नहीं होने के कारण प्रकाशक गंभीरता से नहीं लेते, उनको आप क्या सलाह देंगे? आज अचानक से साहित्य में आकर छा जाने की मनःस्थिति वाले रचनाकारों और कवियों की बाढ़ आ गयी है, उनको भी आप क्या सलाह देंगे?

उत्तर:- आज संसाधन का संकट उतना नहीं, सबकुछ सामने है. एक फोन पर सारी मुश्किलें हल. संचार क्रांति ने इसे सरल बनाया है. प्रकाशकों की मनमानी अपनी जगह है. अचानक से उभरने वाले कुछ लोग अच्छे भी हैं और कुछ अतिसाधारण भी. सोशल मीडिया ने उन्हें अचानक महत्त्वपूर्ण बनाया है परन्तु वे स्वयं ईमानदारी से अपने लेखन की पड़ताल नहीं कर पाते कि वे कहाँ ठहरते हैं. आत्ममुग्धता की स्थिति बहुत साधारण रूप से दिखाई देती है.

  1. प्रश्न:- आपकी दृष्टि में लेखन में अश्लील गालियों का हूबहू प्रयोग और यौन सम्बन्धों की चर्चा की क्या सीमा होनी चाहिए? साहित्यकार अभी हिंसा और यौन संबंधों वाली रचनाओं की ओर उमड़ पड़े हैं? क्या इसे आप सफलता की सीढ़ी मानते हैं?

उत्तर:- यह पहले भी होता रहा है. लोगों ने विकट गालियाँ लिखीं। उनका तर्क अपनी जगह दुरुस्त है कि वे वही लिख रहे जो समाज में घटित होता है. आज के समाज में यह बहुत आसानी से दृश्य है इसलिए उसे परोसने वाले भी आम हैं. यौन संबंधों वाली रचनाओं की भी बाढ़ आ गयी है. संभवतः कुछ लोग इसे लेखन और वैचारिक मुक्ति से जोड़ते हैं, परंतु लेखन के लिए विषयों की कमी नहीं है. कौन क्या चुनता है यह उनका अपना निर्णय है.

  1. प्रश्न:- लेखक की अतिप्रिय कृति को कभी पाठक पसंद नहीं करते. लेखक पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है? ऐसी स्थिति में आपके अनुसार लेखक को क्या करना चाहिए?

उत्तर:- बहुत निराशा होती है. लेखक के लिए दुखदायी स्थिति है लेकिन लेखक को तटस्थ होकर आकलन करना चाहिए कि पाठक ने उसकी फलां कृति क्यों पसंद नहीं की. मुझे लगता है कि ईमानदार लेखक निश्चय ही इसका जवाब खोज लेते होंगे.

  1. प्रश्न:साहित्य समाज का आईना कहलाता है. साहित्य में काल्पनिक की अपेक्षा यथार्थ लेखन ज्यादा सफल है जबकि सिनेमा में यथार्थ से ज्यादा काल्पनिक? आज का लेखन सिनेमा से प्रभावित है? आज साहित्य जीविकोपार्जन का साधन नहीं बल्कि शौकिया रह गया है. ऐसे में साहित्य में अपना भविष्य तलाश रहे नयी पीढ़ी के नये रचनाकारों को आप क्या सलाह देंगे?

उत्तर:- साहित्य समाज का आईना होता होगा, पर वह बहुत कुछ भिन्न-भिन्न है. वह हमेशा आईना ही नहीं होता. सिनेमा तो हमेशा से ऐसा ही होता है. कुछ यथार्थ बहुत कुछ वायवीय.‌ सिनेमा संक्षिप्त है. दृश्य माध्यम है इसलिए अधिक सरलता से जुड़ जाता है. साहित्य में धैर्य की आवश्यकता होती है. सिनेमा में भी जटिल फिल्में कुछ खास दर्शक ही देखते हैं. आजकल कुछ लेखक तो बहुत पैसे कमा रहे और कुछ बिलकुल भी नहीं कमा पा रहे. साहित्य की विविध धाराओं से जुड़कर भी जीविकोपार्जन कर रहे लोग.

  1. प्रश्न:- आप मानते हैं कि साहित्य में भी गुटबाजी, किसी को नीचा या ऊपर कराने का, जुगाड़ का खेल होता है? दिये जाने वाले पुरस्कार भी इन बातों से प्रभावित होते हैं? इस पर आप क्या कहना चाहेंगे?

उत्तर:- साहित्य में गुटबाजी बहुत पुरानी बात है. ऊपर नीचा दिखाने का खेल तो चलता ही रहता है. एक बात समझ लेना ज़रूरी है कि अच्छा साहित्य लिखने वाला अच्छा मनुष्य भी होगा, यह ज़रूरी नहीं बल्कि साहित्य में ऐसे बदमाश लोगों का जमावड़ा है. हाँ, अच्छे लोग भी हैं जिनके जीवन और लेखन में फाँक नहीं है.

  1. प्रश्न:- सोशल मिडिया का लेखन और लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा है? ऑनलाइन और लाइव आना कहाँ तक हितकारी है? आपको क्या लगता है कि मोबाईल युग आने से हिन्दी में पाठकों की संख्या घटी है? आज घर में भी लोग हिंदी में अपने बच्चों के साथ बात करना पसंद नहीं करते. क्या हिन्दी भाषा खतरे में है?

उत्तर– सोशल मीडिया ने लेखन का धरातल बड़ा किया है. सहज हो गया है लिखना और एक अर्थ में प्रकाशित होना. लाइव आने में कोई बुराई नहीं. अगर आदमी विशिष्ट बात करने वाला हो तो अवश्य आना चाहिए. हिन्दी के पाठक तो संभवतः बढ़े हैं लेकिन हिन्दी भाषा और साहित्य के अध्ययन की चाह कम हो रही. भाषा पर फिलहाल तो ऐसा कोई संकट नहीं है लेकिन इसी तरह यह हाशिये पर धकेली जाती रही तो खतरा बढ़ेगा.

  1. प्रश्न:- आज के रचनाकारों में आप कम से कम पाँच नाम बतायें, ज्यादा भी बता सकते, जिनसे आप प्रभावित हैं और उनसे आपको हिन्दी साहित्य में अपेक्षाएँ हैं?

उत्तर– बहुत सारे लोग अच्छा लेखन कर रहे हैं. किन-किन का नाम लूँ. बीसियों लोग हैं. उनमें से कुछ तो एकदम नये हैं और उनकी पुस्तक भी नहीं आई है कोई, तथापि सोशल मीडिया पर वे ध्यान आकृष्ट करते हैं.

विभूति बी. झा– बेबाकी से जवाब देने हेतु धन्यवाद. आपको भविष्य की शुभकामनाएँ.

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श्री देवांशु की तीनों पुस्तकें:-

बचपन से साहित्य पढ़ने का शौक. अनेक भाषाओं की पुस्तकें पढ़कर अपना विचार देना. तत्पश्चात पुस्तकों की समीक्षा करना. फिर लिखना प्रारम्भ. अब तक “अवली”, “इन्नर” “बारहबाना” और “प्रभाती” का सफल सम्पादन.