सर्वप्रथम “रोजमर्रा की कहानियाँ” पुस्तक के लेखक श्री सतीश सरदानाजी को बधाई, शुभकामनाएँ. इस पुस्तक का प्रकाशन समदर्शी प्रकाशन, भिवानी, हरियाणा ने आकर्षक रंगीन कवर में मूल्य 225 रुपये रखकर किया है. 18 कहानियों की यह पुस्तक 151 पेजों की है.
जैसा कि नाम से ही विदित है “रोजमर्रा की कहानियाँ”. वाकई इन कहानियों में कोई विस्तृत काल्पनिक बातें या दृश्य नहीं हैं. दैनिक जीवन में हम सब अपने अलग-अलग कार्य करते हैं. कोई उन साधारण कार्यों में भी कोई कहानी देख लेता है, कोई नहीं देख पाता. इस पुस्तक में दैनिक जीवन में होने वाली बातें ही हैं. कहानियाँ पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के आसपास की ही हैं. कहानियों में पंजाबी शब्दों और कहावतों का भरपूर प्रयोग है, हिन्दी का पाठक कहीं-कहीं पकड़ नहीं पायेगा. आप जब पूरे भारत के लिए लिख रहे होते हैं तो स्थानीय भाषा की सुगंध अवश्य रखें, इससे रचनाएँ यथार्थ और दूसरे संस्कारों को समझने में सहायक होती हैं लेकिन साथ ही साथ कोष्ठक में इन बातों का अर्थ हिन्दी में भी समझा दिया जाये. मैं बहुत जगह पंजाबी पंक्तियों के अर्थ समझ नहीं पाया.
कहानियों में ग्रामीण परिवेश, जमीन के प्रति मोह, घर-परिवार, भाई-बहन, पिता से लेकर साली जीजा का मजाक और सामान्य जीवन की चर्चा के साथ शहर के युवा की मनःस्थिति का वर्णन, आधुनिक पुरुष मित्र, महिला मित्र वाला वातावरण, कार्यालय, एक कार्यालय में किसी युवती के आने के बाद का माहौल, उससे नजदीकी बढ़ाने के लिए लगे लोगों की मनःस्थिति का बढ़िया चित्रण है. ज्यादातर कहानियाँ बिना किसी पूर्व अनुमान और एक समाधान पर पहुँचने के पहले बीच में ही समाप्त होतीं हैं. कुछ कहानियाँ दुःखद अन्त पर समाप्त होतीं हैं लेकिन कुछ आपको मुस्कुराने पर मजबूर करेंगी. यानी सभी कहानियाँ शीर्षक को सार्थक करतीं हैं.
पुस्तक की भूमिका में श्री अमित धर्म सिंह और श्रीमती रश्मि रविजा ने भी शीर्षक की सार्थकता को बताया है.
‘नई छोरी’ में एक युवती के कार्यालय आने के बाद कैसे लोग दूर के रिश्ते जोड़, तो कोई काम सिखाने के बहाने से उसे छेड़ते हैं की कहानी है. एकदम सच्ची लगेगी.
‘सावी’ में अधेड़ उम्र के नशेड़ी पति के साथ जीवन जीती लड़की अंत में अपने मायके जाकर ससुराल की अपनी जमीन बचाने का प्रयास करती है.
‘सफर’ में हरियाणा रोडवेज की बस की और बस के बीच रास्ते में खराब होने के बाद एक नवयुवती और एक बुजुर्ग महिला के अनुभव का वर्णन है.
‘कितने दिन’ में ऑफिस का बॉस अपने कार्यालय में आयी एक नयी महिला को अपने घर पर ले आता है और कैसे सपने देखता है, का वर्णन है. कभी मुस्कान आयेगी और कभी इस शादीशुदा पर गुस्सा. बाद में पता चलता है कि महिला तो तेज़ थी.
‘यह कमरा’ में कहानी एक गाँव के कमरे की है जिसमें एक नयी पत्नी के सिर्फ नाईटी पहन लेने से उसके पारम्परिक सोच वाले पति को लगता है कि नये विचारों की लड़की है. तत्काल पत्नी को छोड़ शहर जाता है और बाद में उस कमरे को बेच दिया जाता है. कमरा टूट जाता है लेकिन वधू की मिलन की आस अधूरी रह जाती है.
‘डर’ कहानी अभी के पुरुष और महिला मित्र पर आधारित शारीरिक संबंधों के अभाव में टूटने वाले, नहीं, ब्रेकअप होने वाले रिश्तों की कहानी है.
‘सेकेंड हैंड’ छोटी कहानी में दुबारा विवाह की चर्चा है.
‘सुकून’ में पंडित के संस्कृत के साथ और ‘बिट्टू के पापा’ कहानी में आप बह जायेंगे.
‘रतिया’ और ‘आना’ कहानी साधारण है लेकिन ‘जाना’ छोटी कहानी होने के बावजूद असाधारण है. कहानी नदिया के पार फ़िल्म की याद अवश्य दिलाती है लेकिन यहाँ साली परिवार के दबाव में जीजा से ब्याह कर लेती है. वो जानती है कि उसकी बहन को दो संतान पहले से है, बहन स्वस्थ नहीं है और जीजा के जिद की वजह से तीसरी संतान होने को है. बहन के मरने पर उसकी शादी जीजा से करा दी जाती है. नौकरी करने वाली यह लड़की बच्चों की खातिर उनकी माँ तो बन गयी है लेकिन पत्नी कभी नहीं बनेगी, यह ठानकर आयी है. भिवानी की ‘जीतू वाले जोहड़’ की अच्छी चर्चा है.
‘भोली की माँ’, ‘लुटलूटी’, ‘इंसाफ’ अच्छी कहानियाँ हैं.
अंतिम कहानी ‘बनना एक मकान का’ एक मकान के बनने से लेकर उसके बिक जाने तक की बात बहुत ही रोचक तरीके से लिखी गयी है. एक साधारण परिवार पेट काट-काट कर एक घर किन मुश्किलों से जूझकर बनाता है और फिर कभी वास्तु दोष तो कभी अन्य छोटी-छोटी परेशानियों से ऊबकर मकान बेच देता है. एक दुखद कहानी सुखद अंदाज में लिखी गयी है.
कुल मिलाकर ‘रोजमर्रा की कहानियाँ’ ठीक-ठाक सुकून से बीत जाती है.
पुस्तक में मन लगा रहता है. लेखक अपनी बात कहने में सफल होते हैं. कथ्य और शिल्प की दृष्टि से अगर देखा जाये तो रोजमर्रा की बातें हैं, साधारण ही कहूँगा. श्री सरदानाजी का जो इमेज है उस परिप्रेक्ष्य में शिल्प कमजोर है लेकिन एक बार पढ़ने लायक पुस्तक है. कहानियाँ आपको गुदगुदायेंगी. इनको अक्सर फेसबुक और अन्य जगह मैं पढ़ता हूँ इसलिए भी मेरी निजी अपेक्षा इनसे बहुत रहती है.
नकारात्मक दृष्टि से देखूँ तो जैसा कि ऊपर बताया, पंजाबी शब्दों और पंक्तियों का भरपूर प्रयोग है. समझने में थोड़ी दिक्कत होती है जबकि हरियाणा और पंजाब के पाठक को आसान लगेगी. मुझे लगता है कि पुस्तक की प्रूफ रीडिंग नहीं हुई है, अनेक जगह ऐसी त्रुटियाँ हैं. फॉण्ट साइज़ थोड़ा छोटा है. एक पेज में 35 पंक्तियाँ हैं तभी 151 पेजों में इतनी कहानियाँ आ गयीं. हालाँकि शब्द बहुत स्पष्ट हैं, पढ़ने में आते हैं.
अंत में पुनः श्री सरदानाजी को भविष्य की शुभकामनाएँ.
अपने नाम के अनुरूप कहानी अच्छी है। समीक्षा से यही जान पड़ती है।