रश्मि अभयजी की लिखी “रेनकोट” पढ़ी। हमारी शुभकामनाएं। इसी प्रकार लिखती रहें। शुरुआत में रचनाओं के पूर्व की पंक्तियाँ मुझे असहज लगीं। व्याकरण की त्रुटि से आघात लगा लेकिन जैसे रचनाएँ आती गयीं, लहजा ऊपर जाता रहा। कुछेक पेज के बाद रचनाएँ बात करने लगीं, जैसे सामने बैठी हो। मन लगा। अच्छा संकलन है। एक बार अवश्य पढ़ी जानी चाहिए। कुछेक रचनाएँ बहुत सुंदर हैं।
“मैंने अपने अनछुए भावों को,
एक पोटली में बांधकर ताखे पर रख दिया,
ये सोचकर कि शायद कभी तुम इसे समझ सको।”