“The जिंदगी” पुस्तक के लिए लेखक श्री अंकुर मिश्राजी को बहुत बधाई, शुभकामनाएँ। ये बैंकर हैं और यह इनकी  पहली पुस्तक है। पुस्तक का प्रकाशन सूरज पॉकेट बुक्स ने मूल्य रुपये 100 रखकर किया है। आकर्षक प्लास्टिक कोटेड कवर और अच्छे  कागज में  पुस्तक 90 पेज की है। ऐसे पेज, ऐसा प्लास्टिक कोटेड कवर आजकल कम ही मिलता है। हाँ, पुस्तक में टेक्स्ट का साइज थोड़ा छोटा है। पढ़ने में असुविधा होती है।
अब पुस्तक पर आऊँ।
रचना पढ़ने से नवीन लेखक द्वारा प्रस्तुत स्पष्ट लक्षित होता है। पुस्तक में छोटी छोटी  रचनाएँ हैं तथापि लेखक अपने कथ्य को स्थापित करने में सफल  है। गाँव में छोटे बच्चे मूर्ति बिठाकर कम साधन में जिस श्रद्धा  भाव से पूजा करते हैं उसी प्रकार यह लेखक कम साधन में छोटी छोटी रचनाओं के साथ उसी श्रद्धा भाव से उपस्थित है। उच्च साहित्य की दृष्टि से या शिल्प की दृष्टि से कुछ खोजने के उद्देश्य से इसे नहीं देखें। नया लेखक सामने आया है इस भाव से देखें। इस पुस्तक में 6 कहानियाँ और दस लघु कथाएँ हैं। ज्यादा कथ्य आफिस, बैंक से संबंधित है लेकिन विषय अनेक हैं।
पहली कहानी “अभी जिन्दा हूँ मैं” में नायक रात में घर लौटते समय एक आवाज़ सुन बचाने जाता है और मार खाकर अस्पताल में भर्ती होता है। बचाने जाते वक्त का अंतर्द्वन्द्व की चर्चा बढ़िया है। मैं क्यों जाऊँ? मुझे क्या लेना देना। कथा का प्लाट बढ़िया है।
दूसरी कहानी ‘लाल महत्वाकांक्षाएँ’ में पति पत्नी दोनों के नौकरी में होने से बच्चे को समय नहीं देने के कारण किराये के मेड के द्वारा किये गए दुर्व्यवहार की चर्चा है। दोनों जब नौकरी करते हैं तो किन चीजों से बच्चे को सामना करना पड़ता है, का वर्णन है। लिखने का अंदाज अच्छा है।
‘आत्महत्या’ कहानी में नायक के आत्महत्या करने पर सबों को शक उसकी नयी पत्नी पर जाता है जबकि अंत में यह पता चलता है कि इसमें उसकी पत्नी का कोई रोल नहीं बल्कि उसका कार्यालय ही कारण था। कहानी ठीक ठाक है।
“घुटन” कहानी में एक कार्यालय के बॉस द्वारा अपने मातहत का शोषण करने का वर्णन है। मातहत चाहता है कि बॉस को पीट दे। लिखने का तरीका बढ़िया है।
दस लघुकथाओं में फिजूलखर्ची, बरसातें और भी हैं, नारी, जन्मदिन, दहेज, तबादला अच्छी रचनाएँ हैं। इनमें अलग अलग विषयों पर, अनदेखी पर और कार्यालय में होने वाले शोषण पर गंभीर प्रहार किया गया है।
कुल मिला जुलाकर नये लेखक के रूप में पुस्तक ठीक ठाक है। लिखने का प्रयास कर रहे हैं इसलिए प्रोत्साहन मिलना ही चाहिए। भविष्य की शुभकामनाएँ देता हूँ।
लिखते रहें । समय के साथ निखार आयेगा।

बचपन से साहित्य पढ़ने का शौक. अनेक भाषाओं की पुस्तकें पढ़कर अपना विचार देना. तत्पश्चात पुस्तकों की समीक्षा करना. फिर लिखना प्रारम्भ. अब तक “अवली”, “इन्नर” “बारहबाना” और “प्रभाती” का सफल सम्पादन.