“आखर दिल के” पुस्तक श्रीमती मीना सूदजी की लिखी हुई कविता संग्रह है जिसे हिंद युग्म प्रकाशन ने आकर्षक कवर में मूल्य रुपये 150 रखकर प्रकाशित किया है। मैं मीनाजी को बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ देता हूँ। इस पुस्तक में 111 रचनाएँ हैं जिसमें कुछ क्षणिकाएँ और कविताएँ हैं।
पूरी पुस्तक पढ़ने के बाद एक बात उभरकर सामने आती है कि लेखिका ने प्रेम के विभिन्न अनुभव को या प्रेम में आने के बाद की मनः स्थिति का, हूबहू वर्णन किया है। कहीँ-कहीँ रचनाएँ आपसे बातें करने लगेंगी। लगेगा कि आपको प्रेम की अनुभूति प्राप्त हो रही है या प्रेम में पड़कर खुद अनुभव कर रहे हैं।
इनकी ज्यादातर कविताएँ दिल को छूती हुई जाती हैं और प्रेम में गहरी डूबती हुई जाती हैं। जैसे-जैसे पृष्ठ आगे बढ़ता है गहराई बढ़ते जाती है। अगर आप पुस्तक को टुकड़ों में नहीं बल्कि कुछेक रचनाएँ साथ-साथ पढ़ेंगे तो आपको प्रेम की अदृश्य दुनियाँ में लेखिका ले जाने में सफल हो जातीं हैं। दैनिक जीवन में किये जाने वाले कार्यों की चर्चा प्रेममय वातावरण में लिखी है। प्रेम में अनेक लोग जीते हैं लेकिन इनकी कलम के माध्यम से उतारने की कला अद्भुत है। कुछेक पंक्तियाँ जो मुझे पसंद हैं।
“शब्द तुम्हारे
भाव तुम्हारे
अहसास तुम्हारे
सब तुम्हारा
तुम हमारे
प्रेम लिख दिया
अब क्या लिखूँ?”

‘कब’ कविता में लिखती हैं कि
‘ठिठक से गये हैं
ठगे से हैं
तबाही के इस दौर में
जिंदगी
तू कब गुजर गयी दबे पाँव?’

‘काम’ क्षणिका में कहती हैं कि
‘उसने पूछा मुझसे
फुर्सत वाले पलों में क्या करती हो तुम?
मुस्कुरा भर दिए, कहते भी क्या!
नाकारा सा हो गया है
यह दिल
तुमसे फुर्सत हो तब तो कुछ करे।’
‘जिंदा कहलाने और
जिंदा होने में बहुत फर्क है
तुम हो तो जीती हूँ मैं।’
“देखो तुम सपनों में आना
और फिर मेरे ही हो जाना
बसकर मेरी इन सांसों में
तुम मचल-मचल सो जाना
देखो तुम सपनों में आना।”
‘लाज का घूँघट भी कभी-कभी
कर देता है दिल का हर राज फास।’
“तुम” क्षणिका में कहतीं हैं कि
‘सुनो! तुम न होते तो कैसी होती ये जिंदगी?
ये सवाल आज भी किया मैंने खुद से
मालूम है क्या जवाब मिला?
पगली! फिर तुम पगली ना होतीं।’
“गिला” में लिखतीं हैं कि
“पढ़ लेता है ये दिल
उस खाली खत के मजमून को भी
जिसमें है जागती आँखों की कहानी
और ये सूनी रातें वीरानी
हमने कब गिला किया कि
तू कुछ लिखता नहीं।”
‘स्पर्श’ में कहती हैं कि
‘बारिश की पहली बूँद
और वो प्रेम की पहली कोंपल
जो उग आयी थी इस दिल की
सीली जमीन पर
चाय की डेढ़ पत्ती की तरह
जिसकी खुश्बू आज भी महकाती है
मेरी यादों का बागान
आह!
वो प्रेम का प्रथम स्पर्श!’
“कल रात पूछा मैंने आँखों से क्या हुआ?
आजकल रोती नहीं हो?
पहले तो खूब सोया करती थी तुम
पर आजकल सोती भी नहीं हो.
नजरों ने एक गहरी नजर डाली
और कहा बहुत देर हुई
तूने भी तो कोई सपना नहीं देखा,
जो रुला दे तुझे
ऐसा कोई अपना नहीं देखा,
हम भी तो तेरे ही दर्द से पिघलती हैं
जब तक जिंदा थी तू
बरस लेती थी पर
अब सहरा सी जलती हैं।’
‘आज भी महक उठती है मेरी साँसें
जब रोम रोम से उठती है बयार
उन सुकून भरे लम्हों की
जो बिताए थे तेरे साथ
यूँ ही चलते चलते
थामे एक दूजे का हाथ।
और यह चाँद!
उफ्फ!
निगोड़ा!
सोने भी नहीं देता।
मेरा चैन जो गिरवी है
उसके पास!’
“मुझमें” क्षणिका में लिखती हैं कि
‘तेरा होना जितना जरूरी है
तेरा ना होना भी उतना ही खूबसूरत
जो होते पास तो पकड़ लेती
तुम्हारा हाथ
नहीं हो तो जीते हो तुम मुझमें।’
‘सौगात’ क्षणिका में लिखती हैं कि
‘ शाम रोज अपने काँधे पर
रख ले आती है तेरी
यादों की पोटली और
दे जाती है मुझे बेशुमार बहाने जीने के।’
“अलंकार” कविता में लिखती हैं कि
‘देखो तो सब मिल जाता है मुझे हीरा, सोना, चांदी सब!
सबकी एक बार आती है धनतेरस
मेरी तो रोज दिवाली होती है।’
“मन अबीर” कविता में लिखती हैं कि
‘तेरी खुशबू से महकूँ हर पल
मलय समीर ज्यूं घुल जाता है
रसिक अधर जब छूते मुझको
मेरा अंग-अंग खिल जाता है।
जब भी तुम छूते हो साजन
मेरा फागुन तब आता है।’
कुल मिलाकर एक अच्छी पढ़ने योग्य पुस्तक है। एक बार अवश्य पढ़ें। अंत में मीना सूदजी को पुनः बहुत-बहुत बधाई, भविष्य की शुभकामना।

बचपन से साहित्य पढ़ने का शौक. अनेक भाषाओं की पुस्तकें पढ़कर अपना विचार देना. तत्पश्चात पुस्तकों की समीक्षा करना. फिर लिखना प्रारम्भ. अब तक “अवली”, “इन्नर” “बारहबाना” और “प्रभाती” का सफल सम्पादन.