कविता संग्रह “Cutting चाय” के लिए कवयित्री द्वय शिवांगी पुरोहितजी और रक्षा पुरोहितजी को बधाई, शुभकामनाएँ।
पुस्तक का प्रकाशन सन्मति पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स ने सुन्दर, अनुकूल कवर डिजाइन में मूल्य 150 रुपये रखकर किया है। 99 पेजों की इस पुस्तक में छोटी और बड़ी कुल 86 कविताएँ हैं। चूँकि दो कवयित्री हैं इसलिए प्रत्येक कविता के बाद रचयिता का नाम दिया है। अच्छा होता कि दोनों की रचनाएँ पुस्तक के अलग अलग भागों में होती। दोनों के विषयों और कथ्य शिल्प को ज्यादा समझ पाते। मिक्स होने से और लगातार पढ़ने से एक कविता का विषय तबतक याद रहता है जब तक दूसरा विषय नहीं आ जाता।
शिवांगी पुरोहितजी पुस्तक के प्रारंभ में ही लिखती हैं कि ‘मुझे फर्क नहीं पड़ता कि कौन मेरे बारे में क्या विचार रखता है, बस मुझे अपने आप पर विश्वास है, बाकि दुनिया की कटुता से यदि फर्क पड़ता होता तो इतने जल्दी इतना कुछ नहीं कर पाती।’
मेरी समझ में नहीं आया कि ये सब पुस्तक में लिखने की आवश्यकता क्यों पड़ी। अपने आप पर विश्वास रखना अच्छी बात है लेकिन इतनी जल्दी इतना कुछ करने का दंभ ठीक नहीं। रचनाकार को काहे की जल्दी। जब कोई कुछ भी लिखता है और वो बाजार में बिकने आता है तो पाठक स्वतंत्र हैं कुछ भी बोलने को। कितनों से और क्यों वैर पालें। रचनाकार हमेशा अपना काम करें। पाठक को जो करना है करेगा। विनम्रता ही महानता की ओर ले जाती है। रचनाकारों को अपना विरोध अवश्य सुनना चाहिए। हालाँकि पुस्तक के प्रारंभ में श्रीमती पुष्पा राय, हिन्दी साहित्य प्रोफेसर लिखती हैं कि इतनी कम उम्र में विपरीत परिस्थितियों में जीती शिवांगी ने अपने हुनर से पहले तो गद्य विधा और अब काव्य द्वारा मन मोह लिया है। इन पंक्तियों से रचनाकार के बारे में जानने की जिज्ञासा होती है। पुस्तक के भीतर एक जगह पढ़कर लगता है कि शायद यही हो। पंक्तियों को देखें-
“काश! आज माँ होती, तो जिंदगी कुछ और होती।”
ईश्वर करे मेरा अनुमान गलत हो।
रचनाओं में ज्यादातर तुकबन्दी का ख्याल रखा गया है। कहीं कहीं विचार आज के स्त्री विमर्श के विपरीत भी मिलेगी। अन्यथा प्रत्येक क्षेत्र में आज़ादी माँगने के इस दौर में कौन कवयित्री लिखेगी कि “घर से भागी लड़की आज मीडिया में छाई है, भारत को गोल्ड दिलाकर भी हिमा दास मुरझाई है।”
सन्नाटा कविता में रक्षा पुरोहितजी लिखती हैं कि “आज रोशनदान से बाहर झाँककर देखा, वाकई बहुत सन्नाटा था। इस पल की गुस्ताखी तो देखिए, ऐसा लगता है मानो आज की रात फिर से कई ख्वाबों का कत्ल हुआ है।”
कहीं कहीं शब्दों का संयोजन आपको नये रचनाकार की याद दिला देगा। कहीं से तो शुरुआत होगी, मैं इनकी शुरुआत यहीं से मानता हूँ। बहुत भारी हिन्दी में मुश्किल कविता नहीं है। आसान हिन्दी में कविताएँ हैं जो सबों को समझ में आ जाये। अनेक विषयों पर कविताएँ हैं। कोई एक विषय नहीं है। हाँ, पूरी पुस्तक पढ़ते वक्त नये का भाव बार बार आ जाता है। अगर एक बार आप सब पढ़ेंगे तो रचनाकारों का मनोबल बढ़ेगा। दोनों से भविष्य में बहुत अपेक्षाएँ हैं।
पुनः बधाई।