श्री राम नगीना मौर्यजी की लिखी कथा संग्रह “सॉफ्ट कॉर्नर” पढ़कर समाप्त किया है। इसे रश्मि प्रकाशन ने आकर्षक कवर में मूल्य 175 रखकर प्रकाशित किया है। मैं मौर्यजी को इस पुस्तक की बधाई देता हूँ। शुभकामनाएँ।
मेरी नजर में श्रीमती सिनिवालीजी की ‘हंस अकेला रोया’ के बाद की मेरे पास की पुस्तक है जिसे कोई भी कहीं भी पढ़ने लगे। एक बार जब पढ़ना शुरू करेगा तो रुकेगा नहीं। कथा बिल्कुल ही अपने घर, आसपास, गाँव और कस्बों के बीच घूमती है। अपनी जीवनशैली की सामान्य सी चर्चा है लेकिन कथ्य बहुत ही स्पष्ट है और शिल्प भी स्तर का है। नयी वाली हिंदी से ऊपर। रचनाओं में छोटी छोटी बातों का सुन्दर चित्रण है। पढ़ने के बाद लगता है कि ये तो छोटी आसान बात थी लेकिन अच्छे शिल्प से कथा पाठक को पकड़े रहती है। मैंने इनकी ये पहली पुस्तक पढ़ी है और मेरा मानना है कि इनके पास बहुत कहानियाँ भी हैं और बहुत साहित्य भी है। इन्हें कहानी ढूँढने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता। जो रोज घटित हो रहा उसका वर्णन ही ये कर दें तो कहानी बन जाये। इनके शिल्प की तारीफ करनी पड़ेगी। 128 पेज की पुस्तक में ग्यारह कहनियाँ हैं।
‘बेवकूफ लड़का’ कहानी में एक पति को पत्नी के सन्तान होने के समय लेबर रूम के बाहर बैठना पड़ता है। अब उसे अपने बचपन में अपना छोटा भाई होने की घटना याद आती है। ग्रामीण परिवेश और सुनहरा बचपन दोनों का अनुपम वर्णन है।
“अखबार का रविवारीय परिशिष्ट” बहुत ही सुन्दर रचना है जिसमें लेखक प्रत्येक दिन दो अखबारों में से एक अच्छी प्रति अपने घर के ऊपर रहने वाले सज्जन हेतु ऊपर रख आते हैं। एक दिन प्रिय रविवारीय परिशिष्ट एक ही आता है तो अपना धर्म निभाते ऊपर ही दे देते हैं। पूरा बाजार खोज आते हैं वह परिशिष्ट नहीं मिलता है। वो बेचैन हो जाते हैं। अगले दिन ऊपर से उसी परिशिष्ट में लपेटकर पकौड़ा आ जाता है। एक छोटी सी निर्जीव बात में कथाकार ने जान डाल दी है। यही तो लेखक की सफलता है।
‘लोहे की जालियाँ’ में एक किरायेदार खिड़की के आगे लोहे की जाली लगवाता है और छोड़कर आते वक्त बिना जाली लिए आ जाता है। बाद में पत्नी के कहने पर पिछले मकान मालिक से मिलकर नये किरायेदार से जाली का पैसा लेने जाता है लेकिन परिचित और उसके किये उपकार को यादकर वापस लौट आता है। कहानी का अंत बहुत ही रोचक है। लिखने का शिल्प ही कथाकार की शक्ति होती है। जैसा कि मैनें पहले लिखा कि इनके पास कहानियों की कमी हो ही नहीं सकती। बहुत आकर्षक तरीके से परोसते हैं।
‘छुट्टी का सदुपयोग’ में एक पति, पत्नी के साथ घूमने के लिए छुट्टी ले लेता है। घर के सभी लोग उनके आज घर में होने पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं। बच्चे भी अचानक ली गयी छुट्टी को अलग नजरिये से देखते हैं। अचानक मेहमान आ जाते हैं और उनके पीछे दिन बीत जाता है। अब विवश होकर मेहमान के लिए छुट्टी लिया बता मन को तसल्ली देते हैं। लिखने का अंदाज बहुत ही निराला है। पढ़ते वक्त चेहरे पर मुस्कान आती रहेगी।
बहुत पंक्तियाँ दिल को छू जाती हैं। अन्य कहानियाँ भी अच्छी बन पड़ी हैं। खासकर ‘सॉफ्ट कॉर्नर’ कहानी जो पुस्तक का नाम भी है पढ़ते वक्त चेहरे पर स्वतः मुस्कान आ जाती है। लेखक यहीं सफल हो जाता है। विवाह से पूर्व की बातों का पति और पत्नी दोनों वर्णन करते हैं। बहुत ही सुन्दर भाषा में छोटे वाकया का बेहतरीन चित्रण। मैं तो लेखक का प्रशंसक हो गया हूँ।
एक बात समझ लें कि पुस्तक हास्य व्यंग्य पुस्तक नहीं है। एक आकर्षण पैदा कर कथाएँ पाठक को बाँधे रहती हैं।
कुल मिलाकर “सॉफ्ट कॉर्नर” एक बहुत ही सुंदर कथा संग्रह है जिसे एक बार अवश्य पढ़ें। पुस्तक सहेजकर रखने लायक भी है।
अंत में पुनः श्री मौर्यजी को बधाई और भविष्य की शुभकामनाएँ देता हूँ। लिखते रहें, अगली पुस्तक की प्रतीक्षा में हूँ।