“काताम” पढ़कर समाप्त किया है। सर्वप्रथम लेखिका सुश्री तुम्बम रीबा लिलीजी को बधाई और शुभकामनाएँ। इस पुस्तक का प्रकाशन अनुज्ञा बुक्स ने हार्डकवर बाइंडिंग में मूल्य ₹350 रखकर किया है। 120 पेज की पुस्तक में 20 लोक कथाएँ हैं। तुम्बमजी अरुणाचल प्रदेश में हिन्दी की सह-प्राध्यापिका हैं और इस पुस्तक के माध्यम से उन्होंने अरुणाचल प्रदेश की लोक कथाएँ जो बचपन में बच्चे सुनते हैं, उन लोक कथाओं को सबके सामने लाया है। इसमें गालो लोक कथा, तवांग की लोक कथा, आदी लोक कथा हैं। यह लोक कथा अरुणाचल प्रदेश के अलग अलग जनजातियों की लोक कथाएँ हैं। आप इन कथाओं से वहाँ के जन मानस की विचारधारा समझ सकते हैं कि ये अपने बच्चों को क्या सिखाते हैं।
काताम का अर्थ ही होता है राह दिखाने वाला। पुस्तक अपने नाम के अनुरूप राह दिखाती है। इस पुस्तक की प्रत्येक कथा एक सकारात्मक सीख देती है। बचपन से ही माँ, बहन, दादी, काकी, नानी बच्चों को ऐसी कहानियाँ सुनाती हैं जो बच्चों के मन पर अमिट छाप छोड़ेंगी। अच्छाई और बुराई को चूहे, कुत्ते, गाय, भैंस, सिंह, बंदर जैसे पात्रों की मदद से ऐसे सुनायी जाती है कि बच्चे खो जाते हैं। एक कथा में बताया जाता है कि जब कोई स्त्री गर्भवती होती है तो उस वक्त उसके पति को और उसे कोई भी गलत कार्य नहीं करना चाहिए अन्यथा होने वाले बच्चे पर उसका गलत प्रभाव पड़ता है। उस वक्त उस व्यक्ति को कोई पेड़ नहीं काटना चाहिए, उस व्यक्ति को अच्छा काम करना चाहिए। यह असाधारण बात है। बचपन में ही अच्छे और बुरे का ज्ञान देना। ये तो जीवन की नींव है। सभी कथाओं में एक अच्छा संदेश है। इनकी कहानियों के पात्र के नाम बहुत ही सुंदर और खूबसूरत हैं। बहुत अच्छे शब्द आपको नये लगेंगे जो स्थानीय भाषाओं के शब्द हैं। आबो तानी, पासे रोदो, कोजाक, मुमसी, ओपो ताको इत्यदि। इस पुस्तक में बच्चों की कहानियाँ हैं लेकिन पढ़ने में मन बहुत लगता है। आप अरुणाचल प्रदेश के लोगों की जीवनशैली की बातें इन कहानियों से समझ सकते हैं। सभी 20 कहानियाँ मनोहारी हैं। इस पुस्तक को अरुणाचल प्रदेश की लोक कथाओं को और वहाँ के जीवन को समझने के लिए पढ़ी जा सकती है। बच्चे तो अवश्य पढ़ें। इतने इमेजिनेशन तो विदेशी फिल्मों में भी नहीं हो सकते जो हमारी संस्कृति में पहले से उपलब्ध हैं। जंगल, पहाड़ और पेड़ों के बीच का सामंजस्य की चर्चा अद्भुत है।
कुल मिलाकर एक बेहतरीन पुस्तक जिसे बच्चे चाव से पढ़ेंगे और बड़े अरुणाचल प्रदेश की जनजातियों की लोककथा के माध्यम से जनजातियों को समझेंगे। सुश्री लिली अरुणाचल में हिन्दी का दीपक जला बैठीं हैं यह अपने में बहुत बड़ी बात है। आपका आशीर्वाद उन्हें अवश्य मिले। लिलीजी को पुनः बधाई और भविष्य की शुभकामनाएँ।