कथ्य और शिल्प में बेजोड़ “गुलाबी नदी की मछलियाँ”
सर्वप्रथम “गुलाबी नदी की मछलियाँ” कहानी संग्रह हेतु लेखिका सिनीवालीजी को बहुत बधाई, शुभकामनाएँ. अंतिका प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड ने हार्ड कवर और रंगीन आकर्षक आवरण में 128 पेजों की इस नौ कहानियों वाली पुस्तक का प्रकाशन मूल्य रुपये 300 रखकर किया है.
आप सभी जानते हैं की सिनीवालीजी की शिक्षा भागलपुर विश्वविद्यालय से हुई है. इन्हें भागलपुर जिला और इसके आसपास की बोली भाषा, बोल-चाल, यहाँ के शब्दों को परखने, उनका साहित्य में प्रयोग करने में महारत प्राप्त है. इनकी रचनाओं में शुद्ध चक्की का आटा जैसी सोंधी खुशबू मिलती है और लिट्टी-चोखा, भात-खिचड़ी की तरह आसान, सुपाच्य अंतर्मन को छूने वाली अपनी बोली के शब्दों के साथ की कहानियाँ पाठक को पूर्ण पढ़े बिना उठने नहीं देतीं. मुझे इनको पढ़ने का बार-बार सौभाग्य प्राप्त हुआ है और इनकी रचनाओं में मैं बिल्कुल ही खो जाता हूँ. आज की लेखिकाओं में ग्रामीण परिवेश की चर्चा, शब्द संयोजन, इनके जैसी पकड़ दूर-दूर तक दिखायी नहीं देती. जिस किसी ने भी गाँव में अपना कुछ दिन भी बिताया है उन्हें इनकी कहानी आँखों के सामने से गुजरती हुई लगेगी. सत्य कथ्य और ग्रामीण शिल्प की दृष्टि से सभी रचनाएँ मजबूत हैं. अब कहानियों पर आऊँ.
पहली कहानी “रहौं कंत होशियार” में गाँव की राजनीति, ठेकेदार, दबंग जमींदार, बिचौलिया और पैसे वालों का गठजोड़ किस प्रकार से भोले-भाले किसानों की जमीन को हथियाकर उस पर ईंटा का भट्ठा लगाते हैं और सारे ग्रामवासी ठगे चले जाते हैं, इसकी चर्चा है. सार्थक चित्रण के साथ समाज की बुराइयाँ और उत्प्रेरक लोगों का अंत में पछताना, दोनों का जीवंत वर्णन कथा को नयी ऊँचाइयों पर ले जाती है.
दूसरी कहानी “गुलाबी नदी की मछलियाँ” है जो इस पुस्तक का नाम भी है. इस कहानी में बिहार में होने वाले अपहरण की चर्चा है. एक लड़की का पिता अपनी लड़की के विवाह के लिए दहेज़ जुटाने हेतु एक युवक का अपहरण करता है. रखे गये स्थान पर उसकी ही पुत्री भोजन और पानी देने आती रहती है. पुलिस की दबिश ज्यादा है. जल्द ही वह सुनती है कि अभी तक फिरौती के पैसे नहीं मिले हैं अतः पुलिस से बचने के लिए युवक को मार दिया जायेगा. वह युवती जो अब तक इस युवक के प्रेम में पड़ चुकी है उसे वहाँ से भाग जाने को कहती है. युवक वापस आकर उसे ले जाने का आश्वासन देता है लेकिन युवती प्रेम में पड़कर भी कभी नहीं आने का अनुरोध करती है. यहाँ आकर लगता है कि प्रेम त्याग का भी नाम है. इसमें अपहरण करने के मूल कारण, अपहरण के बाद की विस्तृत चर्चा और इस पूरी प्रक्रिया के बीच एक प्रेम प्रसंग का सुंदर मार्मिक चित्रण है. अब आगे क्या होगा सोचकर पाठक कहानी से बंधा रह जाता है, अंत तक उठ नहीं पाता. हालाँकि यह कहानी मैंने पहले पढ़ी थी और यह शीर्षक मुझे बहुत अच्छा नहीं लगा था लेकिन सुनते-सुनते कर्णप्रिय लगने लगा है.
तीसरी कहानी “अतिथि” सामान्य सी कहानी है जिसमें एक महिला अपनी दो बच्चियों के साथ कुछ गलत घटित ना हो जाये की आशंका से रात भर सो नहीं पाती. कहानी बहुत छोटी है लेकिन लिखने का तरीका और एक अनायास सा भय का चित्रण विचारणीय है. अच्छा अपरिचित भी सन्देह के घेरे में है. अनजाना सा भय नींद नहीं आने देता है. इस कथा में समाज की विकृति का स्तर दिखता है.
“अधजली” कहानी 90 के दशक में बिहार में होने वाले हथपकड़ा विवाह यानी जबरदस्ती युवक को उठाकर, मारपीट कर, अपहरण कर लाकर किसी लड़की के साथ विवाह करा देना पर आधारित कहानी है. इसमें एक युवक को पकड़कर जबरन विवाह करा दिया जाता है और वह युवक अपने घर वापस जाकर कभी इस महिला के पास नहीं आता है. यह महिला अपने मायके में पूरा जीवन बिताती है. सधवा की तरह रहती तो है लेकिन उसे खुद पता नहीं चलता कि वह सधवा है या विधवा? पूरी कहानी इसी द्वंद्व में है. कमजोर परिवार दहेज़ की राशि जुटा नहीं पाते थे और इस प्रकार जबरन विवाह करवाते थे. यह नाकाम हथपकड़ा विवाह अर्थाभाव में बर्बाद होते जीवन की अद्भुत दास्तान है.
“इत्रदान” कहानी इनकी बहुत ही चर्चित कहानी रही है. यह कहानी पुस्तक “अवली” में भी छपी थी. पूरे देश में इसकी बहुत तारीफ हुई थी. यह एक किसान के परिवार की कहानी है जिसमें मायके से मिला इत्रदान पारिवारिक जरूरतों के आवश्यक क्षणों में नकदी नहीं होने के कारण पत्नी के कहने पर पति एक सम्बन्धी के पास बेच देता है. बाद में वह सम्बन्धी उस इत्रदान को अपनी पुत्री के विवाह में उपहार दे रहा होता है और यह अपना इत्रदान पहचान लेती है. बहुत ही मार्मिक चित्रण है. बिना नौकरी वाले एक अच्छे किसान परिवार की चर्चा आँखें नम कर देती हैं.
“करतब बायस” कहानी गाँव के चुनाव और वहाँ की राजनीति पर आधारित है. रोचक कहानी है. “बँटवारा” और “दूल्हा बाबू” कहानियाँ भी मनोहारी हैं.
इस पुस्तक के बारे में श्रीमती मैत्रेयी पुष्पाजी सत्य लिखती हैं कि सिनीवाली की तरह ही दूसरी लेखिकाएँ ‘फैशनेबल राइटिंग’ से हटकर उस धरती की कहानी लिखें जो धरती आपकी कलम से अपनी पुकार दर्ज कराना चाहती है. जो धरती अपने पहाड़, नदियों और तालाबों पर होते अत्याचारों की एफआईआर लिखाना चाहती है.
इनकी कहानियों में बिहार में उपयोग होने वाले कुछ विशेष शब्द हैं जिनके अर्थ आसानी से आप नहीं समझ पाएँगे. कुछ पंक्तियाँ बहुत सटीक हैं, जिन्हें पढ़कर मैं बहुत प्रभावित हुआ. एक जगह लिखती हैं कि ‘पैसा जीभ पर लगाम लगा देता है.’ अनेक विशेष बिहारी शब्दों के अर्थ पृष्ठ के नीचे दिये हुए हैं लेकिन ऐसा लिखने का सामर्थ्य आज के समय में विरले को ही है.
कुछ शब्द आपको आनंदित भी करेंगे. शब्दों को देखें- छोटका बुतरू अर्थात छोटा बच्चा. ईंटा पार रहे हैं अर्थात ईंट बना रहे. वह तो जन्म से ही उमताहा है अर्थात जल्द आवेश में आनेवाला. इस बार इनकी कहानियों में कुछ गाली के शब्दों का भी प्रयोग है. एक जगह लिखती हैं बरगाही… यह भागलपुर जिले की एक गाली है जिसका अर्थ ऐसे निकलता है. गाही मतलब पाँच और बर मतलब पति, अर्थात जिसके पाँच पति हों. एक जगह लिखती हैं कि ‘दवा फुसरी के लिए खाते हैं’ अर्थात दवा छोटे से घाव के लिए खाते हैं.
एक जगह लिखती हैं कि बिहौती जमाई यानी नव विवाहित दामाद को रखना हाथी पालने के ही बराबर था.
इस प्रकार से इनकी कहानियों में ग्रामीण जीवन का, भागलपुर और आस-पास का, जो सच्चा वर्णन मिलता है वह अन्य रचनाकारों की पुस्तकों में आज के समय में उपलब्ध नहीं है. यह पुस्तक निश्चित रूप से मील का पत्थर साबित होगी. इस पुस्तक को कोई बड़ा पुरस्कार मिल जाये तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. राष्ट्रीय स्तर पर पुस्तक चर्चा में तो है ही.
अगर नकारात्मकता की बात करूँ तो ऐसी कोई ख़ास नकारात्मक बात तो नहीं दिखती सिवाय दो के. एक कि 128 पृष्ठों की इस पुस्तक का मूल्य रुपये 300 है जो ज्यादा लगता है और दूसरी की कुछ कहानियाँ इन्होंने पहले ही फेसबुक पर और अन्य ऑनलाइन पोर्टल पर पोस्ट कर दी है. सोशल मीडिया पर कहानी पोस्ट कर देना इस विचार से नुकसानदायक भी है और पाठकों की पुस्तक खरीदने की जिज्ञासा को कम भी करेगी लेकिन अपनी रचनाओं को एक जगह एकत्रित कर पुस्तक के रूप में देखना अपने आप में बहुत बड़ी बात है. मुझे इनसे भविष्य में बहुत अपेक्षाएँ हैं. भागलपुर मेरा भी गृह नगर है अतः वहाँ की बोली, भाषा की कहानियाँ मैं जब आँखें बंद कर सोचता हूँ तो लगता है कि मेरी आँखों के सामने से ये कहानियाँ चलचित्र की तरह चल रहीं हों. लगाव स्वाभाविक है.
मैं इस अद्भुत कथ्य और शिल्प से सुसज्जित पुस्तक की सफलता की कामना के साथ इन्हें पुनः बहुत-बहुत बधाई के साथ भविष्य के लिए शुभकामनाएँ देता हूँ.
हमारे यहाँ से आने वाली पुस्तकों और साहित्यिक गतिविधियों के लिए बने रहें हमारे वेबसाइट www.bibhutibjha.com पर.
धन्यवाद.
-भारद्वाज.