“भौजिया” पुस्तक हेतु हिन्दी में रचनाएँ आमंत्रित
“कन्सार” कहानी संग्रह हेतु रचनाएँ मंगवाये थे लेकिन ज्यादातर रचनाएँ चयन कमिटी को पसंद नहीं आयीं. अभी पुस्तक “भौजिया” का समय आ गया. विगत एक वर्ष से अस्पताल/ ICU और अनेक समस्याओं से जूझते समय बीतता गया, देर होती गयी. अभी विचार कर रहे कि “कन्सार” को रोककर “भौजिया” ही लायें जिसमें कहानी, कविता, गीत और ग़ज़ल हो यानी हमारी साहित्य की यात्रा जहाँ से प्रारंभ हुई थी. अभी कन्सार बन्द कर रहे. कन्सार हेतु चयनित रचनाएँ “भौजिया” में चयनित मानी जायेंगी.
श्री झाजी पुस्तक हेतु समय नहीं दे पाते. अब सब मेरे जिम्मे है.
अगर आपको लगता है कि आपके पास कोई साहित्यिक रचना ऐसी है जो “भौजिया” पुस्तक में आ सकती है तो भेज सकते हैं. कोई शर्त या शुल्क नहीं, एक लेखकीय प्रति मिलेगी. गाली-गलौज, हिन्दू – मुस्लिम, वर्तमान राजनीति या किसी व्यक्ति, जाति या किसी धर्म विशेष को आहत करने वाली रचना नहीं लेते, सिर्फ साहित्यिक रचनाएँ चुनते हैं जो अनेक वर्षों बाद भी नयी लगे. एक व्यक्ति की दो से ज्यादा रचनाएँ नहीं ली जायेंगीं. चयन समिति का निर्णय मान्य होगा. रचनाओं के परिमार्जन का अधिकार सम्पादक को होगा.
अभी तक पाँच पुस्तकें “अवली”, “इन्नर”, “प्रभाती”, “बारहबाना”, “पल पल दिल के पास” आ चुकीं.
अभी तक लगभग 300 से ज्यादा रचनाकारों की रचनाएँ आ चुकीं, किसी से कोई आर्थिक सहयोग नहीं लिया गया है और एक लेखकीय प्रति दी गयी.
“चदरिया झीनी रे झीनी” कहानी संग्रह पर तीव्र गति से कार्य चल रहा.
“कथरी” छोटी कहानी की पुस्तक का काम अभी रुका हुआ है.
“भौजिया” में कहानी, छोटी कहानी, कविता, गीत और ग़ज़ल होंगी. एक व्यक्ति की दो से ज्यादा रचनाएँ नहीं ले पायेंगे. आप सभी जानते हैं कि यहाँ से पत्रिका नहीं बल्कि पूर्ण पुस्तक निकलती है. पुस्तकें स्वयं के खर्चे पर ही पुस्तकालयों को भेजी जाती है.
आप सादर आमंत्रित हैं. एक लेखकीय प्रति से ज्यादा अभी कोई मानदेय देना संभव नहीं है.
आप अपनी रचनाएँ ईमेल [email protected] पर 21 मार्च, 2022 से 25 मार्च, 2022 तक भेज सकते हैं. विषय में पुस्तक “भौजिया” हेतु कहानी/ कविता जो भी हो लिखना नहीं भूलें तथा अपना पूरा पता पिन कोड सहित अवश्य दें.
धन्यवाद.
-माधुरी विभूति झा
फरवरी अंक में, कहानी “मंजू की बेटी”, वाराणसी से प्रकाशित , सच की दस्तक टीम द्वारा।
🌷🙏🌷भौजिया हेतु प्रेषित
“मंजू की बेटी ”
मंजू का बेटा बड़ा हुआ,वह तरह-तरह के सवाल अपनी माँ से करने लगा । लड़की क्यूँ शादी होने के बाद अपने बाप के जगह पति का नाम लिखवाए? ये सुनकर लगा अन्दर बहस हो रही है। बच्चों का सवाल सही है इसलिए मैंने कमरे का दरवाज़ा नहीं घटखटाया,सोचा अन्दर जा कर क्यूँ बाधा बनूँ इसलिए बाहर से ही सब कुछ सुनना ठीक समझा।
बच्चों ने फिर सवाल किए ” क्या आज भी महिलाएँ पुरुषों के भरोसे जी रही हैं ? ” सच में, बच्चों का सवाल तर्क करने लायक था। मैंने खिड़की से झाँका,अन्दर मंजू है, चारपाई पर उसकी बेटी सज संँवर रही है, उसकी उम्र करीब 10 वर्ष की होगी वह आईने को इस तरह देख रही है मानो आईने में अपना चेहरा नहीं आईने को ही देखना है। उसके बेटे के हाथ में एक किताब है जिसे मोड़ कर हाथ में रखा है।
बेटे ने फिर सवाल किया “क्या महिलाएँ इसी तरह चुप रहेंगी जिस तरह से आप चुप हो ?”
मंजू ने बेटे को झिड़की दी कहा “आज कल तुम बहुत बोलने लगे हो ,जाओ बैठ कर पढ़ो। ” मंजू की बेटी ने आईना पटक दिया, शीशा टूट चुका था। माँ ने उसे भी झिड़की दी ” इस पगली को क्या हो गया ,अरे आईना तुम्हें खा रहा था क्या ?” मंजू की बेटी रोते हुए बोली ” मुझे आईना देखकर डर लगता है।”
मुझे लगा मंजू की बेटी सही कह रही है। इस दुनिया को देखकर किसको डर नहीं लगेगा, यहाँ हर किसी के अंदर डर है पर सब एक पर एक बनावटी निडर है। हर कोई दुनिया की सच्चाई जानता है पर जानकर अन्जान बना रहता है। मुझे लगा उसकी बेटी आईने में दुनिया की सच्चाई देख ली इसलिए डर गई है।
बेटी आँखें मलती हुई बोली “तुम भैया के सवालों का जवाब दो।”
राहत की साँस लेते हुए मंजू बोली “अच्छा तो तुमने इसलिए आईना तोड़ दिया।”
मंजू ने बच्चे से पूछा “ये सब सवाल तुम से किसने किया? तुमने कहाँ सुना? बच्चे ने कहा “मैंने देखा है।”
मंजू ने पूछा “तुम कहाँ देख लिया?” मंजू की बेटी बोली “तुम अपने काग़ज़ात में मेरे बाप का नाम क्यूँ लिखती हो?अपने बाप का नाम क्यूँ नहीं लिखती? क्या तुम्हारे बाप नहीं हैं ?”मंजू समझ चुकी थी ये बच्चे अपने अधिकार के लिए तर्क-वितर्क करना सीख गये हैं। मंजू हँस कर बोली “अच्छा तुम ही बताओ मुझे क्या करना चाहिए था।”
तब मंजू के बच्चों ने मिलकर कहा ” लड़का-लड़की एक समान, अब सबला है नारी अबला नहीं , महिलाओं को – हम जगाएंगे – पुरुष-प्रधान समाज को भगाएंगे,तुम मेरा साथ दो – मैं तुम्हारे साथ हूँ ।
जब बाप की संपत्ति में महिलाओं को समान अधिकार है तो उसके नाम पर क्यूँ नहीं? पुराने रीति-रिवाज़ों को मारो गोली। हर क्षेत्र में समान अधिकार दो। बेटे की शादी इक्कीस वर्ष तो बेटी के लिए भी ईक्कीस वर्ष हो।”
बेटी ने नारा दिया – देश पर मेरा भी अधिकार है -भेद भाव नहीं चलेगा, नहीं चलेगा। अंदर बच्चे इस तरह नारे लगा-लगा कर उछल-कूद करने लगे मानो पल भर के लिए लगा बिना टिकट का मैं ड्रामा देख रहा हूँ। मुझे लगा भारतीय साहित्य में कुछ कमी रह गयी है, जिस तरह काली दुर्गा को युद्ध करते दिखाया गया है उसी तरह लक्ष्मी,सरस्वती, पार्वती की शिक्षा पर गाथा , ग्रंथ , उपन्यास कहानी लिखना होगा शायद तब जाकर ….. ।
अचानक मेरे कान में एक सिसकती हुई आवाज सुनाई दी ।
वह ऐसी आवाज थी लगा उसमें अथाह पीड़ा है जिसे सुनकर किसी की भी आत्मा दर्द से भर जाती ।
मैं सोचने लगा अचानक मंजूू को क्या हो गया?
एक बार फिर मैंने खिड़की से उसके कमरे में झाँका, मंजू नहीं दिख रही थी पर उसकी अवाज अब भी सुनाई दे रही थी। मुझे लगा कमरे में एक कोई और महिला है जिसे मैं नहीं जानता था उसी की आत्मा से वह अवाज निकल रही थी।
उसके दर्द के एहसास से कुछ पल के लिए मेरी आँखें अपने आप बंद हो गईं । शायद उस वक़्त मंजू पलंग के नीचे से बच्चों के फेंका हुआ कुछ समान निकाल रही थी, तभी मंजू ने जोर से बच्चों को समान फेंकने के लिए मना किया। तब मेरी आँखे खुली तो देखा इस समाज को कोसते हुए मंजू उस सिसकती हुई महिला के आँसू पोछ रही थी और अपने नसीब पर जीने की ढाँढस दे रही थी ।
बच्चों ने पूछा “माँ बुआ के साथ ऐसा क्यूँ होता है? क्या शादी के बाद महिलाओं का धन, संपत्ति ,परिचय सब कुछ पति ही होता है तो फिर उसका पति मार-पीट कर मेरे दादा के घर क्यूँ भेज दिया करता था। अब तो दादा ज़िंदा भी नहीं हैं,क्या दादा के नाम के जगह उसके पति का नाम इसलिए लिखा होता है? अब उसे उसके बेटे भी अपने घर में नहीं रहने देते क्या अब बुआ यहीं रहेंगी? मंजू बोली जिस तरह यह तुम्हारे पिताजी का घर है उसी तरह एक दिन यही घर इनके पिताजी का था इसलिए आती हैं।
बच्चों की बातें सुन कर मंजू शून्य में खो चुकी थी मानो वह पश्चाताप कर रही थी कि समाज की महिलाओं के दुख-दर्द के बारे में उसने कभी कुछ क्यों नहीं सोचा।
अपनी ननद का कष्ट देखकर भी क्यूँ चुप रही? क्यूँ नहीं उसके पति को फटकार लगाई? अगर तभी उसके पति को फटकार लगाई होती, समाज के दो चार लोगों को बार-बार बैठाया होता तो आज उसके बच्चे अपनी माँ को इज़्ज़त के साथ अपने घर में रखता, ज़्यादा कुछ नहीं तो दो वक़्त की रोटी ज़रूर देते, चुप रहने से समाज में किस तरह अमानवीय व्यवहार बढ़ रहे है बढ़ता जा रहा है …
मंजू की बेटी गोद में बैठती हुई बोली ” माँ सुनो” मंजू अनमयस्क थी बेटी ने फिर अपने हाथों से माँ का सर हिलाया “माँ सुनो” । मंजू बोली “अब क्या हुआ तुम्हें”।
” मैंने सुना है जब धरती बनी थी तो ईश्वर ने आधी धरती महिलाओं को दी,आधी धरती पुरुषों को दी। क्या आज भी आधी धरती महिलाओं की है?
एक स्त्री को ज्ञान की देवी बनाया, आज के स्त्री को ज्ञान के लिए तरसाया। एक स्त्री को धन की देवी बनाया पर उसी धन के लिए आज स्री ने ख़ुद को कोठे पे बैठाया।
एक स्त्री को आदिशक्ति बनाया पर आज स्त्री को किसने शक्तिहीन बनाया ? धन, बल की ताक़त पर किसने घर की स्त्री को ग़ुलाम बनाया।
माँ तुम कहती हो कि अपने पिता के स्थान पर लड़की इसलिए पति का नाम लिखती है क्यूँकि शादी के बाद वह घर उसका होता है और उस पर पति का अधिकार होता है।
पर तुम कहती हो मैं शादी के बाद भी यही रहूँगी। मेरे पति भी यहीं रहेंगे, तो क्या वह अपने माता पिता के नाम के जगह मेरे मेरे माता-पिता का नाम लिखेंगे? हमारे घर की संपत्ति भी तो लड़के की होगी क्या उस तरह उस पर मेरा अधिकार होगा?
मंजू का बेटा बोला – “हाँ जिस बाप को सिर्फ बेटी है उसके घर जमाई, अपने माँ-बाप के जगह लड़की के माँ-बाप का नाम क्यूँ नहीं लिखता है? ये भी होना चाहिए था। आख़िर उसी तरह लड़की की पूरी संपत्ति भी तो लड़के की हुई। लड़की के भरोसे ही लड़के का जीवन चल रहा है।
यह सुनकर मंजू ने आराम की एक गहरी साँस ली मानो उसे लगा हो अब महिलाओं के सम्मान के लिये नए पुरुष ख़ुद उसके हक़ लौटाने के लिए आगे बढ़ रहे हैं ।
पर क्या जिसके घर की महिलाएँ पीड़ित हैं वही पहले आगे आएंगे बाकी लोग नहीं आएंगे। मंजू को लग रहा था लड़कियों का भी नाम होता है उसे भी उसके नाम से जाना जाना चाहिए।
मंजू का बेटे ने फिर नारा दिया “हर क्षेत्र में आधा हक महिलाओं का होना चाहिए।विश्व-भर में ये आवाज गूंजती रहनी चाहिए । ”
जैसे लगा मेरे कानों में आकर किसी ने कहा – मेरे पास रुपया नहीं है चढ़ाने को,अब स्कूल खोलो बच्चे को पढ़ाने को । मैं चौंक-सा गया फिर किवाड़ खटखटाये। किवाड़ खुले और बच्चों को गोद में उठा लिया। तब भी मंजू की बेटी उस टूटे हुए आईने को इस तरह देख रही थी मानो उसके अंदर और भी कई सवाल हों।
चन्दन कुमार विश्वास
अररिया बिहार
नमस्ते एवं साधुवाद
अग्रिम शुभकामनाएँ