आम जीवन का अनुभव और विचारों का दर्पण “शतपर्णी”
सर्वप्रथम “शतपर्णी” कविता संग्रह हेतु श्रीनारायण झाजी को बहुत-बहुत बधाई, शुभकामनाएँ. इस पुस्तक का प्रकाशन बीएफसी पब्लिकेशंस ने बहुत ही सुंदर आकर्षक रंगीन प्लास्टिक कोटेड आवरण के साथ मूल्य ₹ 190 रखकर किया है. इस कविता संग्रह में 60 कविताएँ हैं.
विद्वानों के अनुसार मानव जब अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है तो वह मुक्त ह्रदय हो जाता है. ह्रदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती है उसे कविता कहते हैं. कविता मनुष्य को स्वार्थ संबंधों से ऊपर उठाती है और शेष जीवन से रागात्मक सम्बन्ध जोड़ने में सहायक होती है.
भारतीय साहित्य के सभी प्राचीन ग्रन्थ कविता में ही लिखे गये हैं. इसका विशेष कारण यह था कि लय और छंद के कारण कविता को याद करना आसान था. संजोने की कोई उत्तम व्यवस्था नहीं हुई और पीढ़ी दर पीढ़ी याद कर रखी जाने लगी. भारत की प्राचीनतम कविताएँ संस्कृत भाषा में ऋग्वेद में हैं जिनमें प्रकृति की प्रशस्ति में लिखे गये छंदों का सुन्दर वर्णन है.
कविता का आन्तरिक पक्ष काव्य की आत्मा होती है. आन्तरिक पक्ष के अंतर्गत भाव सौन्दर्य, विचार सौन्दर्य, नाद सौन्दर्य और अप्रस्तुत योजना का सौन्दर्य सम्मिलित किया जाता है. अच्छी कविता भाव को जगाने का एक अच्छा माध्यम है. कविता वह है जो क्रान्ति का भाव पैदा कर सके, मन में उत्साह और ह्रदय में प्यार भर दे.
श्रीनारायण झाजी की यह कविता संग्रह इन्हीं विचारों के मध्य है. सभी कविताएँ अलग-अलग मनःस्थिति में लिखी गयी हैं. किसी एक श्रेणी में देना उचित नहीं. कविता का प्रारम्भ ही ‘पंथी रे!’ से होती है. जब कहते हैं कि
“किस नगरी से आया पंथी !
किस नगरी है जाना रे !
चलते रहना काम तुम्हारा
ठौर न कोई ठिकाना रे ।”
बीच में अपनी दिवंगत अर्धान्गिनी को याद करते कहते हैं कि
“कितनी आशायें कितना विश्वास लिये।
तुम दुलहन बन आयीं, मेरे पास प्रिये!
अब ढलान पर बात समझ में आई है।
जैसे धुँध छटे तो सूर्य दिखाई दे।
जैसे कोई कथाकार या कवि कोई,
निज जीवन के अनुभव की कुछ बात लिखे।
मान, सम्मान, विश्वास और प्रेम,
सब है, फिर भी सूनापन है पास प्रिये!
कितनी आशायें कितना विश्वास लिये।
तुम दुलहन बन आयीं, मेरे पास प्रिये!”
इनकी कविताओं में मन की बातें तो हैं ही साथ ही साथ हिम्मत बढ़ाने की भी सुन्दर चर्चा है.
“पत्तों का झरना
अंत नहीं है तरुवर का ।
यह तो वसंत के आने का
परिचायक है ।
इस अमाँ निशा का
सूच्यभेद यह अंधकार,
आने वाली
सुरमई सुबह का द्योतक है ।
मरुथल है,
तो क्या हुआ ?
यहाँ भी छाँव हेतु,
हम सब को मिलकर
पीपल एक लगाना है ।
बस हिम्मत और लगन से
आगे बढ़ना है ।
मंजिल को तो
कदमों के नीचे आना है ।”
कुल मिलाकर विभिन्न भावों और स्थितियों के बीच की रचनाएँ एक सामान्य व्यक्ति के जीवन, अनुभव और विचार का दर्पण है. पाठक स्वयं को इन कविताओं में अवश्य देख पायेंगे. अनेक कविताएँ गंभीर भावों के बीच, तीक्ष्णता के दीपों से सुसज्जित मन को झकझोर देते हैं. मेरी दृष्टि में यही कवि की सफलता है. कविताएँ प्रत्येक वर्ग और उम्र के पाठक के लिए है. मैं श्रीनारायण झाजी को इस कविता संग्रह की सफलता की शुभकामनाएँ देता हूँ.
- भारद्वाज.