सर्वप्रथम परों को खोल पुस्तक हेतु शायर श्री शकील आज़मी को बहुत-बहुत बधाई, शुभकामनाएँ. इस पुस्तक का संकलन और संपादन श्री सचिन चौधरी ने और प्रकाशन मंजुल पब्लिशिंग हाउस, भोपाल ने आकर्षक रंगीन आवरण में मूल्य ₹ 195 रखकर किया है. आजमीजी को अक्सर यूट्यूब पर या मुशायरा की रिकॉर्डिंग में सुनता हूँ. इस पुस्तक में गजलें, नज्में, चुनिंदा अशआर और उनके लिखे फिल्मी गाने हैं. अनेक फिल्मों के गीत भी आजमीजी ने लिखे हैं जिनमें धोखा, मदहोश, इजहार, ई एम आई, लाइफ एक्सप्रेस, हांटेड, 1920 इविल रिटर्न्स, ज़िद, तुम बिन, मुल्क इत्यादि प्रमुख हैं. मरहूम शायर कैफी आजमी ने इनके बारे में कहा था कि ये वहाँ से शायरी शुरू करते हैं जहाँ पहुँचकर मेरी शायरी दम तोड़ने वाली है. इनकी पहली पुस्तक ‘धूप दरिया’ 1996 में उर्दू में आयी थी, फिर ‘एश-ट्रे’, ‘रास्ता बुलाता है’, ‘मिट्टी में आसमान’, ‘पोखर में सिंघाड़े’ आयीं. इनकी पुस्तकों, गज़लों और शायरियों की समीक्षा इस विधा के विद्वान करेंगे. मैं एक पाठक, एक श्रोता के नाते अपना निजी विचार रख रहा हूँ.

इनकी शायरी में मुझे आम जीवन या सामान्य प्रेम की स्थिति दिखी. कोई एक विशेष शब्द या स्थिति से बंधे शायर नहीं हैं. प्रकृति, घर, सीलन, दीवार, परिंदे, पहाड़, देश और खेतों जैसे शब्दों से बाहर भी इनकी दुनिया दिखी. इस पुस्तक के कुछ शेर मुझे बहुत अच्छे लगे.

तोड़ दो तो भी सच ही बोलेगा
आईना कब किसी से डरता है.
कोई भी गम हो बहुत देर तक नहीं रहता,
मोहब्बतों में बिछड़ कर भी लोग जीते हैं.”

ये जब अपनी गज़लों में ख़ुदा/ ईश्वर को याद करते हैं तो अलग दुनिया में ले जाते हुए कहते हैं कि
कहीं कोई है जो नब्ज़े-दुनिया चला रहा है वही खुदा है,
जो हो के गायब कमाल अपने दिखा रहा है वही खुदा है,
जो बन के बादल जमीं पे बरसे, जमीं को सींचे, उगाए सब्जे,
जो कच्ची फसलों को धूप बनकर पका रहा है वही खुदा है.

जीवनशैली की बात हो तो सलाह भी दे देते हैं कि
खुद को इतना भी मत बचाया कर,
बारिशें हों तो भीग जाया कर,
काम ले कुछ हसीन होटों से,
बातों-बातों में मुस्कुराया कर.

इनके कहे गये खास शेर जो काफी चर्चित हैं, इसमें हैं.
परों को खोल ज़माना उड़ान देखता है,
जमीन पर बैठकर क्या आसमान देखता है,
मिला है हुस्न तो इस हुस्न की हिफाजत कर
संभल के चल तुझे सारा जहान देखता है.

ऐसा नहीं है कि इस पुस्तक में सिर्फ महबूब और प्रेम वाली शायरी ही है. मजदूरों के लिए दिल को छूने वाली शायरी में कहते हैं कि
सवेरे निकलूँ मैं शाम आऊँ तो घर चलाऊँ
पसीना जाकर कहीं बहाऊँ तो घर चलाऊँ,
जहाँ पे मरता हूँ रोज जीने के वास्ते मैं
वहीं से खुद को बचा के लाऊँ तो घर चलाऊँ.

सामान्य जीवन को देखने का इनका अंदाज अलग है. आम आदमी के दर्द को बताता शेर कि
हर भीड़ का मैं हिस्सा मैं आम आदमी हूँ,
रहता हूँ फिर भी तन्हा मैं आम आदमी हूँ,
रहता हूँ थोड़ा थोड़ा सबकी कहानियों में
मेरा न कोई किस्सा मैं आम आदमी हूँ.

गाँव को याद करते हैं तो शहर की कमी दिखती है.
धुआँ धुआँ है फ़ज़ा रौशनी बहुत कम है,
सभी से प्यार करो जिंदगी बहुत कम है,
हमारे गाँव में पत्थर भी रोया करते थे
यहाँ तो फूल में भी ताजगी बहुत कम है.

दुआ और बददुआ की बातों पर गहराई वाले उनके शेर देखें कि
चाहा, मगर गले से लगाया न जा सका,
इतना वह गिर गया कि उठाया ना जा सका,
कहते हैं एक बार जिसे बद दुआ लगी
उसको किसी दवा से बचाया न जा सका.

कुछ सामान्य से दिखने वाले शेर भी गंभीर ईशारा करते हैं.
घर इतने वीरान नहीं थे,
जब ये रोशनदान नहीं थे
बातें भी हम ही सुनते थे
दीवारों के कान नहीं थे.

इस पुस्तक में कुछ नज़्म भी हैं. इनके वजनदार नज़्म सोचने को विवश करते हैं. एक नज़्म दूसरे दर्जे की पिछली कतार का आदमी देखें.
गोश्त
मछली
सब्जियाँ
बनिये का राशन
दूध-घी
मुझको खाती हैं ये चीजें
मैंने कब खाया इन्हें
मेरा घर रहता है मुझमें
घर में मैं रहता नहीं
बीवी बच्चों के फटे कपड़ों में मैं हूँ
और नए जोड़ों की खुशियों में
छुपा जो कर्ब(पीड़ा) है
वो भी हूँ मैं
फीस में स्कूल की
कॉपी किताबों में भी मैं
मैं ही हूँ चूल्हे की गैस
मैं ही हूँ स्टो का तेल
मेरे जूते जोंक की मानिंद
मेरे पाँव से लिपटे हुए हैं
चूसते हैं मेरा ख़ून
मेरा स्कूटर
मिरे काँधों पे बैठा है
मैं उसके टायरों में घूमता हूँ
और घिसता हूँ.

इस पुस्तक में कुछ फिल्मों के गाने और चुनिंदा अशआर भी हैं जो पुस्तक की खूबसूरती को बढ़ाते हैं. कोई गीत या ग़ज़ल और अत्यधिक प्रसारित होती है जब वो तरन्नुम में आ जाती है. इनके अनेक गीत फिल्मों में हैं जो प्रसिद्ध भी हुए हैं. कुल मिलाकर शेरो-शायरी पढ़ने वालों के लिए अच्छी पुस्तक है. संपादक ने मेहनत से जुटाया है और बढ़िया संकलन बनाया है. शायरी और गीतों की दुनिया में नई उम्र के शायर और स्थापित गीतकार की श्रेणी में शकील आज़मीजी से बहुत अपेक्षाएँ हैं. दोनों, रचयिता और संपादक को भविष्य की शुभकामनाएँ.
***

बचपन से साहित्य पढ़ने का शौक. अनेक भाषाओं की पुस्तकें पढ़कर अपना विचार देना. तत्पश्चात पुस्तकों की समीक्षा करना. फिर लिखना प्रारम्भ. अब तक “अवली”, “इन्नर” “बारहबाना” और “प्रभाती” का सफल सम्पादन.