“अद्भुत शिल्प में कोदंड रामकथा”
“कोदंड रामकथा” पुस्तक हेतु लेखक श्री देवांशु को बहुत-बहुत बधाई, शुभकामनाएँ. सुंदर रंगीन आवरण में 260 पेजों की इस पुस्तक का प्रकाशन शांति पब्लिशर्स (इंडिया) ने मूल्य रुपये 175 रखकर किया है. 34 खण्डों में लिखी इस पुस्तक की जितनी भी प्रशंसा की जाये, कम है.
श्री रामचरितमानस के माध्यम से हम सभी प्रभु श्रीराम के पूरे जीवन वृत्त की प्रसिद्ध कथा पहले से जानते हैं, बचपन से सुनते और रामलीलाओं में देखते आये हैं फिर इस पुस्तक में नया क्या है? इस पुस्तक को पढ़ने की आवश्यकता क्या है? यह पुस्तक वाल्मीकि रामायण का हिन्दी अनुवाद भी नहीं है. फिर क्यों पढ़ें? लेखक प्रारंभ में ही कहते हैं कि कथा वाल्मीकि रामायण पर ही आधारित है और कहीं-कहीं ‘निराला के राम’ का प्रभाव है. फिर ख़ास क्या है?
इस पुस्तक को इसलिए पढ़नी चाहिए कि लेखक ने अपनी भाषा और शिल्प में पात्रों के संवादों की रचना की है. इस पुस्तक को लिखने में संवादकीय शैली का अद्भुत प्रयोग है, यह नया है. अर्थात एक दूसरे को अपनी सीधी बात कहते हुए, वार्तालाप रूप में कथा आगे बढ़ती है. पढ़ते समय लगता है कि सामने रामचरितमानस की कथा घटित हो रही है. संवाद बहुत कसे हुए हैं. यथार्थ में सामने पात्र बोल रहे हों, ऐसा लगता है. शैली ना तो नयी वाली हिंदी है और ना ही पुरातन हिंदी. भाषा शैली और पात्रों के संवाद बार-बार आकर्षित करते हैं, बार-बार पढ़ने को विवश होते हैं. पढ़ने में एक अलौकिक आनंद मिलता है. मुझे इस पुस्तक को पढ़ने में कुछ ज्यादा समय लगा कारण कि कुछ संवाद बार-बार पढ़ता रहा. अनेक स्थानों के संवाद मन को आह्लादित भी करते हैं, दुःख के क्षण की चर्चा मन को दुखी भी करते हैं. पहले से कथा जानते हुए भी पाठक रो देता है. यही तो लेखक की सफलता है. मैं लेखक की लेखनी से बहुत प्रभावित रहता हूँ क्योंकि इस उम्र के रचनाकारों में इस प्रकार का लेखन बहुत कम देखने को मिलता है. इनकी भाषा शैली, इनका शिल्प बेहतरीन होता है और सबसे उल्लेखनीय कि इनके चयनित शब्दों का पंक्तियों में प्रयोग मंत्रमुग्ध करता है. लेखक के पास शब्दों का अपार भण्डार है. किसी धार्मिक ग्रंथ के बारे में लिखते समय शब्दों का चयन बहुत महत्वपूर्ण होता है. लोग इस सन्दर्भ की अन्य रचनाओं से तुलना करने लगते हैं. अनेक पात्रों का सजीव चित्रण करना कठिन कार्य होता है जब सभी पात्रों के व्यक्तित्व की छाप पहले से पाठक के मन में हो. लेखक कितना खरा उतरता है यह पाठकों की ग्राह्यता बतलाती है. प्रारंभ से ही लगता है कि पाठक किसी गहरे झील में उतर रहा है और अपने को श्री राम के व्यक्तित्व में डूबा अनुभव करता है. पुस्तक की खासियत यह है कि कोई बहुत धार्मिक भाव या अगरबत्ती जलाकर पढ़ने वाली बात नहीं है, इसे पढ़कर किसी भी धर्म के मानने वाले लोग श्री राम और उनके जीवन में घटित बातों को दृश्य प्रति दृश्य समझ सकते हैं. सभी धर्मों के लोग इस पुस्तक को पढ़ सकते हैं. इस कथा के किसी भी पात्र का संवाद आसान या मुश्किल नहीं है. हम अनुमान करते हैं कि यह कहा होगा, पुस्तक बतलाती है कि ऐसे कहा होगा. पात्रों के व्यक्तित्व से मिलता संवाद है. यह मनोहारी पक्ष है. प्रत्येक संवाद की समाप्ति पर ‘वाह’ कहने की इच्छा होती है.
श्रीराम का जीवन दर्शन प्रत्येक युग और प्रत्येक के निजी जीवन की बारीकियों से जुड़ा हुआ है, भिन्न नहीं है. सिर्फ उसे देखने, समझने और आम जीवन में उपयुक्त निर्णय लेते समय ध्यान रखने की आवश्यकता है. उन्होंने कठिन और सामान्य जीवन जीकर समाज में जो सन्देश दिया है वही सन्देश उन्हें हमेशा प्रासंगिक रखेगा. उनका जीवन दर्शन कभी पुराना और बूढ़ा नहीं हो सकता, समय के प्रवाह में कभी जड़ता को प्राप्त नहीं कर सकता. माता सीता, श्री लक्ष्मण, श्री भरत, श्री हनुमान और अनेक पात्रों के धर्म, कर्तव्य, त्याग, तप, पौरुष, करुणा, सहिष्णुता समाज में शान्ति का सन्देश देते हैं, यह जीर्ण कदापि नहीं हो सकता. यही कारण है कि कभी भी प्रभु श्री राम के जीवन से सम्बंधित कोई चर्चा होगी या कोई पुस्तक आयेगी तो सब ज्ञात होते हुए भी वह नयी लगेगी. पाठक पढ़ें, समझें, कर्तव्य, त्याग और समर्पण की भावना अपने में विकसित करें.
मैं अपनी बात यहीं समाप्त नहीं करूँगा बल्कि पुस्तक की कुछ पंक्तियों का उल्लेख करूँगा जिससे मैं बहुत प्रभावित हुआ. अनेक हैं लेकिन यहाँ कुछ की चर्चा कर रहा हूँ.
रानी कैकेयी कहती हैं–
“किसी का दुःख किसी और का सुख भी हो सकता है. पेड़ से हरसिंगार का फूल झरता है. वह पेड़ का दुःख है. लोग उसे चुन लेते हैं, वह उनका सुख है.”
श्री राम राजा दशरथ से कहते हैं–
“यह असंभव है पिताश्री. समुद्र स्वयं अपना जल पी सकता है. पर्वत अपने स्थान से हिल सकते हैं. नदियाँ अपनी धारा समेट कर पथिकों को रास्ता दे सकती हैं. किसी मृग में सिंह सी हिंस्र प्रवृति आ सकती है. कोई व्याघ्र गौ समान करुणा से भर सकता है किन्तु मैं अपना निर्णय नहीं बदल सकता. अब तो आपकी और महारानी माता कैकेयी की आज्ञा के पालन के लिए मुझे वन प्रवास करना ही होगा. आज्ञा दें, आशीष देकर मुझे संतोष प्रदान करें पिताश्री.”
अंगद रावण से–
“अब कोई अनुनय आग्रह निवेदन या शांति प्रस्ताव नहीं आयेगा. अब तो दोनों पक्षों की प्रत्यंचाएँ खिचेंगी. गदा से गदा टकरायेंगी. परिघ प्राण हरेंगे. अग्निबाणों से यह धरती धू-धूकर जल उठेगी. अपनी ही आँखों से अपने ऐश्वर्य को स्वाहा होते हुए देखना राजन. मृत्यु का भयंकर हास सुनने के लिए अपने हृदय को वज्र का बना लीजिये महाराज. अब तो श्री राम के धनुष से कालाग्नि बरसेगी. युद्ध के लिए तैयार हो जाइये लंकेश.”
मेरा मानना है कि प्रभु श्री राम के आशीष से श्री देवांशु ने इस पुस्तक “कोदंड रामकथा” की रचना की है. पढ़ें, पढ़ाएँ और अपने पुस्तकालय में भावी पीढ़ियों हेतु संभाल कर रखें.
अंत में इनके इस कठिन परिश्रम, उत्कृष्ट भाषा शैली और उपयुक्त शब्दों के चयन के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूँ और भविष्य की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ.
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