“कब आयेगी नई सुबह?” लघु कहानी संग्रह हेतु श्री प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी को बहुत बधाई, शुभकामनाएँ. इस पुस्तक का प्रकाशन स्टोरी मिरर इन्फोटेक प्राइवेट लिमिटेड, मुंबई ने आकर्षक रंगीन आवरण में मूल्य ₹ 150 रखकर किया है. 137 पेजों की इस पुस्तक में 31 लघु कहानियाँ हैं. इनकी कहानियों में एक प्रश्न उठाया गया है और उस प्रश्न का समाधान भी उस कहानी में अंतर्निहित है इसलिए इनकी कहानियाँ ज्यादा पसंद आयेंगीं. आजकल छोटी कहानी के पाठक बढ़े हैं. इनकी भाषा जन साधारण की भाषा है. शिल्प की दृष्टि से भी पुस्तक ठीक-ठाक है. सभी कहानियाँ एक सांचे में नहीं आयेंगी. अलग-अलग विषय वस्तुओं, संस्कृत के श्लोक, कुछ शेरो शायरियों और राह दिखाने वाली पंक्तियाँ पाठक को एक नयी दिशा दिखाने में सफल होती हैं. अब लघु कहानी पर आऊँ.
‘सबके दाता एक हैं’ लघु कहानी में प्रोफेसर साहब ट्रेन में सफ़र कर रहे हैं. वे जब अपना टिकट खोजने लगे तो पता चला कि उनका बटुआ किसी चोर ने उड़ा लिया है. अब वे परेशान हो गये. यात्रियों ने उनकी टिकट कटाने में मदद की और उनमें से ही एक युवक ने उन्हें अपने पिता समान मानकर उन्हें ₹ 2000 दिये और उसे प्रोफ़ेसर साहब ने वापस करने की शर्त पर लिया. रचनाकार एक दैनिक जीवन की समस्या और उसका आसान सा समाधान बताने में सफल होते हैं.
दूसरी कहानी ‘सिस्टम.. ओह सिस्टम !’ में एक लड़का जो गाड़ी चलाना जानता है लेकिन उसके पास ड्राइविंग लाइसेंस नहीं है तो वह अपने पड़ोसी के कार्यालय जाकर उनसे लाइसेंस बनाने का तरीका पूछता है. पड़ोसी उसे एक दलाल के साथ कर देते हैं. दलाल से लम्बी प्रक्रिया और भ्रष्टाचार सुनकर वह निराश होकर वापस लौट आता है. एक दिन देर रात उस पड़ोसी की तबीयत बिगड़ जाती है और अचानक से इसी युवक को गाड़ी चला कर उन्हें अस्पताल पहुँचाना पड़ता है तब उन्हें इस बात का अहसास होता है कि उनकी जान इस लड़के की वजह से बची. इस लड़के ने बिना ड्राइविंग लाइसेंस के उन्हें घर से अस्पताल तक पहुँचाया है. अगले दिन वह पड़ोसी इस लड़के का ड्राइविंग लाइसेंस बनवाकर लड़के को पहुँचा देते हैं. पड़ोसी का अपराधबोध महसूस करना ही लेखक की सफलता है.
‘कब आयेगी नई सुबह?’ लघु कहानी जो पुस्तक का नाम भी है, में गांव की राजनीति, अवैध हथियारों की उपलब्धता, मारपीट और बिना सोचे समझे किसी की हत्या कर देने जैसी बातों का चित्रण है. अपराधग्रस्त गाँव की दशा की व्याख्या है. युवा नशे की लत में किसी की हत्या करने तक को साधारण सी बात समझते हैं. रचना सोचने को विवश करती है कि इस गाँव में नई सुबह कब आएगी?
इनकी कहानियों में बहुत लाग लपेट नहीं है, बहुत काल्पनिक बातें नहीं हैं. वास्तविक जीवन में, आम जीवन जीने में जो कठिनाइयाँ सामने आती हैं और उसका कैसे बेहतर समाधान हो सकता है, इसकी चर्चाएँ हैं. तभी तो इनकी रचनाएँ सोशल मिडिया पर चर्चित रहती हैं.
पुस्तक में सीख मिलने वाली अनेक बातें हैं. अनेक लघु कहानियाँ बहुत अच्छी बन पड़ी हैं, जैसे ‘कुंडली नहीं दिल मिलाइए’, ‘घरौंदा, आँसूओं का’, ‘नीम ना मीठी होय’, ‘सब कुछ पैसा नहीं’, ‘यहाँ कौन है तेरा’, ‘अनाम रिश्ता’, ‘गुल मुहम्मद’ और ‘नियति तुम्हारी’.
कुल मिलाकर अलग-अलग प्रश्नों को उठाती ये लघु कहानियाँ एक बार सोचने को विवश करती हैं. पुस्तक अच्छी है. श्री प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठीजी को बहुत बधाई और भविष्य की शुभकामनाएँ.
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