‘कथ्य और शिल्प’ दोनों में बेजोड़ “राजनटनी”
सर्वप्रथम “राजनटनी” उपन्यास हेतु लेखिका श्रीमती गीताश्री को बहुत-बहुत बधाई, शुभकामनाएँ. उपयुक्त सुन्दर आवरण से सुसज्जित 160 पेजों की इस पुस्तक का प्रकाशन राजपाल एंड सन्ज, दिल्ली ने मूल्य ₹ 225 रखकर किया है. यह कथा वरिष्ठ साहित्यकार श्रीमती उषा किरण खान ने लेखिका को दी थी इसलिए लेखिका ने यह पुस्तक श्रीमती खान को समर्पित किया है.
किसी ऐतिहासिक घटनाओं या तथ्यों पर लिखते समय लेखक के ऊपर एक स्वाभाविक दबाव रहता है. रचनाकार उस कालखंड में उस घटना की महत्ता का विश्लेषण अन्यत्र उपलब्ध जानकारी जुटाकर या अन्य पुस्तकों की मदद से अपनी कल्पनाशीलता के सामर्थ्य भर उस घटना को, कथा को कागज पर अपनी दृष्टि से उतारते हैं. श्रीमती गीताश्री की ग्रामीण भाषा, कला, लोक-संगीत और मिथिलांचल के लोक गीतों पर बहुत अच्छी पकड़ है. इन सबों का सार्थक प्रयोग इन्होंने इस उपन्यास में किया है. पुस्तक में पुत्री के जन्म के बाद से युवती बनने तक, होने वाली शारीरिक परेशानी, शरीर में होने वाले बदलाव और प्रकृति प्रदत्त कष्ट की चर्चा भी है लेकिन सम्पूर्णता में यह उपन्यास विशुद्ध प्रेम कथा है. मिथिला राज्य की राजनर्तकी मीनाक्षी और बंग प्रदेश के राजकुमार बल्लाल सेन के बीच की प्रेम गाथा. मिथिलांचल के पान, मखान, वट-सावित्री पूजा, विवाह के समय होने वाले बीध-व्यवहार, सीता की करुण-गाथाओं की चर्चाएँ इस पुस्तक में चार चाँद लगाते हैं. सधी हिन्दी में लिखी इस पुस्तक को पाठक जब एक बार हाथ में लेता है तो समाप्त किये बिना रुकता नहीं है. लेखिका यहीं सफल हो जाती है. कथा वास्तविक और ऐतिहासिक है तो इसके मूल स्वरूप से कुछ भी छेड़छाड़ नहीं की जा सकती थी.
अब कहानी पर आऊँ.
बंजारों का काफ़िला मिथिलांचल से गुज़र रहा था. उसमें से एक बंजारा नट परिवार इस प्रकार समूह में चलकर भटकते रहने से थक चुका था. अब स्थायी निवास चाहता था. ये अब तक अपनी कलाबाजियों से, रस्सी पर चलकर या अन्य विधियों से, अपनी कला से लोगों को मंत्रमुग्ध कर अपना जीवन यापन करते थे. मिथिलांचल रास आ गया. वहाँ की आबोहवा, व्यवस्था, लोगों का व्यवहार देखकर अपने काफिले से अलग होकर इस परिवार ने वहीँ स्थायी रहने का विचार किया. मिथिला नरेश ने उन्हें कुछ भूमि पुष्प की खेती के लिए और रहने के लिए दी. उनके पास सुगन्धित पुष्पों के बीज थे. वे पुष्प की खेती करते थे और गाँव में मंदिर के सामने बेचते थे, साथ ही अपनी कला दिखाकर अपना घर चलाते थे. वे लोग अपनी मेहनत से अपना जीवन यापन करने लगे. इस परिवार की तीसरी पीढ़ी की बेटी मीना जो नट कार्य में दक्ष है, साथ ही नृत्य और गायन में भी बहुत सिद्धहस्त हो जाती है. मिथिला राज दरबार के ही एक व्यक्ति के द्वारा दरबार में इसका नृत्य करवाया जाता है और राजा प्रसन्न होकर इसे राजनर्तकी बना देते हैं. अब यह मीना से मीनाक्षी बन जाती है. इस नर्तकी की चर्चा अन्य प्रदेशों तक फैल जाती है. दूर-दूर के लोग इसकी सुंदरता और इसके गायन के प्रशंसक हो जाते हैं. बंग राज्य के राजकुमार बल्लाल सेन के मन में इस राजनर्तकी मीनाक्षी की चर्चा सुनकर इसके प्रति आसक्ति हो जाती है और मीनाक्षी भी जब बल्लाल के यश की गाथा अपनी सहेलियों से सुनती है तो मन ही मन बल्लाल के प्रति आकृष्ट हो जाती है. बिन देखे भी प्रेम हो सकता है, इसका अनुपम उदाहरण है. कहते हैं कि सपने देखने का हक़ सबों को है. एक मामूली राजनर्तकी एक राजकुमार के प्रेम में पड़ जाती है, यह प्रेम की शक्ति, प्रगाढ़ता और प्रेम में समर्पण है. राजकुमार का इस राजनटनी को पाने की चाहत उसके बल, सामर्थ्य, पौरुष, कीर्ति और यश के बीच एक भावुक हृदय होने को परिभाषित करता है. उस समय शिक्षा में मिथिलांचल की पोथियाँ और पाँडुलिपियाँ सर्वश्रेष्ठ थीं. बल्लाल सेन मिथिला से अपनी पूर्व की हार का बदला, मिथिलांचल की पोथियों और पाँडुलिपियों की लूट और राजनर्तकी मीनाक्षी को पाने हेतु मिथिला पर आक्रमण करता है. हालाँकि वह ज्यादा खून खराबा नहीं चाहता. न्यूनतम रक्तपात और नुकसान के उपरान्त मिथिला की हार होती है. बल्लाल सेन मिथिला के पराजित राजा के पास अपनी कुछ शर्तें रखते हैं जिसमें एक शर्त मीनाक्षी की माँग भी है. मीनाक्षी, एक साधारण नटी के मन में राजकुमार बल्लाल सेन के प्रति पहले से ही प्रेम है, मिलन की आस है लेकिन जब देश की बात आती है तो फिर मीनाक्षी का प्रेम महत्वपूर्ण नहीं रह जाता है. उसके लिए मिथिलांचल का गौरव, मिथिला का मान-सम्मान सर्वोपरि हो जाता है. उसके दादा ने मिथिला में अपना आवास बनाते समय कहा था कि हमारी आगे आने वाली पीढ़ियाँ मिथिलांचल के लिए अपनी जान दे देंगी लेकिन मिथिलांचल की प्रतिष्ठा पर कोई आँच नहीं आने देंगी, उसे इस बात का ख्याल है. मीनाक्षी बल्लाल सेन के समक्ष जाकर मिथिला के पराजित राजा की मुक्ति, मान-सम्मान की रक्षा का शर्त रखती है. बल्लाल मीनाक्षी को पाने के लिए इन शर्तों को मान लेता है लेकिन मिथिलांचल की सभी पाँडुलिपियों को लूटकर ले जाना चाहता है. यहाँ एक तरफ राज्य की अस्मिता, अस्तित्व, धरोहर और मान का प्रश्न है तो दूसरी तरफ एक साधारण कनीज, राजनर्तकी नारी के कोमल ह्रदय, प्रेम में पाने या खोने की परीक्षा है. वह राष्ट्र को सर्वोपरि मानती है. बल्लाल मीनाक्षी के शरीर को पा लेता है लेकिन मीनाक्षी, एक राजनटनी अपने प्राणों की आहुति देकर मिथिलांचल की प्रतिष्ठा और सभी पाँडुलिपियों को बचा लेती है और अपने कृत्य से अमर हो जाती है.
ऐतिहासिक कथाओं में इतिहास के साथ छेड़छाड़ का आरोप आसानी से लग सकता है इसलिए रचनाकारों को तलवार की धार पर चलना होता है. इस उपन्यास में लेखिका ने सभी चरित्रों के साथ न्याय किया है. संवाद भी सीधे और सटीक हैं. पाठक पढ़ते समय मंत्रमुग्ध हो जाता है. प्रेम प्रसंग का वर्णन कालजयी है. स्त्री का कोमल हृदय अलग-अलग स्थितियों, भावों में सख्त निर्णय भी ले सकता है, इसे स्थापित करने में लेखिका पूर्णतः सफल हैं. यह पुस्तक लंबे समय तक लोगों के दिलों-दिमागों में बसी रहेगी. आने वाली पीढ़ियाँ श्रीमती गीताश्री को इस पुस्तक हेतु याद करेंगी.
पुस्तक की अनेक पंक्तियाँ बहुत प्रभावित करती हैं. कुछ पंक्तियाँ देखें:-
‘प्रेम साधिकार आता है.’
‘प्रेम में चोट खाया शक्तिवान पुरुष भयानक हो उठता है.’
‘किसी राज्य को, सभ्यता को नष्ट करना हो तो उसकी पोथियाँ नष्ट कर दो.’
‘ताकत, प्रेम छोड़कर कुछ भी हासिल कर सकती है.’
‘पारिजात के वही फूल पूजा के लायक होते हैं, जो स्वयं टूटकर भूमि पर गिर पड़ते हैं.’
पूरी पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ में रोचकता है. कुल मिलाकर एक बेहतरीन कथ्य और शिल्प की अच्छी पुस्तक है. अपने पुस्तकालय में रखने लायक उपन्यास है. मैं श्रीमती गीताश्री को पुनः भविष्य की शुभकामनाएँ देता हूँ.
निश्चित रूप से ‘कथ्य और शिल्प’ दोनों में बेजोड़ पुस्तक है “राजनटनी”.
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बहुत अच्छी समीक्षा। आपको भी बधाई। मिथिला और मिथिला के इस चरित्र पर लिखे उपन्यास पर अपनी बात बहुत बढ़िया और संतुलित तरीके से रखने के लिए।
सुंदर समीक्षा