सर्वप्रथम “यात्रीगण कृपया ध्यान दें” कथा संग्रह हेतु श्री राम नगीना मौर्यजी को बहुत-बहुत बधाई, शुभकामनाएँ. 133 पेजों की दस कहानियों वाली इस पुस्तक का प्रकाशन बहुत ही उपयुक्त आकर्षक रंगीन आवरण में रश्मि प्रकाशन ने मूल्य ₹180 रखकर किया है. मौर्यजी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, इन्होंने साहित्य जगत में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया है. ये बहुत सोच विचार कर कोई विषय नहीं चुनते. बहुत चिंतन, बहुत रेफरेंस की सहायता से कोई कहानी नहीं लिखते बल्कि सामान्य परिवार की, आम जीवन जीने वाली बातों या अवसरों से कहानी निकाल लेते हैं. इनकी कहानियों में बहुत कठिन हिंदी के शब्द भी नहीं होते, बहुत लाग लपेट नहीं होता, संवाद बहुत सीधे होते हैं इसलिए वो एकदम आसानी से सबों को समझ में आती हैं. इनकी कहानियों को पढ़ने से पाठक को लगता है कि अरे ऐसा तो मेरे साथ भी हुआ है. यह तो मैंने भी देखा है. यह तो मेरे सामने की घटना है. पाठक इनकी कहानियों में सीधे-सीधे अपने को देखता है इसलिए इनकी कहानियाँ ज्यादा ग्राह्य होती हैं. इनकी रचनाएँ श्री सतीश सरदानाजी की लिखी पुस्तक ‘रोजमर्रा की कहानियाँ’ की याद दिलाती है.
अब कहानियों पर आऊँ. “यात्रीगण कृपया ध्यान दें” कहानी में एक नव विवाहित जोड़ा एक स्थान से दूसरे स्थान तक रेल की एक बोगी में यात्रा करते हैं. दुल्हन का चेहरा ढका रहता है. पूरी यात्रा में पति के व्यवहार से पता चलता है कि उसे पत्नी से बहुत प्यार है और गंतव्य पर उतरने पर चेहरा लोगों को दिखता है तो पता चलता है कि दुल्हन एसिड अटैक पीड़िता है. ऐसी स्थिति में भी एक चाहने वाला पति है, होना चाहिए, यही इस कहानी का मैसेज है. पढ़ते समय पाठक कुछ अन्य सोच रहा होता है लेकिन कहानी एक अलग मोड़ पर मुड़ जाती है. कहानी शुरू से अंत तक अपनी रोचकता बनाये रखती है.
“रोटेशन सिस्टम से” कहानी बहुत ही अद्भुत और नयी सोच की कहानी है. इसमें घर के फर्नीचर आपस में बातें करते हैं. कठिन प्रश्नों पर परिचर्चा करते ऐसे-ऐसे प्रसंगों को उठाते हैं कि आप मंत्रमुग्ध हो जाएँ.
किसी कार्यालय की कार्यप्रणाली और वहाँ के वातावरण पर आधारित कहानी “उन्होंने नाम नरेश समथिंग बताया था” है. इसमें यह बताया गया है कि हम आप आज के इस भाग-दौड़ के जीवन में एक दूसरे को गंभीरता से नहीं लेते, संवाद की कमी हो गयी है. एक तरह से कार्यालयीन परिवेश पर तीखा प्रहार भी है. कहानी अपनी रोचकता बनाये रखती है.
“ठलुआ चिंतन” कहानी में एक सैलून में बाल कटवाने के दौरान कितने प्रकार की बातें होती है और लोग निर्णायक बनकर अपना निर्णय देते हैं. पढ़ते समय कभी चेहरे पर मुस्कान आ जाएगी तो कभी गंभीर हो जायेंगे. सफल कहानी है.
“फुटपाथ पर जिंदगी” कहानी शीर्षक के अनुरूप फुटपाथ पर ठेला, दुकान लगाने वालों की दिनचर्या, उनकी जीवनशैली, उनके संघर्षों की कहानी है. वास्तविकता का चित्रण है.
“बेचारा कीड़ा”, “से चलकर, के रास्ते, को जाते हुए” और “फिर जहाज पर आयो” कहानियाँ भी ठीकठाक हैं, मन लगा रहता है.
“तुमने कहा जो था” कहानी साझा संग्रह पुस्तक #इन्नर में भी छपी थी और इस कहानी की बहुत चर्चा हुई थी. अनेक लोगों ने इसे सराहा था. इस कहानी में एक बड़ा या पहला दामाद अपने ससुराल में उपेक्षित महसूस करता है. अपने सामने नये दामाद का अत्यधिक स्वागत-सत्कार देखकर कुपित होता है लेकिन पति पत्नी के बीच का रिश्ता इतना मजबूत है कि उसे अपनी पत्नी की प्रतिष्ठा का ख्याल आता है. नाराज पुराना दामाद अपने ससुराल में होने वाले एक विवाह आयोजन में सम्मिलित होने अचानक आ जाता है. बहुत अच्छी कहानी है और इसका भाव लंबे अंतराल तक मन में बना रहता है.
अंतिम कहानी “शेष भाग आगामी अंक में” एक बुजुर्ग लेखक और एक युवती के बीच की बातचीत है. मुझे यह कहानी साधारण सी लगी. बहुत प्रभावित नहीं हो पाया.
कुल मिलाकर कथ्य और शिल्प की दृष्टि से भी पुस्तक ठीक है. मैं श्री राम नगीना मौर्यजी को पुनः बधाई देता हूँ और भविष्य की शुभकामनाएँ देता हूँ.
***
अच्छी नपी तुली समीक्षा। आप दोनों को शुभ कामना।