सर्वप्रथम “गुनाह जो मैंने किये” कहानी संग्रह हेतु लेखक श्री पवन जैनजी को बहुत-बहुत बधाई, शुभकामनाएँ. इस पुस्तक का प्रकाशन सन्मति पब्लिशर, हापुड़ ने रंगीन आकर्षक कवर में मूल्य रुपये 125 रखकर किया है. 112 पेजों की इस पुस्तक में 8 कहानियाँ हैं. इस पुस्तक को पढ़ने से अनेक वर्षों पहले पढ़ी पुस्तक ‘लौलिता’ की याद आती है.
इसके रचनाकार ने पुस्तक की शुरुआत में ही कहा है कि सभी कहानियाँ प्रथम पुरुष में लिखी गयी है लेकिन इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि ये उनके व्यक्तिगत जीवन से जुड़ीं हैं.

पुस्तक के नाम ‘गुनाह जो मैंने किये’ से स्पष्ट है कि कहानियों के नायक को अपराधबोध का भाव है. कहानियाँ भी ऐसी हैं जिसमें नायक अलग-अलग महिलाओं या युवतियों के प्रति आकर्षित होता है या उन स्त्रियों का नायक के प्रति आकर्षण में पड़ने की बातें हैं. इन कहानियों में एक युवक का स्त्रियों के प्रति आकर्षित होकर पाने का प्रयास करना, सर्वथा अनुचित तक पहुँचने से पहले अपने को संभाल लेने की ही चर्चाएँ हैं. कथ्य की दृष्टि से पुस्तक में पुरुषों की सामान्य कामांध मनःस्थिति की चर्चा, स्त्रियों के प्रति शारीरिक आकर्षण की ही चर्चा है, कोई आत्मिक प्रेम की बात नहीं है. कभी नायक बहुत शरीफ़ लगने लगता है. रचनाकार बुजुर्ग, उम्र दराज हैं तो कहानियाँ भले ही उनके अनुभव जैसी, उनकी डायरी की तरह भी समझी जा सकती है लेकिन रचनाकार के व्यक्तित्व से उलट बिलकुल शरारती कहानियाँ हैं . कुछ लोगों को ‘फेंटेसी’ जैसी भी लग सकती है. एक कहानी में कोलकाता शहर की सुन्दरता का बढ़िया वर्णन है. कुल मिलाकर सभी कहानियाँ सामान्य घटित होने लायक हैं इसलिए सभी सत्य प्रतीत होती हैं. यौवन की दहलीज पर खड़े युवकों को ये कहानियाँ अच्छी लग सकती हैं. सभी कहानियों में एक बात का ख्याल है कि सीमाएँ पार नहीं की गयी हैं. कथ्य आपको अश्लील या ‘शीला की जवानी’ टाइप भले लगे, शिल्प में अश्लीलता या गाली नहीं है. लगता है कि कोई सपाट भाषा में अपनी आपबीती सुना रहा हो. नायक युवती, शादीशुदा महिला, नौकरानी, विधवा से मिलता है, एक दूसरे के प्रति आकर्षित होता है, आलिंगनबद्ध होता है और फिर अचानक अपराधबोध अनुभव कर दूर हो जाता है. हर बुरे पर अच्छाई की ही जीत होती है. नायक और उसका प्रेमी कहानी के अंत तक पाठक की नजरों में अच्छा बनने का प्रयास करता है. ऐसी स्थिति में किसी भी पाठक के आने पर उसको एक समाधान, एक रास्ता यहाँ मिल सकता है. जो इन अवस्थाओं से गुजरते हैं उन्हें सही और गलत का भान तो ये कहानियाँ करा ही देती हैं. शीर्षक वार कहानियों की चर्चा आवश्यक नहीं समझता, जो पढ़ेंगे वही समझ पायेंगे. पुस्तक का नाम एकदम सटीक है.
मैं रचनाकार को भविष्य की शुभकामनाएँ देता हूँ. इनका आने वाला उपन्यास सफल हो.

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बचपन से साहित्य पढ़ने का शौक. अनेक भाषाओं की पुस्तकें पढ़कर अपना विचार देना. तत्पश्चात पुस्तकों की समीक्षा करना. फिर लिखना प्रारम्भ. अब तक “अवली”, “इन्नर” “बारहबाना” और “प्रभाती” का सफल सम्पादन.