“दर्जन भर प्रश्न” में साहित्यकार श्री भगवंत अनमोल

व्यक्ति परिचय:

नामश्री भगवंत तिवारी.

जन्म तिथि:- 30 अगस्त, 1990.

शिक्षा– कम्प्यूटर साइंस से बीटेक.

प्राथमिक/ माध्यमिक- सरस्वती विद्या मंदिर, खागा से दसवीं तक की पढ़ाई.

महाराणा प्रताप इंजीनियरिंग कॉलेज, कानपुर से बीटेक.

पारिवारिक जानकारी:- पिताजी का दो वर्ष की आयु में स्वर्गवास. ताऊजी के पास रहकर शिक्षा-दीक्षा. माँ के साथ कानपुर में रहते हैं.

अभिरुचि:- कुकिंग

कार्यक्षेत्र:- एम एन सी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर की नौकरी छोड़कर कानपुर में स्पीच थेरेपी शुरू की.

विशेष अनुभव:– शुरुआती जीवन हकलाने की समस्या से गुजरा. ठीक होने के बाद उनकी मदद के लिए स्पीच थेरेपी शुरू की.

भविष्य की रूपरेखा:- इसका उत्तर मुस्कुराते हुए देते हैं किअब शादी करनी है.

लेखकीय कर्म:- 2012 से लेखन जारी. अब तक तीन उपन्यास और एक मोटिवेशनल पुस्तक प्रकाशित.

पुरस्कार:- उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा बालकृष्ण शर्मा नवीन पुरस्कार-2018. शिक्षा मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा इनोवेटिव लीडरशिप अवार्ड-2019’.

भावी जानकारी:- अगली पुस्तक पर कार्य कर रहे हैं. पुस्तक का नाम है प्रमेय.

सम्पर्क:- [email protected]

[email protected]

www.bhagwantanmol.com

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दर्जन भर प्रश्न

श्री भगवंत अनमोल से विभूति बी. झा के “दर्जन भर प्रश्न और श्री अनमोल के उत्तर-

विभूति बी झा:- नमस्कार. सर्वप्रथम आपको आपकी पुस्तक ‘जिन्दगी 50-50’ और ‘बाली उमर’  लिए बधाई, शुभकामनायें. ‘जिन्दगी 50-50’ को कर्नाटक विश्वविद्यालय, धारवाड़ के एम ए हिन्दी के पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है. शुभकामनाएँ.

  1. पहला प्रश्न:-आपकी दोनों पुस्तकें बहुत चर्चित रहीं. ‘जिन्दगी 50-50’ जहाँ थर्ड जेंडर पर आधारित है वहीँ ‘बाली उमर’ ग्रामीण परिवेश के बच्चों का मनोभाव है. दोनों पुस्तकों में कोई समानता नहीं बल्कि दो अलग-अलग मनःस्थिति की बातें हैं. लगता नहीं कि दोनों एक रचनाकार की पुस्तकें हों. इतनी कम उम्र में आप पाठकों के चहेते बन गये हैं. दोनों पुस्तकों के बारे में आप क्या कहेंगे? पाठकों की इतनी अच्छी प्रतिक्रियाओं पर आपकी टिप्पणी?

श्री अनमोल के उत्तर:–  नमस्कार विभूतिजी, सर्वप्रथम बेहतरीन कार्य के लिए आपको बधाई एवं शुभकामनाएं. जहाँ तक बात ज़िन्दगी 50-50 और बाली उमर के विषय और शैली भिन्न होने की है तो मेरा मानना है कि एक लेखक या कलाकार वही अच्छा होता है जो पिछली कृति के मोह से निकलकर कुछ नया सृजन कर सके. मैं हमेशा नये विषयों पर लिखना चाहता हूँ और हर किताब अलग शैली में लिखना चाहता हूँ. बेशक कई बार मेरे प्रयास आपकी नज़रों में सफल दिखतें होंगे और कई बार असफल, लेकिन मैं एक लेखक के तौर पर पुस्तक लेखन को त्वरित सफलता और असफलता से परे देखता हूँ. लेखक का काम ही होता है कि वह नये विषय उठाकर मुख्य धारा में लाये. इसी क्रम में ज़िन्दगी 50-50, बाली उमर और प्रमेय लिखी है. तीनों की अलग भाषा, अलग शैली और अलग विषय वस्तु है. रही बात पाठकों के बीच चर्चित होने की तो मैं इस मामले में खुद को सौभाग्यशाली मानता हूँ कि तीस वर्ष से कम उम्र में मुझे हिंदी साहित्य ने वह दिया जो मुझसे अधिक योग्य लेखकों को कई बार पूरी ज़िन्दगी में नहीं मिल पाता. मैं इस मामले में सिर्फ और सिर्फ अपने पाठकों को धन्यवाद देना चाहता हूँ. पाठकों की सकारात्मक प्रतिक्रियाका मुझ पर क्या असर पड़ता है? सच कहूँ तो मुझे पाठकों की टिप्पणियों से उत्साह मिलता है लेकिन उसे मैं सर पर हावी नहीं होने देता. फेसबुक पर डालता हूँ और अगले दिन हमेशा-हमेशा के लिए भूल जाता हूँ.

  1. प्रश्न:-आपके साहित्य के पसंदीदा रचनाकार कौन-कौन हैं? आपका नाम किन साहित्यकारों के साथ लिया जाये? आपकी क्या इच्छा है? आप विज्ञान के विद्यार्थी रहे फिर साहित्यकार कैसे बने?

उत्तर– मेरे पसंदीदा रचनाकार मनोहर श्याम जोशी हैं. भगवती चरण वर्मा की ‘चित्रलेखा’, विष्णु सखाराम खांडेकर की ‘ययाति’, उदय प्रकाश की ‘पीली छतरी वाली लड़की’ और धर्मवीर भारती की ‘गुनाहों का देवता’ पसंदीदा किताबों में हैं. समकालीन वरिष्ठ लेखकों में प्रभात रंजन की ‘कोठागोई’, गौतम राजऋषि की ‘हरी मुस्कुराहटों वाला कोलाज़’ और गीता श्री की ‘लेडीज सर्किल’ बहुत पसंद है. मेरी कोई ऐसी इच्छा नहीं है कि मेरा नाम किसी बड़े साहित्यकार के साथ लिया जाए. मेरा महान बनने का कोई सपना नहीं है. मैं बस नये विषय उठाता हूँ और उनपर लिखता हूँ. अपने पाठकों के लिए प्रयासरत हूँ. ईश्वर इतनी शक्ति दे कि जीवन में कोई बनावटीपन न रहे, इससे अधिक मुझे कुछ नहीं चाहिए. देखिये, विज्ञान मेरी पत्नी थी तो लेखन प्रेमिका. विज्ञान से शादी करनी पड़ी पर लेखन से मोहब्बत कम नहीं हुई. अंततः मोहब्बत जीत गयी और समाज के बनाए खाँचे टूट गए. मैं इंजीनियर से साहित्यकार बन गया.

  1. प्रश्न:- पुरानी कालजयी रचनाएँ या बहु चर्चित उपन्यास और आज की ‘नयी वाली हिन्दी’ में लिखी पुस्तकों में आप क्या अंतर पाते हैं? आपको लगता है कि आज की ये पुस्तकें बेस्ट सेलर बन पुरानी पुस्तकों को पीछे छोड़ पा रहीं हैं?

उत्तर– देखिए एक बार कानपुर के बड़े बुक स्टाल ‘करंट बुक हाउस’ के मालिक अनिल खेतानजी से बात हो रही थी. मैंने उनसे प्रश्न किया कि आजकल हिंदी की कौन सी किताबें बिक रहीं हैं?“ उनका जवाब था “ले देकर कुल 80-90 किताबें हैं, वही बिकती हैं.”

“क्या पिछले सौ वर्षों के इतिहास में सिर्फ 80-90 किताबें ही लिखी गयी होंगी? हज़ारों, लाखों किताबें लिखी गयी हैं पर उनमें से समय की कसौटी पर 80-90 किताबें ही खरी उतर पाईं. अभी आज के लेखन को वक्त दीजिए. इनसे छटकर जो किताबें बचेंगी वही आज के वक्त को दर्शाएँगी. विश्वास कीजिये वे किताबें नहीं बचेंगी जिन्हें आज महान बताया जा रहा है. समय की कसौटी पर खरा उतरना कुछ टेढ़ी खीर है जो किसी एक व्यक्ति के समझ से परे है.

  1. प्रश्न:-नये रचनाकारों, ग्रामीण, छोटे स्थानों के रचनाकारों को जो अच्छा लिखते परन्तु संसाधन नहीं होने के कारण प्रकाशक गंभीरता से नहीं लेते, उनको आप क्या सलाह देंगे?

उत्तर:- विभूतिजी ! सच कहूँ तो आजकल मौके ज्यादा मिल रहे हैं. प्रकाशक भी नये लेखकों को ज्यादा तवज्जो दे रहेहैं. पहले पत्राचार के माध्यम से बातें होती थी महीनों बातें चलतीं थीं, पर कोई निष्कर्ष नहीं निकलता था. अब एक मेल के माध्यम से पांडुलिपि भेजी जाती है और अगले दिन जवाब मिल जाता है. सब कुछ आसान हो गया है. प्रकाशक गंभीरता से लेते हैं भाई. बस कई दफा होता यह है कि प्रकाशक अच्छे लेखकों को पहचानने में चूक जाते हैं. यहीं से सवाल खड़े होते हैं, लेकिन वे भी तो इंसान ही हैं. आपको बताऊँ, कई बार यही प्रकाशक कूड़े के ढेर से भी काम की चीजें ढूँढ लाते हैं. मैंने भी प्रकाशक को सिर्फ मेल किया था. प्रकाशक को किताब अच्छी लगी और उन्होंने छाप दी. नये लेखकों को हर तरह के उदाहरण  मिलेंगे. मैं उन्हें यही सुझाव दूँगा कि उन्हें वे उदाहरण देखने चाहिए जो जीवन में आगे बढ़ने की दिशा तय करते हैं. नकारात्मकता हमें ढ़लान की तरफ ले जाती है, सकारात्मकता हमें ऊँचाई प्रदान करती है. इसलिए रोल मॉडल चुनने में सावधानी बरतनी चाहिए.

  1. प्रश्न:- अनेक पुस्तकें बाज़ार में आने से पहले बेस्ट सेलर होतीं हैं, बाद में पाठक उसे नकार देते हैं. बेस्ट सेलर पुस्तक और उत्तम कृति दोनों को आप क्या मानते हैं? पुस्तकें बाज़ार के अनुसार लिखी जा रही?

उत्तर– बेस्ट सेलर तो पाठक बनाता है. हालाँकि यह मान सकते हैं कि प्रकाशक बड़ी जोर-शोर से किसी किताब का प्रचार शुरू करता है और वह किताब फुस्स हो जाती है. देखिए उत्तम कृति क्वालिटी पर निर्भर करती है और बेस्ट सेलर कृति क्वांटिटी पर. दोनों अलग-अलग बातें हैं. जिसका एक दूसरे से कोई लेना देना नहीं है. इसबात से सहमत हूँ कि पुस्तकें बाज़ार के अनुसार लिखी जा रहीं है. इसमें मुझे कोई बुराई भी नज़र नहीं आती. जिस तरह एक अच्छे समाज की स्थापना तभी हो सकती है जब उसमें हर तरह के कार्य करने वाले लोग रहेंगे. ठीक उसी तरह किसी भी भाषा का साहित्य तभी बहुत आगे बढ़ सकता है जब उसमें हर तरह का लेखन हो रहा होगा.

  1. प्रश्न:- आपकी दृष्टि में लेखन में अश्लील गालियों का हू-ब-हू प्रयोग और यौन सम्बन्धों की चर्चा की क्या सीमा होनी चाहिए?साहित्यकार अभी हिंसा और यौन संबंधों वाली रचनाओं की ओर उमड़ पड़े हैं? क्या इसे आप सफलता की सीढ़ी मानते हैं?

उत्तर:–  अश्लील गालियाँ लिखना कोई बुरी बात नहीं है. अब कोई रसूख़दार व्यक्ति किसी गरीब व्यक्ति को क़र्ज़ न लौटा पाने के कारण पीट रहा होगा तो उसके मुँहसे रामवाणी थोड़ी निकल रही होगी, गालियाँ ही निकल रही होंगी. इसमें मुझे कोई बुराई नज़र नहीं आती कि उस रसूखदार व्यक्ति के मुख से निकलती गालियाँ न लिखी जाएँ. लेकिन हर चीज़ की सीमा होती है. यौन संबंध हों या गालियाँ, इनका प्रयोग फिल्मों में आइटम सॉन्ग परोसे जाने की तरह न हो. बाकी जो साहित्यकार जैसा लिख रहे  हैं, पाठक उसका उत्तर दे रहे हैं.

  1. प्रश्न:-जीवन में किसी एक काम की असफलता से निराश होकर लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं. आप सफलता-असफलता को किस प्रकार देखते हैं? ऐसे हिम्मत हारने वालों के लिए आप क्या कहेंगे?

उत्तर:– देखिए, अगर ऊपरी तौर पर पूछेंगे तो यही कहा जाएगा कि आत्महत्या करना बहुत बुरा है, निहायत ही बुरी चीज़ है, इससे जघन्य अपराध कोई नहीं है. मैंने भी पिछले कुछ समय डिप्प्रेसन में गुज़ारे हैं. जब आपके पास कुछ खोने को नहीं होता तब आप बड़ी से बड़ी चट्टान से लड़कर ज़िन्दगी में आगे बढ़ जाते हैं. पर दिक्कत तब आती है जब आप एक ऊँचाई पर चढ़ जाते हैं और फिर सब कुछ खो जाने का डर हमें आत्महत्या की ओर प्रेरित करता है. उस वक्त की मानसिकता को हमें समझने की जरूरत है और ऐसे लोगों से संपर्क में रहने की जरूरत है. ऐसी पीड़ा से गुजर रहे लोगों को भी अपने आसपास के लोगों से बात करनी चाहिए. अकेले में नहीं रहना चाहिए.

  1. प्रश्न:-आजकल हिन्दी भाषी भी हिन्दी में बात करना पसंद नहीं करते. हिन्दी पुस्तक खरीदना नहीं चाहते. क्या आप मानते हैं कि हिन्दी में पाठक कम हुए हैं और हिन्दी भाषा का अस्तित्व संकट में है?

उत्तर: – हिंदी में पाठकों की संख्या की बढ़ोत्तरी या कमी पर बहुत बात होती है. पाठकों के घनत्व में तो कमी आई है, जबकि सुदूर बैठे पाठक तक पहुँच बन गयी है. इसे कुछ ऐसे समझने की जरूरत है. आज से तीस वर्ष पूर्व अगर कानपुर जैसे शहर में हज़ार पाठक थे तो आज पाँच सौ पाठक ही बचे हैं. पर सोशल साइट्स और अमेज़न, फ्लिप्कार्ट आने की वजह से कानपुर के आसपास के छोटे-छोटे कस्बों और शहरों में जो दस-दस पाठक बैठे हैं, उन्हें किताब पहुँचने लगी है, जो पहले नहीं पहुँच पाती थी. कुल मिलाकर पिछले बीस वर्षो से तुलना की जाए तो पाठकों की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन उनका घनत्व कम हुआ है.

  1. प्रश्न:-आप मानते हैं कि साहित्य में भी गुटबाजी, किसी को नीचा या ऊपर कराने का, जुगाड़ का खेल होता है? दिया जाने वाला पुरस्कार भी इन बातों से प्रभावित होता है?

उत्तर:- साहित्य भी समाज का हिस्सा है. यहाँ पर हर वह गलत और सही काम होता है जो समाज में होता है. गुटबाजी, एक दूसरे को नीचा दिखाने का काम, छींटाकसी सब होती है. यहाँ तक कि पुरस्कार किसे देना है, यह भी इन सभी बातों से प्रभावित होता है. लेकिन एक युवा लेखक होने के नाते से मैं सब बातों को कतई तवज्जो नहीं देता. क्योंकि ये सब बातें जीवन में पीछे धकेलती हैं. अगर हमें आगे बढ़ना है तो सकारात्मकता की खोज करनी पड़ेगी. हम ख़राब से ख़राब वस्तु में अच्छाई ढूँढने लग जायेंगे तो हमें अपने मतलब भर की अच्छाई जरूर मिल  जाएगी.

  1. प्रश्न:-सोशल मिडिया का लेखन और लेखक पर क्या प्रभाव पड़ा है? ऑनलाइन और लाइव आना कहाँ तक हितकारी है? मोबाईल युग आने से हिन्दीपर इसका क्या प्रभाव पड़ा है?

उत्तर:- देखिए, जब से मोबाइल फ़ोन का एक खास नेटवर्क से गठबंधन हुआ है तब से मोबाइल क्रान्ति चल पड़ी है. हर कोई बोलना चाहता है, हर कोई अपनी बात कहना चाहता है. इसमें मुझे कोई बुराई समझ नहीं आती. लेकिन इस गठबंधन से फर्क यह पड़ा है कि लोग पढने के बजाय देखना और सुनना ज्यादा पसंद करने लगे हैं. किताब पढने के बजाय वह अधिक समय यूट्यूब पर विडियो देखने में बिता रहें है. यही एक लेखक के नाते मुझे कमी लगती है.

  1. प्रश्न:साहित्य जीवन यापन का साधन नहीं रह गया है. साहित्य में अपना भविष्य तलाश रहे नयी पीढ़ी के रचनाकारों को आप क्या सलाह देंगे?

उत्तर:-  विभूतिजी ऐसा नहीं है, साहित्य से जीवन यापन हो सकता है. बस लेखक को  अपनी असली औकात पता होनी चाहिए और निगाहें खुली रखनी चाहिए. आजकल धन सिर्फ किताबों की बिक्री से ही नहीं कमाया जाता बल्कि धन कमाने के लिए कई रास्ते हैं. किताबें ऑडियो बुक्स के फॉर्म में प्रकाशित होने पर अच्छा एडवांस मिल जाता है, ई बुक्स और किंडल के रूप में प्रकाशित होने पर भी रॉयल्टी मिलती है. किताब की दूसरी भाषा में अनुवाद का अधिकार हो या फिल्म के अधिकार की बात, अच्छा ख़ासा पैसा मिलता है. पुरस्कार मिल जाये तो सोने पे सुहागा जैसा. आजकल किताब प्रकाशित करने के लिए भी प्रकाशक लाखों रुपये अग्रिम दे देते हैं. कुल मिलाकर जीवन यापन हो सकता है पर ऐसे लेखक अभी कम ही हैं. उम्मीद करते हैं आने वाले वक्त में यह संख्या बढ़ेगी.

  1. प्रश्न:आप आज के हिन्दी रचनाकारों में पाँच ऐसे रचनाकारों के नाम बतायें जिनकी पुस्तक से आप प्रभावित हैं या आपको भविष्य में उनसे हिन्दी साहित्य में अपेक्षा है?

उत्तर:-  देखिये, हिंदी युवा लेखकों में सुशोभित सक्तावत से बड़ा लेखक कोई नहीं है. प्रवीण झा के पास विषय वस्तुओं की भरमार है, नवीन चौधरी ने भी ‘जनता स्टोर’ में बढिया काम किया है. अंकिता जैन और कुलदीप राघव से मुझे बहुत उम्मीदें हैं.

विभूति बी. झा:- बहुत बहुत धन्यवाद. आपको“प्रमेय” की अग्रिम शुभकामनाएँ.

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अनमोलजी की पुस्तकें:-

बचपन से साहित्य पढ़ने का शौक. अनेक भाषाओं की पुस्तकें पढ़कर अपना विचार देना. तत्पश्चात पुस्तकों की समीक्षा करना. फिर लिखना प्रारम्भ. अब तक “अवली”, “इन्नर” “बारहबाना” और “प्रभाती” का सफल सम्पादन.