“लिखी हुई इबारत” पुस्तक पढ़कर समाप्त किया है। श्रीमती ज्योत्स्ना ‘कपिल’ जी को बहुत बधाई और शुभकामनाएँ। अयन प्रकाशन ने आकर्षक कवर में 127 पेज की पुस्तक मूल्य 250 रुपये रखकर हार्ड कवर बाइंडिंग (पुस्तकालय संस्करण) में प्रकाशित किया है।
पत्र, पत्रिकाओं में जब भी कोई लघु कथा देखता हूँ तो झट से पढ़ लेता हूँ। छोटी रचना, कम समय और ज्वलंत गम्भीर बातें। मतलब कि लघु कथाओं को हमेशा मैंने होमियोपैथी दवा ही समझा। सस्ता और लाभ होने का विश्वास। इस पुस्तक में 55 लघुकथाएँ हैं। ज्यादातर कथाएँ इतनी तीक्ष्ण हैं कि इंजेक्शन की तरह सीधे नस में चढ़ जातीं हैं। सभी लघु कथाएँ अलग अलग एक प्रश्न पूछतीं हैं। अपने आसपास रोज घटित होने वाली बातें हैं। सामान्य जीवन जीने वाली बातें हैं। सत्य से सराबोर। कोई कल्पित कथा जैसी नहीं लगती है इस पुस्तक में। नयी वाली हिन्दी भी नहीं है। साहित्यिक पुस्तक की दृष्टिकोण से भी अच्छी पुस्तक है। मैं तो पुस्तकें पढ़ते ही रहता हूँ। अगर प्रत्येक पुस्तक को एक स्टेशन की दृष्टि से देखूँ तो Anwar Suhail @अनवर सुहैल साहेब की पुस्तक ‘गहरी जड़ें’ अगर गुवाहाटी स्टेशन मान लूँ तो मेरे पढ़ने के क्रम में छोटे छोटे स्टेशनों के बाद ये पुस्तक न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन अवश्य है।
इनकी 55 लघुकथाएँ एक आम के वृक्ष में दिख रहे 55 आम हैं। किसे कहूँ ज्यादा अच्छा और किसे कम आँकूँ।
‘रोबोट’ कथा में एक माँ अपने नन्हे बेटे के खिलौने तोड़ देने की आदत की वजह से खिलौना रोबोट बचाकर रखती है। एक दिन अचानक वो रोबोट मिलता है तो खुशी से बेटे को देती है कि अब वो 12 वर्ष का हुआ है। अब नहीं तोड़ेगा। बेटा मुँह फेर लेता है कि मैं लिटल बेबी थोड़े हूँ। लेखिका ने अनेक लघु कथाओं में भावनाओं को ऐसा उड़ेल दिया है कि आप खो जायेंगे।
‘मिठाई’ में एक बुजुर्ग पति रात में अपनी बीमार पत्नी के पास पूजाघर से छुपाकर लड्डू लाता है और पत्नी को जबरन खिलाता है कि बेसन के लड्डू तुम्हें पसंद है, तुम्हें इस घर में तरसता नहीं देख सकता। सब दिन महिला अपने हिस्से का लड्डू बेटे को खिलाते रही और आज बेटा इतना लापरवाह है कि एक बार पूछता तक नहीं। बेटा छुपकर देख रहा होता है और उसे पछतावा होता है।
पुस्तक का शीर्षक लघु कथा ‘लिखी हुई इबारत’ में एक महिला डॉक्टर के बेटे को विवाह हेतु वो लड़की पसंद आ जाती है जिसे किसी संबंधी ने जबरन गर्भवती बनाया था और उस मुसीबत से इसी महिला डॉक्टर ने निकाला था। लड़की डॉक्टर को देखते ही अपनी ओर से विवाह से मना करने का प्रस्ताव रखती है। महिला डॉक्टर अपने में वापस लौटती है और बेटे का विवाह उससे करने को यह कह राजी होती है कि तुम कोई कागज नहीं हो कि कोई इबारत लिख दी गयी तो वो बेदाग न रहा। किसी की दुष्टता की सजा तुम क्यों भुगतो?
‘बुजदिल’ में एक पति परिवार के दबाव में अपनी प्रेमिका के अलावा दूसरे से विवाह कर निःसंतान है। प्रेमिका दोस्त जैसी है। वो बच्चा गोद लेने की सलाह देती है क्योंकि इसकी दादी दूसरा विवाह करने का प्रस्ताव रखती है। ये प्रेमिका से कहता है कि गोद लेने से वो अपना खून नहीं होगा। प्रेमिका कहती है कि तुम्हारे खून में स्पेशल क्या है? कौन से महाराणा प्रताप या वीर शिवाजी महाराज तुम्हारे यहाँ पैदा हुए हैं। (पुस्तक में सिर्फ शिवाजी शब्द है।) प्रेमिका पत्नी का साथ देने कहती है।
‘काश मैं रुक जाता’ लघु कथा में एक व्यक्ति कार से जा रहा होता है तो दो व्यक्ति गाड़ी के सामने अचानक से आकर निवेदन करते हैं कि एक लड़का का एक्सीडेंट हुआ है अस्पताल पहुँचाने में मदद करें। व्यक्ति पुलिस के चक्कर के भय से ऑफिस में मीटिंग का बहाना बना चला आता है। ऑफिस में पत्नी का फोन आने पर दौड़कर अस्पताल जाता है तो पता चलता है कि अगर समय से अस्पताल पहुँच जाता तो उसका बेटा आज जिंदा होता। उसे नहीं पता था कि रास्ते में उसके बेटे के लिए ही व्यक्ति अनुरोध कर रहा था। उसे अपने किये पर पछतावा होता है लेकिन देर हो चुकी है।
‘बेबसी’ लघु कथा में दरिद्र व्यक्ति बीमार पिता को खाने के बाद देनेवाली दवा भूखे पेट खिला देता है। पिता की मृत्यु होते ही बाद के खर्च की चिंता में है। फिर ठीकेदार के बताये अनुसार डॉक्टरों की पढ़ाई में लगने वाले मानव शरीर हेतु पिता की लाश को बेचकर अपने बेटे को कहता है कि आज भरपेट खायेंगे। बापू मरकर भी हमारा भला कर गये। अंत चौकाने वाला है। बहुत मार्मिक कहानी है।
‘बाँझ’ लघु कथा में एक महिला को अपने नन्हे बेटे के प्रति पड़ोस की एक महिला जिसे अपना बच्चा नहीं है, की आशक्ति अच्छी नहीं लगती। घर बदलने की बात पति से करती है कि घर बदल लो, उस बाँझ की नजर अच्छी नहीं है। दीपावली की रात बच्चे के कपड़े में आग लगती है तो वही बाँझ की गाली सुनने वाली औरत आग में झुलसकर भी बच्चे को बचा हृदय से लगाती है। इसे अपनी गलती का अहसास होता है।
कितनी लघु कथाओं का यहाँ जिक्र करूँ।
‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ में एक निराश व्यक्ति आत्महत्या करने सुबह रेल की पटरी पर जाता है। ट्रेन आ रही होती है कि अचानक वह सात साल के बच्चे को पटरी पर बेपरवाह जाते देखता है। वो बच्चा अपने किसी दिशा मैदान के लिए आये व्यक्ति के साथ आया है। बच्चे को बचाने में दोनों बच जाते हैं। लोग बोलते हैं कि बच्चे का नया जन्म माना जाये और वो व्यक्ति जो आत्महत्या के लिए आया था सोचता है कि उसका नया जन्म हुआ है।
लघु कथाएँ दिल को छूतीं हैं। पुस्तक एक बार अगर पकड़ लेंगे तो समाप्त कर ही दम लेंगे।
मैं हमेशा कहता हूँ कि लेखक समस्या के साथ समाधान भी अगर समाज के सामने रखे तो बेहतर हो। अनेक मेरे इस विचार से भिन्न मत यह कहकर रखते हैं कि साहित्य समाज का आईना है, बस दिखा देना अपना काम है। समाधान राजनेता या समाज सुधारक बतायें। मेरी नजर में जहाँ तक संभव हो समाधान भी अगर बता दिया जाये तो साहित्य ज्यादा सफल हो। इनकी लघु कथाओं में जिन व्यवस्थाओं पर इन्होंने चोट किया है, पाठक को उसका समाधान स्पष्ट दिखता है इसलिए ये पुस्तक पाठक के ज्यादा करीब पहुँचेंगी।
इनकी रचनाओं की एक खासियत और है कि इनके पात्रों के नाम बहुत ही सुन्दर हैं। लोग अपने बच्चों, बच्चियों के नाम रखेंगे। मेधा, रोहन, रिया, शकुन, शगुन, विशाखा, मेघा, रोहित, सिद्धि, शिखा, शुचि, आयुष, तनु, पारुल, शिवानी इत्यादि पात्रों के नाम कथाओं को और रोचक बनाते हैं।
कुल मिलाकर एक बेहतरीन लघु कथा संग्रह है। एक बात की तारीफ और करनी पड़ेगी की 55 लघु कथाओं में राजनीति, पुलिस, टाँग और भ्रष्टाचार पर एक भी कथा नहीं है। हर घर में रखने लायक बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए राजश्री प्रोडक्शन की फिल्मों की तरह एक साफ सुथरी पारिवारिक पुस्तक है। रचनाओँ से ज्यादा बढ़िया हिन्दी पुस्तक की भूमिका में है। मानना पड़ेगा कि श्री बी एल आच्छा जैसे भूमिका लिखने वाले हमलोगों के बीच हैं।
पुस्तक में खामियाँ कोई खास नहीं हैं। शुरू के 25 पेज झाड़ फानूस में गए। विवरण कम कर कुछ और रचनाएँ दी जा सकतीं थीं। पुस्तक का मूल्य कुछ ज्यादा है। हार्डकवर में है इसकारण भी ज्यादा हो सकता है। तथापि 250 रुपये और पोस्ट खर्च के कारण भी बहुत लोग नहीं खरीदेंगे। इस पुस्तक का मूल्य सौ रुपये रखकर पेपर बैक संस्करण निकाला जाये तो बेस्ट सेलर बन जाये।

बचपन से साहित्य पढ़ने का शौक. अनेक भाषाओं की पुस्तकें पढ़कर अपना विचार देना. तत्पश्चात पुस्तकों की समीक्षा करना. फिर लिखना प्रारम्भ. अब तक “अवली”, “इन्नर” “बारहबाना” और “प्रभाती” का सफल सम्पादन.