मीनाक्षी सिंह भारद्वाजजी की पुस्तक “बस तुम्हारे लिये” के लिए मैं उन्हें बधाई देता हूँ। “पहले मैं कविता की पुस्तक खरीदता नहीं था। वो मुझे आर्ट फ़िल्म की तरह लगती थी। आते वक्त एक समस्या लेकर आइए। बाद में मैंने खरीदना शुरू किया और धीरे धीरे पढ़ना। देवांशुजी की अनेक रचनाएँ मेरे ऊपर से बह जाती हैं और मैं हाथ जोड़ माफी मांग लेता हूँ।
“बस तुम्हारे लिए” बहुत गंभीर और गहरी रचनाओं के लिए याद की जायेगी। लेखिका ने अपने मन की बात को बहुत ही उम्दा तरीके से शब्दों में उतारा है। कुछेक रचनाएँ हिंदी में मसहरी के अंदर सोये व्यक्ति की तरह है, कोई मच्छर भी ना तंग करे।”
सर्वप्रथम मैं मीनाक्षी सिंहजी को इस पहली पुस्तक के लिये बहुत बधाई और शुभकामनाएँ देता हूँ। पुस्तक का प्रकाशन अंजुमन प्रकाशन ने सुन्दर आवरण में मूल्य रुपये 120 रखकर किया है। विभिन्न विषयों पर कुल 68 कविताएँ, 120 पेज में हैं। सामान्यतः 120 पेज की पुस्तक का मूल्य 150 रुपये से 200 तक होता है। 120 रुपये बहुत ही उचित है या आम जन मानस को ध्यान में रख कम रखी गयी है। कहीं- कहीं दिख जाता है कि लेखिका की नहीं बल्कि प्रूफ रीडिंग की त्रुटि है।
अब पुस्तक पर आऊँ।
इनकी कविताओं की खासियत यह है कि ये कविताएँ पाठक से बात करतीं हैं। पढ़ते वक्त अहसास होता है कि मैं कविताएँ पढ़ नहीं रहा हूँ बल्कि कोई मुझे सीधे संवाद के माध्यम से कह रहा है। बहुत कठिन हिन्दी के शब्दों से ही नहीं बल्कि आसान बोलचाल की हिन्दी में भी कविता लिखी जा सकती है यह मीनाक्षी जी ने साबित किया है।
दिलों को छूतीं, सोचने को मजबूर करतीं कविताएँ आपको कुछ क्षणों के लिये आत्मचिंतन करने को विवश कर देंगीं।
इनकी प्रेम से संबंधित कविताएँ ज्यादा प्रखर हैं।
कुछ पंक्तियाँ मुझे अच्छी लगीं। देखें-
‘तेरी आंखों में अब मैं मुहब्बत लिखना चाहती हूँ।
तेरे लबों पर अब मैं मेरी चाहत लिखना चाहती हूँ,
हाँ,
तेरे इर्द-गिर्द अब मैं मेरा मुकद्दर लिखना चाहती हूँ।’
एक जगह लिखती हैं कि
‘नील गगन सा स्नेह तुम्हारा
मैं हूँ बस तुम्हारी वसुंधरा
क्षितिज मिलन सा प्रेम हमारा
आँचल मेरा भर जाता सारा
यूँ ही प्यार बरसाते रहना
दिलों के फूल खिलाते रहना।’
‘न शेर लिखती हूँ न ग़ज़ल लिखती हूँ
तस्वीर ए यार के अहसास लिखती हूँ
उसके इश्क, अदा, अदावत और वो तेवर
मेरे दिल पर छुरियाँ चलाता
उसके हथियार लिखती हूँ।’
‘बस तुम्हारे लिए’ कविता जो इस पुस्तक का नाम भी है
में लिखती हैं कि
‘मेरे शब्दों को पढ़ना मत
समझने की कोशिश भी मत करना
गहराई में जाओगे तो उलझ कर रह जाओगे
नियमों के तराजू में भी मत तौलना
उन्हें बस जीने की कोशिश करना
बहने लगे जब प्रवाह बनकर
तेरे अहसासों की धमनियों में
तो समझना तुम्हारे लिए ही बने हैं
ये शब्द मेरे,
हाँ,
बस तुम्हारे लिए।’
‘जिंदगी का लेन’ कविता में लिखती हैं कि
‘इंसानी जिंदगी का रंग
अब सड़क के ढंग से मेल खाने लगा है
सड़कों की तरह अब इंसान
जिंदगी में भी लेन बनाने लगा है।’
‘बदलते रिश्ते’ कविता में लिखती हैं कि
‘कौन कहता है प्यार का रूप नहीं बदलता
हाँ, अब रिश्तो की तपिश कम होने लगी है।’
इन्होंने इस पुस्तक में अनेक विषयों पर लिखा है।
ज्यादातर कविताएँ प्रेम संबंधों पर है तथापि इन्होंने नारी विमर्श, महिला उत्पीड़न, बलात्कार, राजनीति और फौज पर ऐसी कविताएँ लिखी हैं जो आपके मन को छू लेंगी।
‘औरत और पेड़’ कविता में लिखती हैं कि
औरत और पेड़ मुझे एक से लगते हैं
खुश हो तो दोनों फूलों और फलों से सजते हैं
धूप और वर्षा सहना पेड़ की शक्ति हैं
गमों को पीना, ये औरत ही करती हैं।’
‘जज्ब पड़े जज्बात’ कविता में लिखती हैं कि
“इस दिवाली अंतस की सफाई करते वक्त
छलक पड़े कुछ कतरे दर्द के
जो तुमने दिये थे मेरे जज्बात को
तुम्हारी धरोहर मान संभाला है मैंने उसे अब तक।”
वाकई सुन्दर पंक्तियाँ हैं।
कुल मिलाकर एक बढ़िया संग्रह है। इसे एक बार अवश्य पढ़ें।
बिहार की एक महिला अन्य स्थानीय भाषा के प्रदेश में रहकर अपने पारिवारिक जीवन के साथ हिन्दी साहित्य के लिये इतना कुछ करने का प्रयास कर रहीं हैं, तारीफ होनी ही चाहिए। मैं मीनाक्षी सिंहजी को इस पुस्तक हेतु पुनः बधाई देता हूँ। इनसे बहुत अपेक्षाएँ हैं अतः भविष्य की शुभकामनाएँ भी देता हूँ।