“पत्थर होने की ज़िद” गजल संग्रह के लिये मैं Babita Agarwal Kanwal ‘बबीता अग्रवाल कँवलजी’ को बधाई और बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूँ। इसमें 117 ग़ज़ल हैं। बहुत ही आकर्षक आवरण में रीड पब्लिकेशन ने मूल्य ₹200 रखकर पुस्तक का प्रकाशन किया है।
इनकी पिछली पुस्तक ‘बूँद बूँद सैलाब’ भी मैंने पढ़ी है। लेखिका ने इस पुस्तक के प्रारंभ में ही पिछली पुस्तक की त्रुटियों को स्वीकार किया है। यही लेखक को बड़ा बनाता है। आजकल कोई भी लेखक- लेखिका अपनी गलती स्वीकार करने को तैयार ही नहीं होते बल्कि अगर उनकी गलती उनको बता दी जाये तो वे बहस, झगड़े पर आमादा हो जाते हैं। फेसबुक पर उनके तथाकथित चाहने वाले आप पर ऐसे टूट पड़ेंगे कि लगेगा फेसबुक पर ही आपका मॉब लिंचिंग हो जाये। बहुत ही मुश्किल है आज के लेखक को उनकी कमी बताना। आप कुछ बेचने बाजार में उतरते हैं तो कोई जरूरी नहीं कि सामने वाले को वह चीज उसी रूप में पसंद आये। लिखित गलती को स्वीकारने के बजाय उल्टे बहस करने पर उतारू आपको कम कर देता है। यहाँ अपनी नापसंदगी की जानकारी देने वाले लोगों का भी बबिताजी ने आभार प्रकट किया है। ये इनकी महानता है।
इस पुस्तक में पिछली पुस्तक की तुलना में बहुत ही निखार आया है। मुश्किल उर्दू शब्दों का प्रयोग बिल्कुल ही नहीं है और लेखिका के मन में जिस दिन जो बात आई उन्होंने लिख दिया है। ज्यादातर ग़ज़ल और शेर आज के हालात पर ही हैं। देशप्रेम पर, महिलाओं पर, बेटियों पर, दहेज, गजल के प्रिय विषय प्रेम, जख्म, फरेब, मेहताब, दिल, दिलजले और उम्मीद से भरी ग़ज़लें हैं। इस बार पुस्तक कुछ कसी हुई है तथापि हम पाठकों को इनसे असीमित, अपरिमित अपेक्षाएँ हैं। सुखद है कि दिनों दिन उनकी रचनाओं में निखार आ रहा है। लोग इस पुस्तक को निश्चित रूप से पसंद करेंगे खासकर वैसे लोग जिन्हें आसान शब्दों में, बिना किसी भारी भरकम उर्दू शब्दों के ग़ज़ल या शायरी पढ़नी है। अनेक ग़ज़ल गाने लायक भी है।
मैंने पहले भी कहा था कि अग्रवाल कुल में जन्मी एक महिला का उर्दू भाषा में पकड़ होना और ग़ज़ल, शेरो शायरी करना पत्थर पर फूल खिलाने जैसा है। बबिताजी इसमें बहुत हद तक सफल हो रहीं हैं।
मैं तो एक पाठक की दृष्टि से देखता हूँ। कुछ एक शेर मुझे अच्छे लगे-
पहला ही मतला वाकई बहुत बढ़िया लगा कि
‘पत्थर होने की जिद हमने ठानी है,
हर कंकड़ में मेरी छुपी कहानी है।
जो गुलाब की बातें करते रहते हैं,
कुछ बबूल की बातें उन्हें सुनानी है।।’
आगे और भी हैं-
‘ जमाने को हँसाता और दिल ही दिल में रोता है,
जो निखरा दर्द से हरदम वो हीरा सा खड़ा होगा।’
दहेज की चिंता को कुछ ऐसे बयां किया है कि-
‘ हाथ मेहंदी से है रचानी भी,
लाज अपनी हमें बचाने भी।
है नहीं हाथ में रकम कोई,
हो गयी बेटी अब सयानी भी।।’
कुछ अच्छे शेर-
‘आकर जहाँ में हमने अता कुछ नहीं किया,
इस जिंदगी में हमने नफा कुछ नहीं किया।
आँखों से तेरी पी लिये मदहोश हो गये,
कैसे कहें कि हमने नशा कुछ नहीं किया।।’
वाकई ये शेर दिल को छूने वाले शेर हैं।
श्रृंगार के शेर देखें कि
‘तेरी आँखों का ये पैगाम मेरे नाम हो जाता,
कसम से इस जमाने में मेरा भी दाम हो जाता।
तड़पती रात दिन हूँ मैं लगी जो आग उल्फत की,
अगर तू सामने आती मुझे आराम हो जाता।।’
‘खुद को लुटा रही थी कि तुम याद आ गये,
दिल को जला रही थी कि तुम याद आ गये।
ये जिंदगी तो बेवजह ही बदनाम हो गयी,
खुद को मिटा रही थी कि तुम याद आ गये।।’
कुछेक शेर जो आपके दिल के पास पहुँचेंगी-
‘आसमां को कैद करना है अगर ख्वाहिशों को पर लगाना चाहिए।
गीत खुशियों का सुनाना चाहिए गम नहीं अपना बताना चाहिए।।’
‘क्यों मुसीबत को ही ढ़ोता जा रहा है आदमी,
राह से अपनी भटकता जा रहा है आदमी।
आग धन की है लगी बुझती नहीं ये तो कभी,
पास दरिया से भी प्यासा जा रहा है आदमी।’
‘प्यार का मुझ पर असर है क्या करुँ,
पर न सांसो का सफर है क्या करुँ।
अब नहीं अखबार पढ़ने का मजा,
बेतुकी लगती खबर है क्या करुँ।।’
‘हार जाओगे जो तुम लड़ने चले तलवार से,
जीत सकते हो ये दुनिया प्यार की बौछार से।।’
फेसबुक के बारे में लिखती हैं कि
‘बात से जब बात निकली सिलसिला बढ़ता गया,
रफ्ता रफ्ता गुफ्तगू से हौसला बढ़ता गया।
फेसबुक पर छा गयी गजलें कँवल की आजकल,
शायरी में यूँ हमारा भी जिला बढ़ता गया।।’
राजनीति पर देखें कि-
‘ मदद जो भेजती दिल्ली हमें वो मिल नहीं पाती,
हमें मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा।
मुसीबत में नहीं सुनता है जब फरियाद वो मेरी,
मुझे महसूस होता है खुदा सोया हुआ होगा।।’
‘छोड़ जाते हैं सभी तो कौन अपना है यहाँ,
याद में आँसू बहे तनहाइयाँ हँसती रहीं।
राह तकती ही रहीं आने की चाहत आपकी,
थक गयी थी मैं मगर ये खिड़कियाँ हँसती रहीं।।’
मैं पुनः बबीता अग्रवाल कँवलजी को इस पुस्तक के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और आगे लिखने के लिए शुभकामनाएँ देता हूँ। वो इसी प्रकार लिखती रहें और पाठक पढ़ते रहें।
कृष्ण बिहारी नूर का एक शेर याद रखें कि
“गम मेरे साथ साथ दूर तक गये,
मुझमें थकन ना पायी तो बेचारे थक गये।”
कवयित्री को पुनः बधाई।