श्री हरीश कुमारजी की पुस्तक “ग्रीटिंग कार्ड और अन्य कहानियाँ” पढ़कर समाप्त किया है। 104 पेज की 14 कहानियों की पुस्तक का प्रकाशन रश्मि प्रकाशन ने आकर्षक रंगीन कवर में मूल्य 150 रुपये रखकर किया है। सर्वप्रथम मैं हरीशजी को इस पुस्तक के लिये बहुत बहुत बधाई देता हूँ कि एक बेहतरीन कथा संग्रह उन्होंने दिया है।
मैंने इस प्रकाशन की अनेक पुस्तकें प्रकाशन से सीधे खरीदी। जिनकी पुस्तक खरीदी, सबों ने साधुवाद दिया। पढ़कर समीक्षा लिखने लगा। एक रचनाकार इतने खफा हो गये कि बहुत गलत गलत इल्जाम लगाकर मुझे सब जगह से ब्लॉक कर दिया। यहाँ तक मुझे बुरा नहीं लगा। मैं अगर उनकी रचनाओं को पसंद न करूँ तो उन्हें भी अपनी नाराजगी दिखाने का अधिकार है। दुःख इस बात का हुआ कि उनका कहना था कि ये उठाने और गिराने का मैं खेल खेलता हूँ। मैं किसके कहने और इशारे पर पुस्तक खरीदता हूँ ये उन्हें पता लग चुका है। मैंने उनकी तुलना प्रेमचंद से क्यों नहीं की? मुझे लगा कि पैसे, समय और मेहनत लगाकर बे-वजह दुश्मनी मोल लेने से अच्छा है समेट कर रख दूँ। मैंने बाँधकर रख दिया।
इस बीच अन्य तीन- चार प्रकाशक के फोन आये कि मैं उनके प्रकाशन की पुस्तकें भी पढूँ और समीक्षा लिखूँ। हरीशजी ने भी मेरे फेसबुक पोस्ट में अपनी पुस्तक देखी थी, समीक्षा को पूछ बैठे तो मैंने फिर से गठरी खोल ली। ख़ैर।
अब पुस्तक पर आऊँ।
पूरी पुस्तक कथ्य और शिल्प की दृष्टि से बेहतरीन है। हरीशजी की कहानियों में गहरी बातें ही नहीं बल्कि जीवंत पात्र हैं। कुल 14 कहानियों में गाँव, परिवार, समाज और मानवीय संवेदनाओं का चित्रण है। कथ्य की शैली अनूठी है। भाव आता है कि साहित्यिक कथा पढ़ रहे हैं। लेखक ने हिन्दी में उच्च शिक्षा ग्रहण की है यह इस संग्रह में दिखता भी है। कहानी अपनी विशिष्टता लिये हुए है। अलग अलग मनोभावों की कथा अलग अलग स्थानों पर आपको बिठाती हैं। लगता है कि आपके सामने कथा घटित हो रही हो। सारे पात्र मंजे हुए लगते हैं अर्थात लेखक ने अपनी पूरी शक्ति पात्रों को स्थापित करने में झोंक दिया है। लेखक को सफलता यहाँ मिल जाती है।
पहली कहानी “हादसा” में एक व्यक्ति एक दुर्घटना देखकर इतना आहत होता है कि उसे हमेशा वही दृश्य दिखने लगता है। मनोभाव का वर्णन उत्तम है। पहली कहानी ही पाठक को ऐसा बाँधती है कि पाठक एक सीटिंग में ही पूरी पुस्तक समाप्त करना चाहेगा।
दूसरी कहानी “पिता” में एक अकेले पिता का मर्म दिखता है जो अपनी पत्नी के गुजर जाने के बाद एकलौते बेटे की गतिविधियों पर नजर रखता है। बेटे को उनकी पूछताछ अच्छी नहीं लगती लेकिन बहू के समझाने पर पिता की भावना को समझता है और परिवार खुशहाल होता है। बाप बेटे के जेनरेशन गैप का मूल्यांकन और उसका हल लेखक ने आसानी से कर दिया। यह कहानी अपने समाज में एक बढ़िया समाधान देती है।
“चंदू भाई का मोहभंग” एक युवा का मजदूर नेता बनने और फिर वास्तविक आम जीवन में आने का विश्लेषण है। कथा ठीकठाक है।
“ग्रीटिंग कार्ड” कहानी में जो पुस्तक का नाम भी है नायक और नायिका के बीच कुछ है तो स्थापित हो जाता है लेकिन इजहार की हिम्मत नहीं हो पाने के कारण दोनों बिछड़ जाते हैं और दोनों अपने जीवन में आगे बढ़ जाते हैं। दोनों का संवाद आसान लेकिन दिल को छूने वाला है। रोमांच बना रहता है। पाठक चिंतन करते रह जाता है।
“उम्मीद के सहारे” में एक पति अपनी पत्नी के साथ किये अपने दुर्व्यवहार के पाप के कारण अपनी पुत्री को निःसंतान रहना देखता है। दामाद के प्रति अच्छा भाव नहीं रखता। एक अनजाना संदेह दोनों को खाते रहता है लेकिन जैसे ही सुनता है कि वो बच्चा गोद लेने को तैयार हैं वही दामाद क्षणभर में अच्छा आदमी हो जाता है। स्त्री के मनोभाव को बताते हुए, पुरुष की गलतियों को माफ करते हुए, जैसे आम ग्रामीण महिलाएँ सोचती हैं, ठीक वैसा वर्णन लेखक की उपलब्धि है। सुन्दर कहानी है।
अन्य कहानियाँ भी रोचक और सार्थक हैं। लेखनी सधी हुई और स्पष्ट है। कोई भी कहानी उलझाती नहीं है। पढ़ने में अंत तक मन लगा रहता है। अतः एक बार इस पुस्तक को अवश्य पढ़ें।
पुस्तक की खामी की बात करूँ तो सबसे बड़ी खामी है कि लिखावट का फॉन्ट थोड़ा छोटा है। पढ़ने में असुविधा होती है। मैं चश्मा लगाता हूँ तथापि बहुत असुविधा हुई। घर के अन्य लोग पढ़ने को तैयार नहीं हुए। संवाद भी एक लाइन में ठूँसे हुए लगते हैं। यहाँ मुझे लगता है कि एक बहुत ही उम्दा कथा संग्रह कुछ छोटे फॉन्ट होने की वजह से अनेक लोगों के पास नहीं पहुँच पा रही होगी।
मूल्य भी 100 रुपये तक होती तो और अच्छा होता। नये रचनाकार अगर 1 रुपया प्रति पेज पुस्तक की कीमत रखें तो आम पाठक की संख्या में वृद्धि होगी। ऐसा मेरा मानना है।
शीर्षक इतना साधारण नहीं होना चाहिए था। कथा उच्च स्तर की हैं, शीर्षक कमजोर है।
कवर का डिजाइन और सुन्दर होना चाहिए।
अंत में कहूँगा कि एक बेहतरीन कथा संग्रह पढ़ने को मिली है। हरीशजी हिन्दी साहित्य में एम ए, पी एच डी हैं तो अपेक्षा बहुत थी ही, खरे भी उतरे हैं। वाकई अच्छी साहित्यिक पुस्तक है।
लेखक अपनी बात कहने में सफल हैं इसकी बधाई लें। इनसे बहुत अपेक्षाएँ बढ़ गयी हैं। साहित्य में इनका भविष्य उज्जवल है। भविष्य की शुभकामनाएँ।

बचपन से साहित्य पढ़ने का शौक. अनेक भाषाओं की पुस्तकें पढ़कर अपना विचार देना. तत्पश्चात पुस्तकों की समीक्षा करना. फिर लिखना प्रारम्भ. अब तक “अवली”, “इन्नर” “बारहबाना” और “प्रभाती” का सफल सम्पादन.