“इस जिंदगी के उस पार” पुस्तक पढ़कर समाप्त किया है। श्री राकेश शंकर भारतीजी की 184 पेज की पुस्तक का प्रकाशन अमन प्रकाशन ने मूल्य  रुपये 225 रखकर आकर्षक कवर में किया है। सर्वप्रथम पुस्तक के लिए भारतीजी को बधाई, शुभकामनाएँ।
इस पुस्तक में ग्यारह कहानियाँ हैं और सभी थर्ड जेंडर/ किन्नरों पर आधारित हैं। भूमिका भगवंत अनमोलजी ने लिखी है। मुझे लगता है कि उन्होंने कहानियाँ पढ़े बिना भूमिका लिखी है। भूमिका में भी उनसे ज्यादा की अपेक्षा थी।
पुस्तक में किन्नर समाज की सभी परेशानियों की चर्चा है। जन्म लेते ही परिवार का व्यवहार, फिर अन्य किन्नर समाज में भेज देना, यौन शोषण, अप्राकृतिक यौन शोषण, भीख माँगना, नाच गा कर जीवन यापन करना, इन सबकी चर्चा है। भावनात्मक बातों को बहुत ही मर्मस्पर्शी तरीके से लेखक ने लिखा है। जब उस किन्नर से लाभ लेने की बारी आती है तो उसका परिवार उसे खोजने लगता है। पैसे लेने हों या कि कोई मदद लेनी हो तो किन्नर से चाहिए लेकिन परिवार का सदस्य है बताने में प्रतिष्ठा जाने का भय होता है। अपना रिश्तेदार तक  नहीं बताते। बच्चे के लिए संबंधी किन्नर का लहू चाहिए लेकिन अपना कोई नहीं है। ये सब बातें तो दिल को छूती हैं लेकिन अप्राकृतिक यौन संबंधों की और अचानक से आलिंगन और अनैतिक स्पर्शों की चर्चा इतनी है कि मन ऊब जाता है। समलैंगिक संबंधों का बहुत वर्णन है। पुस्तक लिखने की शैली भी वयस्कों के लिए मालूम होती है। कुछेक शब्द और कुछ गालियों का प्रयोग उचित नहीं लगता है। मैं अक्सर कहता हूँ कि साहित्य में इन बातों की सीमा होनी चाहिए। गाँव के माहौल में, अपराधी या पुलिस के मुँह से माँ की अश्लील गाली लेखक दिलवा देते हैं। लेखक की सोच ये होती है कि ऐसा तो ये पात्र बोलते ही हैं। मेरा स्पष्ट मानना है कि बोली जाती है तब भी आपको हू ब हू लिखने की आज़ादी नहीं है। इन्हीं शब्दों को आप अन्य तरीकों से लिख सकते हैं। पुस्तक से किन्नर समाज के बीच की अनेक बातें जानने को मिलीं जो मैं नहीं जानता था। कहानी के माध्यम से उठाए गए सभी प्रश्न सही हैं लेकिन उठाने का तरीका, लिखने की शैली भिन्न है। पहली कहानी ‘मेरे बलम चले गए’ में एक किन्नर बच्ची बचपन से एक पड़ोस के लड़के के साथ खेलती हुई बड़ी हुई। दोनों बचपन के दोस्त थे। लेखक लिखते हैं कि वे दोनों एक दूसरे को भाई बहन की नज़रों से देखते थे। फिर आगे बड़े होने पर दोनों के बीच प्रेम प्रसंग होने लगता है और वो किन्नर विवाह तक के सपने देखती है। सिर्फ एक पंक्ति की वजह से कथा का पाठक अजीब उलझन में पड़ जाता है। इस पंक्ति की कोई आवश्यकता भी नहीं थी। अगर ये एक पंक्ति नहीं होती तो फिर ये प्रेम संबंध ठीक लगता। किन्नरों के शोषण का विवरण बढ़िया है।
कुल मिलाकर ये पुस्तक किन्नरों की जीवनशैली का आईना है। उनके जीवन में आने वाली सभी कठिनाइयों और शोषण  की विस्तृत चर्चा की गयी है। चार कहानियाँ दिल को छू जाती हैं लेकिन शिल्प तो वयस्कों वाला है। किन्नरों पर बहुत कम पुस्तकें हैं अतः इस पुस्तक का अभिनंदन तो है ही। लेखक नये उम्र के विदेश में बसे भारतीय हैं, हिन्दी में लिखते हैं, बिहार से हैं अतः स्वागत होना स्वाभाविक है। विदेश में बसने के बाद भी नाम में भारती हमेशा जुड़ा रहेगा। भविष्य में आने वाली पुस्तको में इनसे बहुत अपेक्षाएँ होंगी। आशा है खरे उतरेंगे।
इनसे फेसबुक के माध्यम से संपर्क हुआ और आपस में मित्रवत हो गया हूँ। जब इनको मैंने पुस्तक के बारे में अपना विचार बताया तो इन्होंने खुला अनुरोध किया कि जो लगे लिखिए। इस बात के लिए भी मैं इनकी सराहना करुँगा। पुनः इस पुस्तक की बधाई और भविष्य की शुभकामनाएँ।

बचपन से साहित्य पढ़ने का शौक. अनेक भाषाओं की पुस्तकें पढ़कर अपना विचार देना. तत्पश्चात पुस्तकों की समीक्षा करना. फिर लिखना प्रारम्भ. अब तक “अवली”, “इन्नर” “बारहबाना” और “प्रभाती” का सफल सम्पादन.