“दर्जन भर प्रश्न” में आज पटना के कवि श्री रोहित ठाकुर
परिचय-
नाम– रोहित ठाकुर
जन्म तिथि- 06/12/1978.
शिक्षा–
प्राथमिक – मैडोना इंगलिश स्कूल दरभंगा.
माध्यमिक- एम एल ए एकेडमी लहेरियासराय.
स्नातक- रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर.
परास्नातक – राजनीति विज्ञान, इग्नू, नई दिल्ली.
स्थान– सिंहवाड़ा, जिला- दरभंगा, बिहार.
अभिरुचि/क्षेत्र– हिन्दी तथा अँग्रेजी साहित्य का अध्ययन. विश्व सिनेमा.
कार्यक्षेत्र-वर्त्तमान– भारत के प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थाओं में सिविल सेवा परीक्षा के लिए अध्यापन.
विशेष कार्य/ भविष्य की रूपरेखा–
साहित्यिक पहल के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय जनरलों के लिए लेखन.
लेखकीय कर्म– कालेज के दिनों से ही कविता लेखन पर सक्रिय रूप से कविता लेखन 2017 से.
प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित. 100 से अधिक ब्लॉगों पर कविताएँ प्रकाशित हुई हैं. विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों में कविताएँ प्रकाशित. पंजाबी भाषा और मराठी भाषा में कविताओं का अनुवाद प्रकाशित.
संपर्क– सौदागर पथ, काली मंदिर रोड के उत्तर, संजय गाँधी नगर, हनुमान नगर, कंकड़बाग, पटना, बिहार, पिन- 800026.
मोबाईल- 6200439764. इमेल- [email protected]
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दर्जन भर प्रश्न
श्री रोहित ठाकुर से विभूति बी. झा के “दर्जन भर प्रश्न” और श्री ठाकुर के उत्तर:-
विभूति बी. झा– नमस्कार. सर्वप्रथम आपको “इन्नर” पुस्तक में प्रकाशित आपकी बहुत चर्चित ‘प्रार्थना और प्रेम के बीच औरतें’ और ‘एकांत में उदास औरत’ कविताओं के लिए बधाई, शुभकामनायें.
- पहला प्रश्न:- आपकी कविताएँ दिल को छूतीं हैं. पाठकों की इतनी अच्छी प्रतिक्रियाओं पर आपकी टिप्पणी?
श्री ठाकुर के उत्तर– किसी भी कवि के लिए यह सुखद अनुभूति का विषय है जब पाठकों की अच्छी प्रतिक्रिया मिलती है. हिन्दी कविता में स्थापित कवियों, सम्पादकों, आलोचकों, उपन्यासकारों तथा देश के विभिन्न भागों से पाठकों का स्नेह मिलना अच्छा लगता है. सोशल मीडिया के प्लेटफार्मों पर भी पाठकों का स्नेह मिलना अच्छा लगता है.
- प्रश्न:- आपके साहित्य के पसंदीदा रचनाकार कौन-कौन हैं? आपका नाम किन कवियों, साहित्यकारों के साथ लिया जाये? आपकी क्या इच्छा है?
उत्तर– मेरे प्रिय कवियों में आलोक धन्वा, प्रयाग शुक्ल, मंगलेश डबराल, विनोद कुमार शुक्ल, चन्द्रकांत देवताले, रघुवीर सहाय, श्रीकांत वर्मा, राजेश जोशी, मनोज कुमार झा हैं. कोई भी रचनाकार परंपरा से जुड़े बिना समृद्ध नहीं हो सकता है. निराला, मुक्तिबोध, शमशेर, नागार्जुन, अज्ञेय से कौन अप्रभावित रह सकता है.
- प्रश्न:- आपकी कविताएँ पूरे भारत के पत्रों-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही हैं. आज प्रत्येक शहर में कवियों की बाढ़ आ गयी है. इसके बावजूद आपको लगता है कि कविता खतरे में है? क्या कविता के पाठक कम हुए हैं?
उत्तर– हिन्दी कविता के पाठकों की संख्या कम नहीं हो रही है. हिन्दी कविता खतरे में भी नहीं है. कवियों की बाढ़ वाली बात सही है पर कुछ अच्छे कवियों को सभी पढ़ रहे हैं. नये युवा पीढ़ी के कवियों को पहले अनिवार्य रूप से महत्वपूर्ण रचनाकारों (कवियों, उपन्यासकारों, नाटककारों) को पढ़ना चाहिए.
- प्रश्न:- पुराने रचनाकारों की कृति और आजकल के नये रचनाकारों की ‘नयी वाली हिन्दी’ में लिखी कृति को देखकर आपको हिन्दी साहित्य का भविष्य क्या लगता है?
उत्तर– भाषा समय के सापेक्ष होती है. जीवन जितना विविधता लिए होगी भाषा में भी बदलाव अपेक्षित है. बोल-चाल की भाषा का रचनात्मक पक्ष ही ‘नयी वाली हिन्दी’ है. भाषा शास्त्र से लोक की ओर झुक गईं हैं. साहित्य में भाषा से अधिक महत्वपूर्ण है भाव. हिन्दी साहित्य भाषा के आधार पर गतिशील है. यह एक अद्भुत और अनिवार्य प्रकृति है हिन्दी साहित्य में.
- प्रश्न:- नये रचनाकारों, ग्रामीण, छोटे स्थानों के रचनाकारों को जो अच्छा लिखते हैं परन्तु संसाधन नहीं होने के कारण प्रकाशक गंभीरता से नहीं लेते, खासकर नये कवि को प्रकाशक छापना नहीं चाहते, उनको आप क्या सलाह देंगे?
उत्तर:- नये रचनाकारों को पहले खूब पढ़ने की जरुरत है. यही प्राथमिक रूप से महत्वपूर्ण है. आज कई सोशल प्लेटफ़ार्म हैं जो नये रचनाकारों को छपने की सहूलियत देते हैं. विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं में भी नये कवियों को प्रकाशित किया जाता है. नये कवियों या रचनाकारों को निरंतर अपनी रचना प्रक्रिया को स्तरीय बनाने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए.
- प्रश्न:- अभी जो पुस्तक बाज़ार में आने से पहले बेस्ट सेलर होती है, बाद में पाठक उसे नकार देते हैं. बेस्ट सेलर पुस्तक और उत्तम कृति दोनों को आप क्या मानते हैं? पुस्तक बाज़ार के अनुसार लिखी जा रही?
उत्तर– हमेशा से साहित्य में गंभीर साहित्य और सस्ता साहित्य दोनों को पढ़ने वाले मौजूद हैं. बेस्ट सेलर और उत्तम कृति एक हो सकती है और नहीं भी. पर यह जरूर है कि बेस्ट सेलर होना गुणवत्ता को प्रकट नहीं करती है.
सबसे दुःखद बात यह है कि अधिकांश पाठक यह नहीं जानते कि उन्हें क्या पढ़ना चाहिए.
- प्रश्न:- विरह, दर्द, धोखा और असंतोष को लेखन का श्रोत मानते हैं? सौन्दर्य और प्रेम संबंधों के बिना लेखन संभव नहीं है क्या?
उत्तर:- लेखन जीवन से गहरे रूप से और परिवेश से जुड़ी रहती है. समकालीन कविता और उपन्यास जीवन के विभिन्न पक्षों पर ध्यान केंद्रित करती है. जीवन में जो सौंदर्य बोध है वह साहित्य का विषय है. सम-सामयिक जीवन में हम में से अधिकांश लोग संतापों से, अभावों से, पीड़ा, पराजय, निराशा, हताशाओं की स्थिति में जीवन पथ पर गतिशील हैं और अपनी सामर्थ्य से अपनी-अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं. यह एक असमाप्त युद्ध है जो इस युग की वास्तविकता है. कोई भी कवि जो सजग है अपने परिवेश और आज की स्थितियों से प्रभावित होकर ही रहेगा और उसकी लेखनी ध्वनित करेगी समय विशेष की स्थिति, नैतिकता और संकटों को. मेरा मानना है कि तीव्र जीवन बोध कविता के लिए अनिवार्य है. कवि या रचनाकार का एक निजी स्पेस भी होता है वह भी कविता में प्रतिध्वनित होता है .
- प्रश्न:- आजकल लोग साहित्य में आकर अचानक से छा जाना चाहते हैं. कवि कविताओं की बाढ़ ला देते. पाठक का कविताओं के प्रति आकर्षण कम होता जा रहा. कुछ प्रकाशक कवितायेँ प्रकाशित करने को तैयार नहीं हैं? कहाँ कमी है?
उत्तर:- युवा पीढ़ी के रचनाकारों को पहले खूब पढ़ने की जरुरत है. जब तक जीवन अनुभव और बौद्धिक जागरण को कवि प्राप्त नहीं करता है उसकी कविताएँ प्रभावित नहीं करेगी. निरंतर उत्कृष्टता की ओर अग्रसर रहने की जरूरत है. खूब पढ़ने की आवश्यकता है और कम लिखा जाना चाहिए.
- प्रश्न:- आजकल हिन्दी भाषी भी हिन्दी में बात करना पसंद नहीं करते. मोबाईल युग आने से हिन्दी पर इसका क्या प्रभाव पड़ा है? क्या आप मानते हैं कि हिन्दी भाषा/ हिन्दी कविताओं का अस्तित्व संकट में है?
उत्तर:- तकनीक ने हिन्दी भाषा और साहित्य को अघिक व्यापक आधार प्रदान किया है. हिन्दी का विस्तार हो रहा है. हिन्दी साहित्य या कविता संकट में नहीं है. हिन्दी साहित्य का प्रसार हुआ है पर स्तर में गिरावट आयी है.
- प्रश्न:- आप मानते हैं कि साहित्य में भी गुटबाजी, किसी को नीचा या ऊपर कराने का, जुगाड़ का खेल होता है? दिया जाने वाला पुरस्कार भी इन बातों से प्रभावित होता है?
उत्तर:- जहाँ बौद्धिक लोग होंगे वहाँ राजनीति होती है. साहित्य में गुटबाजी एक संस्थागत समस्या है. मान-अपमान का खेल चलता ही रहता है. पुरस्कारों को लेकर विवाद खड़ा होना नयी बात नहीं है. पर परिदृश्य इतना भी खराब नहीं है. अच्छे लोग भी हिन्दी साहित्य में हैं. लेखक को इन बातों पर ध्यान न देकर रचनाशील रहना चाहिए.
- प्रश्न:- साहित्य जीवन यापन का साधन नहीं रह गया है. साहित्य में अपना भविष्य तलाश रहे नयी पीढ़ी के रचनाकारों, नये कवियों के बारे में आपके क्या विचार हैं? आप उन्हें क्या सलाह देंगे?
उत्तर– हिन्दी साहित्य में आप होलटाईमर होकर जीवन यापन नहीं कर सकते हैं. साहित्य में जो नयी पीढ़ी के रचनाकार या कवि हैं उन्हें अपना करियर बनाने के साथ साहित्य में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए. साहित्य के ग्लैमर से दूर रहें. क्योंकि साहित्यिक में कोई स्टारडम नहीं होता है. अत्यधिक महत्वाकांक्षा भी नहीं पालनी चाहिए. अन्यथा कुंठा से ग्रस्त होने की सम्भावना रहती है. सकारात्मक सोच के साथ सृजनात्मक रहें. परंपरा का सम्मान करें.
12. प्रश्न:- आप आज के हिन्दी रचनाकारों/ कवियों में पाँच ऐसे रचनाकारों के नाम बतायें जिनकी पुस्तक से आप प्रभावित हैं या आपको भविष्य में उनसे हिन्दी साहित्य में अपेक्षा है?
उत्तर– समकालीन हिन्दी साहित्य में कई नाम हैं जिन्हें पढ़ना सुकून का विषय है. उनकी लेखनी आशा जगाती है. भविष्य के प्रति आश्वस्त करती है. वर्तमान परिदृश्य में मनोज कुमार झा , पंकज चतुर्वेदी , बाबुषा कोहली , अनुज लुगुन , विहाग वैभव की कविताएँ पठनीय हैं.
विभूति बी. झा– बहुत-बहुत धन्यवाद. आपको भविष्य की शुभकामनाएँ.
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सामयिक प्रश्न और उनका सटीक जवाब
आभार आपका ।।
सवालों के जवाब यहाँ बेहद सलीके से आए हैं। बधाई।
■ शहंशाह आलम
सवालों के जवाब यहाँ सलीके से आए हैं।
बधाई अपने प्रिय कवि को ?
हार्दिक आभार आपका भाई साहब ।।
नए सन्दर्भ के कुछ सवाल अच्छे लगे।