“दर्जन भर प्रश्न” में लेखिका, अभिनेत्री और निर्देशिका श्रीमती उमा झुनझुनवाला
“दर्जन भर प्रश्न”
श्रीमती उमा झुनझुनवाला से विभूति बी. झा के ‘दर्जन भर प्रश्न’ और श्रीमती झुनझुनवाला के उत्तर:–
विभूति बी. झा– नमस्कार. सर्वप्रथम आपको क्या कहकर संबोधित करूँ? लेखिका, कवयित्री, अभिनेत्री या निर्देशिका. अलग-अलग क्षेत्रों में सफलता की शुभकामनाएँ.
- पहला प्रश्न:- लेखन, अभिनय और निर्देशन, तीनों तीन विधाएँ हैं. आप इन सब हेतु चर्चा में रहतीं हैं. इतनी सफलता पर क्या कहेंगी? पाठकों और दर्शकों की इतनी अच्छी प्रतिक्रियाओं पर आपकी टिप्पणी?
उत्तर– लेखन, अभिनय और निर्देशन, तीनों परस्पर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. इन्हें अलग करके देखा ही नहीं जा सकता. रंगमंच के चार खम्भे होते हैं – नाटककार, निर्देशक, अभिनेता और दर्शक. अतः मैं एक ही काम कर रही. अब जिन कार्यों में या जिन गतिविधियों में निरंतरता बनी रहती है, वे स्वयं ही चर्चा में आ जाती हैं. पाठकों और दर्शकों की उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रियाओं पर मैं बस यही कहना चाहूँगी कि–
उत्सव…
जन्म और मृत्यु का
एक बहाना है…
और इसीलिए मैं
मरना चाहती हूँ बार बार
कि जन्म ले सकूँ बार बार
लोग याद करें मुझे बार बार
चर्चा करें मेरी रचना की हर प्रक्रिया की
उसकी उपेक्षा किए जाए वाले कारकों की भी
सुना है मैंने
उत्सवों का असर रहता है ज़िन्दगी भर
मरने के बाद लोगों की हर चर्चा में.
चर्चा में होना ज़िंदा होना होता है बन्धु
वरना जीवन और मृत्यु
मात्र विलोम शब्द हैं.
- प्रश्न:- आपके पसंदीदा रचनाकार कौन-कौन हैं? आपका नाम किन साहित्यकारों के साथ लिया जाये? यही प्रश्न रंगकर्म के लिए भी है? आप अपने को कहाँ देखना चाहतीं हैं?
उत्तर– प्रेमचंद, निराला, महादेवी वर्मा, रविन्द्रनाथ टैगोर, मंटो, इस्मत चुगताई, अमृता प्रीतम, मोहन राकेश, भीष्म साहनी, सुरेन्द्र वर्मा, असगर वज़ाहत आदि. किसी के साथ नाम लिए जाने वाली परम्परा को मैं नहीं मानती. ऐसे में आप उस व्यक्ति के अस्तित्व को जाने अनजाने हाशिये पर लाकर रख देते हैं. हर लेखक अपनी तरह से लिखता है- अच्छा, स्तरीय या बुरा, पाठकों की रूचि के अनुसार. हाँ, वह अपने तत्कालीन या समकालीनों से प्रभावित ज़रूर होता है लेकिन प्रभाव का अर्थ नकल नहीं हो सकता. इसलिए चाहे लेखन हो या रंगकर्म, मैं मानती हूँ कि परम्परागत निर्वाहन के साथ मेरे अपने कुछ अलहदा तरीके हैं जो मेरी पहचान को उमा की पहचान में ही रखते हैं. मैं स्वयं को पाठकों और दर्शकों के दिल में और उनकी चर्चा में देखना चाहती हूँ.
- प्रश्न:-आपकी जीवन यात्रा यहाँ तक पहुँची है. इसमें अभी तक कितने पड़ाव कहाँ–कहाँ आये?
उत्तर– इनका कोई अंत नहीं. और यही शुभ है क्योंकि पड़ावों का आते रहना निरंतरता का संकेत है. मंज़िल मिराज़ की तरह होती है जिसे पाने के लिए हम लगातार संघर्ष करते रहते हैं.
- प्रश्न:- हिन्दी साहित्य लेखन और नाट्यकला दोनों में जमीन और आसमान का अंतर है. दोनों में तारतम्य कैसे बिठा पातीं हैं?
उत्तर:- नहीं, मैं नहीं मानती कि दोनों में कोई अंतर है, ये अन्योन्याश्रित हैं.
- प्रश्न:- आपको लगता है कि पुस्तकों के पाठकों और नाटकों के दर्शकों में कमी आ रही? इन दोनों पर सोशल मीडिया का क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर– हाँ, ये सच है कि इनमें कमी आई है और इसकी सही जानकारी आपको प्रकाशकों से ही मिल जायेगी. ज़्यादातर लेखक अपना पैसा लगाकर किताबें छपवाते हैं. अगर पाठकों की कमी नहीं होती तो प्रकाशकों को किताबें छापने में रिस्क फैक्टर नहीं लगता कि कहीं अगर ये किताब की बिक्री इतनी नहीं हुई कि प्रकाशन का खर्च भी निकल जाए. ये दुविधा अभी हर छोटे-बड़े प्रकाशकों को घेरे रहती है और इसलिए सभी प्रकाशक (आप सभी नामचीनों को भी ले सकते हैं इनमें) प्रकाशन में लगने वाली राशि पहले ही लेखकों से ले लेते हैं. (कुछ सेलर लेखकों की बात नहीं कर रही) और लेखक वर्ग भी अपनी किताबों का व्यक्तिगत स्तर पर प्रचार कार्य करता रहता है, प्रायोजित गोष्ठियाँ होती है उनके प्रचार के लिए. रंगमंच का भी यही हाल है. दर्शकों को बार बार मैसेज, फोन आदि करके बुलाना पड़ता है, उसकी पब्लिसिटी करनी पड़ती है. स्थिति दयनीय ज़रूर है मगर निराशाजनक बिलकुल नहीं. परिवर्तन प्रकृति का नियम है.
- प्रश्न:- लेखक की, रंगकर्मी की अति प्रिय कृति को कभी पाठक, दर्शक पसंद नहीं करते. लेखक पर, रंगकर्मी पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है? ऐसी स्थिति में आपके अनुसार क्या करना चाहिए?
उत्तर:- जी, अक्सर ऐसा होता है. सबका अपना अपना स्वाद होता है, जो चीज़ एक को पसंद नहीं आती वह दूसरे को पसंद आ सकती है. अगर ऐसा नहीं होता तो रस भी नौ नहीं होते. भाव-विभाव नहीं होते. इसलिए कोई कृति या प्रस्तुति पाठक या दर्शक को पसंद नहीं आए तो उस रचना पर ईमानदारी से चर्चा होनी चाहिए और मतानुसार बदलाव पर काम भी करना चाहिए. लेकिन अगर रचनाकार या निर्देशक को लगता है कि उसके काम में कोई कमी नहीं है तो उसे अडिग भी रहना चाहिए.
- प्रश्न:- आपकी दृष्टि में लेखन में, नाटक में अश्लील गालियों का हूबहू प्रयोग करने की क्या सीमा होनी चाहिए? साहित्यकार, नाटककार का मानना है कि समाज में तो ऐसी गालियाँ दी जाती हैं, यहाँ प्रयोग क्यों नहीं किया जा सकता? आप क्या मानतीं हैं?
उत्तर:- इस प्रश्न के उत्तर में कई मतभेद हो सकते हैं. हू-ब-हू तो कुछ नहीं होता. वह नकल होता है और साहित्य में नकल नहीं चलता. आप अक्स दिखा सकते हैं, नकल नहीं.
- प्रश्न:– आजकल महिला विमर्श के नाम पर क्या कुछ लिखा नहीं जा रहा. क्या महिला शोषण, धोखा, छल और यौन शोषण के बिना लेखन या मंचन संभव नहीं है?
उत्तर:- जब किसी विशेष विषय पर कुछ कार्य अलग से किये जाते हैं तो उसका अर्थ होता है- उसकी आवश्यकता सबसे ज़्यादा है. तो जिसकी आवश्यकता सबसे ज़्यादा है उस पर क्यों न लिखा जाए या उसे मंच पर क्यों न लाया जाए. और ऐसा भी नहीं है कि लेखन या मंचन में इनके अलावा कुछ और नहीं हो रहा. वैसे भी साहित्य और कला में शोषितों को विशेष जगह मिलनी ही चाहिए.
- प्रश्न:- आजकल हिन्दी भाषी भी हिन्दी में बात करना पसंद नहीं करते. अपने बच्चों के साथ भी विदेशी भाषा में बात करते हैं? क्या आप मानती हैं कि हिन्दी भाषा का अस्तित्व संकट में है?
उत्तर:- अंग्रेज़ी भाषा हमारी आवश्यकता है, इसमें कोई संदेह नहीं. लेकिन इसकी वजह से हमारी हिन्दी भाषा ख़तरे में है ये सोचना भी मूर्खता है. अंग्रेजी विश्व से जोड़ने की कड़ी है और हिन्दी देश से जोड़ने की भाषा है. जब तक देश है, हिंदी है.
- प्रश्न:- आप मानती हैं कि साहित्य में, अभिनय में भी गुटबाजी, किसी को नीचा या ऊपर कराने का, जुगाड़ का खेल होता है? दिया जानेवाला पुरस्कार भी इन बातों से प्रभावित होता है? लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं? आप क्या सलाह देंगीं?
उत्तर:- प्रारम्भिक युग से देखिए, ताकतवर कमज़ोर को दबा कर ख़ुद को स्थापित करने की कोशिश करता रहा है. ये आचरण नया नहीं है. ये संघर्ष हमेशा से है. मगर हाँ, आज जबकि हमने सभ्यता के कई नये सोपान गढ़े हैं, हमारी सोच में बदलाव आना ही चाहिए क्योंकि ये जुगाड़, किसी को नीचे या ऊपर करने की मानसिकता आदि हिंसक प्रवृति है और हिंसा हर हाल में नुकसानदायी ही होता है. सभ्यता और संस्कृति के वाहक होने के नाते हमारी सोच में भी विस्तार होना चाहिए और हमारे आचरण में योग्यता को उसकी सही जगह देने का आह्वान होना ही चाहिए. वृक्ष के पुराने पत्ते अगर नए पत्तों को स्वयं जगह नहीं देंगे तो मजबूत पत्तों द्वारा धकिया दिये जायेंगे और फिर उन्हें कोई याद भी नहीं रखेगा.
- प्रश्न:- आपका अगला कदम क्या फिल्म निर्देशन है? पूर्णतया सिनेमा में रमने की भविष्यवाणी कर सकता हूँ? आपके प्रिय पाँच नाट्य-निर्देशक और पाँच हिन्दी के नाटककार कौन–कौन हैं?
उत्तर– नहीं. कदापि नहीं. आप या कोई भी ऐसी भविष्यवाणी कर ही नहीं सकता. (हा हा हा) क्योंकि रंगमंच ही मेरा जीवन है. पाँच सँख्या में बताना मुश्किल है, फिर भी- प्रिय निर्देशक हैं – रामगोपाल बजाज, त्रिपुरारी शर्मा, अज़हर आलम, मुश्ताक़ काक और संजय उपाध्याय.
नाटककार – कालिदास, मोहन राकेश, सुरेंद्र वर्मा, प्रताप सहगल और अज़हर आलम.
- प्रश्न:- साहित्य जीवनयापन का साधन नहीं रह गया है. साहित्य में अपना भविष्य तलाश रहे नयी पीढ़ी के नये रचनाकारों के बारे में आपके क्या विचार हैं? यही प्रश्न रंगकर्मी के लिए पूर्णतः नहीं कहा जा सकता लेकिन रंगकर्म में नये का शोषण होता है, क्या आप सहमत हैं? आप उन्हें क्या सलाह देंगीं?
उत्तर– ये स्थिति हिन्दी क्षेत्रों की है जबकि अन्य भाषाओँ के साहित्य के साथ ऐसी स्थिति नहीं है. साहित्य को जीविकोपार्जन का साधन तभी बनाया जा सकता है जब साहित्य को लगातार अध्ययन से जोड़ा जाएगा. अखबारों में उसे आकर्षण का विषय बनाया जाएगा. वर्तमान समय में हम समाज में आदर्शवाद और यथार्थवाद के मध्य के संघर्ष को नये रूप में देख रहें हैं. आज इंटरनेट, मल्टीप्लेक्स और बड़े बड़े शॉपिंग मॉल की चकाचौंध ने साहित्य के महत्व को ओल्ड फैशन बना दिया है. बाजारवाद इतना हावी हो गया है कि साहित्य और कला संकुचित दायरे में सिमट कर रह गयी है. कला के मनोरंजन उद्योग में ऐसा बदलाव आया है जो कल्पना से परे था. घरों से साहित्य की चर्चा बिल्कुल ख़त्म हो गई है. फलस्वरूप साहित्य या रंगमंच के प्रति रूचि और जागरूकता उत्पन्न करने के लिए विभिन्न स्तरों पर पाठकों और दर्शकों के लिए सेमिनारों, संगोष्ठियों और वर्कशॉप के आयोजन की आवश्यकता है और ये ज़िम्मेदारी सभी सांस्कृतिक संस्थाओं की भी है, ताकि स्थापित लेखक या रंगकर्मियों के साथ नयों की भी भागीदारी सशक्त रूप में हो. रंगमंच सम्पूर्णतया समर्पण पर आधारित है जहाँ लोग बिना किसी कमाई की आशा लिए आते हैं. सामान मानसिकता वालों के सहयोग से ही रंगमंचीय गतिविधियाँ चलती रहती है. शोषण की स्थिति जहाँ है वहाँ साहित्य और रंगमंच नहीं कारोबार है और उस कारोबार को समझने की दृष्टि को नयों के मध्य विकसित करने की ज़िम्मेदारी हमारी ही है. हमें ईमानदार होना होगा.|
विभूति बी. झा– बहुत बहुत धन्यवाद. बहुत बढ़िया और मार्गदर्शी जवाब आपने दिया. आपको भविष्य की शुभकामनाएँ.
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“श्रीमती उमा झुनझुनवाला”
व्यक्ति परिचय:-
नाम– श्रीमती उमा झुनझुनवाला
जन्म तिथि व स्थान– 20 अगस्त, 1968, कलकत्ता
शिक्षा– एम.ए (हिंदी) बीएड.
प्राथमिक/ माध्यमिक/ आगे- स्थान- कलकत्ता.
पारिवारिक जानकारी– पिता- मदन मोहन झुनझुनवाला, माँ- सुमित्रा देवी झुनझुनवाला, दो भाई, एक बहन.
बच्चे/ पति– पति – प्रो. अज़हर आलम (उर्दू के वरिष्ठ प्रध्यापक), एक पुत्री और एक पुत्र.
अभिरुचि/क्षेत्र– निर्देशन के साथ साथ अभिनय, कविता, कहानी और नाट्य लेखन
कार्यक्षेत्र– रंगमंच.
विशेष अनुभव– अभिनय, कहानी व कविता पाठ, रंगमंचीय कार्यशाला आदि की प्रशिक्षक.
विशेष कार्य वर्तमान/ भविष्य – आने वाले दिनों में “काव्य मंचन“ पर कार्य की रूपरेखा, फारसी कवि फरीदुद्दीन का पंछीनामा, अल्फ्रेड टेनिसन का ‘यूलेसिस’, टैगोर की ‘गीतांजलि’ तथा दिनकर, अज्ञेय, पन्त, निराला, विजय बहादुर सिंह, ग़ालिब, मीर तकी मीर आदि का काव्य कोलाज की प्रस्तुति की योजना चल रही है.
लेखकीय कर्म–
- रेंगती परछाईयाँ- ऑथर्स प्रेस से प्रकाशित
- हज़ारों ख़्वाहिशें (लोकोदय प्रकाशन से शीघ्र प्रकाश्य)
- चौखट
- लम्हों की मुलाकात
- भीगी औरतें
बच्चों के लिए एकांकी –
- राजकुमारी और मेंढक
- हमारे हिस्से की धूप कहाँ है
- धरती, जल, वायु
- शैतान का खेल
- आग़ अब भी जल रही है
- जाने कहाँ मंजिल मिल जाए
- बुरे बुरे ख़्वाब
- शपथ
डायरी लेखन – एक औरत की डायरी से (एपीएन प्रकाशन, दिल्ली)
काव्य संग्रह – मैं और मेरा मन (प्रकाशन हेतु)
अनुवाद / रूपांतरण
उर्दू से हिंदी –
- 1. यादों के बुझे हुए सवेरे (इस्माइल चुनारा) – राजकमल प्रकाशन
- आबनूसी ख्याल (एन रशीद खान) राजकमल प्रकाशन
- 3. लैला मजनू (इस्माइल चुनारा) दृश्यांतर, नई दिल्ली
अंग्रेजी से हिंदी –
4. एक टूटी हुई कुर्सी एवं अन्य नाटक – ऑथर्स प्रेस (इस्माइल चुनारा के Afternoon, A Broken Chair, The Stone & The Orphanage)
- धोखा (राहुल वर्मा के अंग्रेज़ी नाटक ‘Truth & Treason’ से)
- बलकान की औरतें (जुलेस तास्का के ‘The Balkan Women’ से)
बंगला से हिंदी –
7. मुक्तधारा, टैगोर, (उर्दू में) साहित्य अकादेमी
हिन्दी में अनुवाद – उमा और उर्दू में लिपय नितरण अज़हर आलम
- विभाजन (अभिजीत कारगुप्ता)
- गोत्रहीन (रुद्रप्रसाद सेनगुप्ता),
- अलका (मनोज मित्र)
- मीरजाफर (ब्रात्य बासु)
विशेष –
- नाटक ‘रेंगती परछाइयाँ’ का तीन एपिसोड में रेडियो से दो बार प्रसारण
- नाटक ‘हज़ारों ख़्वाहिशें’ का रेडियो से प्रसारण
- रानी लक्ष्मी बाई संग्रहालय, झाँसी के लिए स्क्रिप्टिंग, प्रकाश व संगीत की परिकल्पना
- बंगला डॉक्यूमेंट्री फिल्म का हिंदी में अनुवाद
- हंस, आजकल, समकालीन भारतीय साहित्य, वागर्थ, कथादेश, समावर्तन, अक्षर–शिल्पी, वीणा, विश्व–गाथा, प्रभात ख़बर आदि पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ, कहानी और रंगमंच पर आलेख प्रकाशित.
पुरस्कार या अन्य उपलब्धि की जानकारी–
- 2020 में विवेचना रंगमेडल, जबलपुर द्वारा राष्ट्रीय रंग-सम्मान,
- 2019 में में सेतु सांस्कृतिक केंद्र, बनारस द्वारा नाट्य शिरोमणि सम्मान,
- 2019 में भारतीय भाषा परिषद् द्वारा संस्कृति और साहित्य सम्मान,
- 2018 में हिंदुस्तान क्लब, कलकत्ता द्वारा अनन्या सम्मान,
- 2018 में गुंजन कला सदन व विवेचना रंगमंडल, जबलपुर द्वारा ‘संतश्री नाट्य अलकंरण’ सम्मान,
- 2015 में भारतीय संस्कृति संसद द्वारा कला सम्मान,
- 2014 में प.ब. जातीय मारवाड़ी फेडरेशन द्वारा श्रीदेवी माहेश्वरी सम्मान,
- 2012 में ‘आकृत’ बीकानेरी संस्थान द्वारा नाट्य अलंकरण सम्मान,
- 2011 में राजस्थानी समाज ‘मरुधरा’ द्वारा रंगमंच-सम्मान,
- 2011 में मुस्लिम इंस्टिट्यूट द्वारा तथा 2006 व 1997 में क्रमशः अखिल भारतीय मारवाड़ी सम्मेलन तथा प्रादेशिक मारवाड़ी फेडरेशन द्वारा रंगमंच के क्षेत्र में निरंतर और उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए पुरस्कार. इसके साथ ही प.ब. राज्य सरकार द्वारा आयोजित राज्य-उत्सव में 1994, 1995, 1996, 1997 व 1998 में श्रेष्ठ अभिनय के लिए पुरस्कृत किया गया.
संपर्क/ पता– लेक गार्डन्स, गवर्मेंट हाउसिंग, 48/4 सुल्तान आलम रोड, ब्लाक – X/7, कोलकाता– 700033. मोबाईल- 9331028531.
विशेष जानकारी– संस्कृति मंत्रालय द्वारा प्रदत्त जूनियर फेलोशिप के तहत कहानियों के मंचन” पर काम तथा प्रस्तुतियाँ
निर्देशन एवं अभिनय–
- अंधेरा उजाला (वर्कशॉप आधारित काव्य-मंचन / निर्देशन / फरवरी २०२०)
- कुकुरमुत्ता (कवि – निराला / निर्देशन / जनवरी २०२०)
- हज़ारों ख़्वाहिशें ( २०१९/ लेखन, निर्देशन)
- रूहें (लेखक – अजहर आलम / २०१९ / अभिनय)
- बिहान (कवि – केशरीनाथ त्रिपाठी / २०१९, निर्देशन )
- एक अदद सपने के लिए (कवि – नरेन्द्र मोहन / २०१९, निर्देशन)
- अँधेरे में (कवि – प्रताप सहगल / २०१९ / निर्देशन)
- शब्द और भाव (कोलाज/ २०१८ / निर्देशन)
- कुरुक्षेत्र (कवि दिनकर / २०१८ / निर्देशन)
- एक औरत की डायरी से (लेखन / २०१७ / अभिनय, निर्देशन)
- तुम ही हो सकते हो प्रेमचंद (२०१७ / प्रेमचंद की चार कहानियाँ / निर्देशन)
- बलकान की औरतें २०१६ (लेखक – जुलेस तासका, अनुवाद – उमा, अभिनय)
- एक माँ धरती सी (कहानी लेखिका – कुसुम खेमानी / २०१६ / निर्देशन)
- रश्मिरथी माँ (कहानी लेखिका – कुसुम खेमानी / २०१६ निर्देशन, अभिनय)
- एक अचम्भा प्रेम (कहानी लेखिका – कुसुम खेमानी / २०१६ निर्देशन, अभिनय)
- धोखा २०१६ (लेखक – राहुल वर्मा, अनुवाद – उमा / अभिनय)
- रेंगती परछाइयाँ २०१५ (लेखन / अभिनय)
- पेशावर एक्सप्रेस (लेखक – भीष्म साहनी २०१५ / अभिनय व परिकल्पना)
- शहज़ादे (लेखक – भीष्म साहनी २०१५ / अभिनय व परिकल्पना)
- क़िस्सा ख्वानी (२०१४ / निर्देशन, अभिनय)
- अलका (लेखक – मनोज मित्र / अनुवाद उमा / २०१३ / निर्देशन, अभिनय)
- लाइसेंस (लेखक – मंटो / २०१२ निर्देशन)
- ख़ुदा की कसम (लेखक – मंटो /२०१२ निर्देशन, अभिनय)
- बदला (लेकह्क – अज्ञेय / २०१२ / निर्देशन, अभिनय)
- मवाली (लेखक – मोहन राकेश / २०१२ निर्देशन)
- राजकुमारी और मेंढक (लेखन / २००८ / निर्देशन)
- गैंडा २०११ (लेखक – युजेन इओनेसको / अभिनय)
- सुइयोंवाली बीबी (लेखक – इकबाल मजीद / 2010 / निर्देशन, अभिनय)
- एक वृश्चिक की डायरी (लेखक – शिव झुनझुनवाला / 2010 / निर्देशन, अभिनय)
- बजिया तुम क्यों रोती हो (लेखक – मुज़फ्फ़र हनफ़ी / 2010 / निर्देशन, अभिनय)
- ओलुकुन (लेखक – इस्माइल चुनारा / २०१० / निर्देशन)
- बड़े भाईसाहब (प्रेमचंद / 2009 / निर्देशन)
- पतझड़ (लेखक – टेनेसी विलिअम्स / २००९ / अभिनय)
- इश्क़ पर ज़ोर नहीं ((लेखक – मुज़फ्फ़र हनफ़ी / 2008 निर्देशन, अभिनय)
- दोपहर (लेखक – इस्माइल चुनारा / 2008 निर्देशन, अभिनय)
- आख़िरी रात (रविन्द्रनाथ टैगोर/ 2008 निर्देशन, अभिनय)
- दुराशा (रविन्द्रनाथ टैगोर / 2008 निर्देशन, अभिनय)
- एक सपने की मौत (शैलेन्द्र / 2007 निर्देशन)
- रिहाई (सईद प्रेमी / 2007 निर्देशन)
- फाइल (मधु कांकरिया / 2007 निर्देशन, अभिनय)
- पॉलिथीन की दीवार (अनीस रफ़ी / 2007 निर्देशन, अभिनय)
- ठंडा गोश्त (मंटो / 2007 / अभिनय)
- औलाद (मंटो / 2007 अभिनय)
- प्रश्न-चिह्न (लेखक – इस्माइल चुनारा / 2007 अभिनय)
- तारतुफ़ (मौलिअर / २००६ निर्देशन)
- पहले आप २००६ (निर्देशन)
- यादों के बुझे हुए सवेरे (लेखक – इस्माइल चुनारा / 2005 / निर्देशन, अभिनय)
- शुतुरमुर्ग (ज्ञानदेव अग्निहोयती / २००४ अभिनय)
- शैतान का खेल (लेखन / २००३ निर्देशन)
- हमारे हिस्से की धुप कहाँ है (लेखन / २००३ निर्देशन)
- कांच के खिलौने (टेनेसी विलियम्स / २००२ अभिनय)
- नमक की गुड़िया (अज़हर आलम / २००१ अभिनय)
- स्वप्न दुस्वप्न (लेखन / २००१ / निर्देशन)
- अदृश्य अभिशाप (सैम शेफर्ड / २००१ निर्देशन)
- लोहार (बलवंत गार्गी / 1999 अभिनय)
- जब आधार नहीं रहते हैं (मोतीलाल केयामु / १९९८ / निर्देशन, अभिनय)
- दर्द का पोट्रेट (१९९७ / निर्देशन)
- जोकर (हैदर अली / १९९७ / अभिनय)
- आग़ अब भी जल रही है लेखन / १९९६ / निर्देशन)
- सुलगते चिनार (अज़हर आलम / १९९६ अभिनय)
- महाकाल (अविनाश श्रेष्ठ /1995 / अभिनय)
- ब्लैक संडे १९९४ (ज़हीर अनवर / निर्देशन, अभिनय)
- सत्गति १९९४ (प्रेमचंद / निर्देशन, अभिनय)
- अपहरण कौमी एकता (भाईचारे) का (सफ़दर हाशमी / १९८९ अभिनय)
- चन्द्रगुप्त (जयशंकर प्रसाद / १९८८ / निर्देशन)
- कोणार्क (जगदीश चन्द्र माथुर / १९८७ / निर्देशन)
- अधिकार का रक्षक (उपेन्द्र नाथ अश्क / १९८६ / निर्देशन, अभिनय)
- सीमारेखा (विष्णु प्रभाकर / १९८५ / निर्देशन, अभिनय)
- गुस्ताखी माफ़ १९८४ (अभिनय)
अब तक का कहानी पाठ प्रशिक्षण– छुट्टी, रवींद्रनाथ टैगोर; एक आँच की कसर, जुरमाना, नशा, कायर, मोटर के छींटे, प्रेमचंद; खोल दो, सआदत हसन मंटो, एक जीवी एक रत्नी एक सपना और बू, अमृता प्रीतम; बदचलन व एक सुलझा आदमी, हरिशंकर परसाई; चित्र का शीर्षक व फूलो का कुर्ता, यशपाल; शाह आलम कैम्प की रूहें, नाच व गिरफ्त, असगर वजाहत; सिक्का बदल गया, कृष्णा सोबती; अकेली, मन्नू भंडारी, एक अचम्भा प्रेम, कुसुम खेमानी, जन्मदिन, संगीता बासु
अब तक का काव्य–पाठ प्रशिक्षण – आँखें बोलेंगी, भवानीप्रसाद मिश्र; फूल और काँटा, आँख का आँसू, अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध; अनजानी राह, केसरीनाथ त्रिपाठी; तानाशाह के बावजूद, कैसे लोग थे हम, विश्वनाथ प्रसाद तिवारी; आप कहते हैं सरापा गुलमुहर है ज़िंदगी, अदम गोंडवी कौन तुम मेरे हृदय में, उत्तर, शून्य मंदिर में, महादेवी वर्मा; नशे में दया, गुलामी, हँसो हँसो जल्दी हँसो, रघुवीर सहाय; मेरी भी आभा है इसमें, नागार्जुन; मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ, भगवतीचरण वर्मा; आग की भीख, रामधारी सिंह दिनकर; आर्य– मैथिलीशरण गुप्त; आह ! वेदना मिली विदाई जयशंकर प्रसाद, तुम हमारे हो, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सब कुछ कह लेने के बाद, अक्सर एक व्यथा, उठ मेरी बेटी सुबह हो गई व फसल, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना; क्योंकि सपना है अभी भी, धर्मवीर भारती; घिर गया है समय का रथ, शमशेर बहादुर सिंह; अकाल में सारस, केदारनाथ सिंह, आँकड़ों की बीमारी, कुँवर नारायण; भागी हुई लडकियाँ, आलोक धन्वा; साल मुबारक, अमृता प्रीतम; आएँगे, उजले दिन जरूर आएँगे, इतने भले नहीं बन जाना, वीरेन डंगवाल; मुझे कदम–कदम पर, गजानन माधव मुक्तिबोध; बढ़ई और चिड़िया, केदारनाथ सिंह, मैंने आहुति बन कर देखा, उधार, शब्द और सत्य, सूनी–सी साँझ एक, अज्ञेय; चार कौए उर्फ चार हौए, भवानीप्रसाद मिश्र; मुश्किल तो मेरी है, वहाँ एक फूल खिला हुआ है, चाँद तुम्हारे साथ कुछ दूर तक, कुमार अम्बुज; अस्तित्व, ब्रजेंद्र त्रिपाठी, बहारें होली की, नज़ीर अकबराबादी; जलियांवाला बाग़ में बसंत, सुभद्रा कुमारी चौहान; गाँधीजी के जन्मदिन पर, दुष्यंत कुमार; जंगली गुलाब, कुँवर नारायण, उत्सव, अरुण कमल इस तरह मैं, निर्मला तोदी, दोराहा, अंजू शर्मा.
*****
तस्वीरें खुद बोलतीं हैं:-
विभूति जी
सादर धन्यवाद ??
आपका आभार.
उमा जी का साक्षात्कार पढ़कर अच्छा लगा । उनका साहित्य और रंगमंच से लगाव सराहनीय है । मेरी शुभकामनाएँ
बहुत खूब |
धन्यवाद.
कितना कुछ सीखने को मिलता है जब भी आपको सुनने का एवं पढ़ने का मौका मिलता है। ❤️?
A very insightful interviev
A guiding light for me
रोचक और ज्ञानवर्धक साक्षात्कार।
उमाजी से आपकी बातचीत अरसे तक याद की जाएगी।
■ शहंशाह आलम
Your interviews are always a window to the beautiful world of theatre! Thank you for always guiding us Ma’am!
मैंने पूरा साक्षात्कार पढ़ा. आज के समय में रंगकर्म और साहित्य से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण सवालों पर चर्चा हुई. बहुत अच्छा लगा. बहुत बहुत धन्यवाद.
एक एक अच्छा इंटरव्यू उमा जी एक बहू प्रतिभावान खातून हैं आप ने सवाल भी अच्छे किएर
एक शानदार साक्षात्कार पढ़ने को मिला । आपसे वैसे उम्मीद भी थी । आपने बहुत अच्छा उत्तर दिया है।
यह धरोहर के रूप में भी रहेगा।
बधाई।???????
जितनी बार उमा मैम को जाना है ,या जानने की कोशिश की है हर बार एक नये अनुभव के साथ हमारा परीचय होता है।धन्यवाद आपके खूबसूरत प्रश्नो का भी जीनके सहारे उमा मैम का ये अद्भुत स्वरूप देखने को मिला।?
जितनी बार उमा मैम को जाना है या जानने की कोशिश की है हर बार एक नया अनुभव से हमारा परीचय होता है। धन्यवाद आपके प्रश्नो का भी जिनके सहारे हमे एक नयी उमा मैम से साझा होने का अवसर दिया।?
जितनी बार उमा मैम को जाना है ,या जानने की कोशिश की है।हर बार उमा मैम के एक नये रूप का परीचय होता है ।धन्यवाद आपके प्रश्नो का भी जीनके सहारे हमे एक नयी उमा मैम से साझा होने का अवसर दिय।??
बहुत सुंदर मैम, वैसे आम दिनों में आपसे बहुत कुछ सीखने को मिलता रहता है, जो पहली बार आपकी बातों को पढ़ रहा है उसके लिए अच्छी जानकारी
बहुत शानदार साक्षात्कार । उमा जी का व्यक्तित्व एवं कृतित्व बहुत प्रेरणादायक है । अनेक विधाओं को उन्होंने साध रखा है । प्रश्नों के भी कितने काव्यात्मक एवं बिम्बात्मक उत्तर दिए हैं । बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं
स्पष्ट और सार्थक